HomeAdivasi Dailyआदि महोत्सव: आदिवासी संस्कृति, व्यंजन और रचनात्मकता का जश्न

आदि महोत्सव: आदिवासी संस्कृति, व्यंजन और रचनात्मकता का जश्न

पिछले कुछ दिनों में यह देखा गया है कि कुछ व्यंजन दूसरों की तुलना में अधिक ध्यान आकर्षित करते हैं. चपड़ा की चटनी या लाल चींटी की चटनी को बहुत लोग पसंद कर रहे हैं. लाल चीटियों से बनी चपड़ा चटनी न सिर्फ स्वादिष्ट होती है बल्कि बीमारियों को दूर रखने में भी मदद करती है.

दिल्ली हाट में आदिवासी कला, संस्कृति और व्यंजनों को दर्शाने वाले राष्ट्रीय उत्सव ‘आदि महोत्सव’ का शुभारंभ हो गया है. ये महोत्सव भारत में आदिवासी समुदायों की समृद्ध संस्कृति से लोगों को परिचित कराने का एक सार्थक प्रयास है. 2021 का संस्करण भारत की विभिन्न जनजातियों की विविध विरासतों को उनकी कला, प्राकृतिक उत्पाद हस्तशिल्प और व्यंजनों के जरिए प्रदर्शित कर रहा है.

दिल्ली हाट, INA में प्रदर्शनी 200 स्टालों पर जीवंत आदिवासी हस्तशिल्प, कला, पेंटिंग, कपड़े और आभूषण की बिक्री देखती है.

आदिवासी जीवन के सबसे दिलचस्प पहलुओं में कई प्रकार के विशुद्ध आदिवासी व्यंजन शामिल हैं जो विभिन्न जनजातियों के लिए बहुत अहम है. आदिवासी लोगों का भोजन न सिर्फ मजेदार होता है बल्कि पौष्टिक और संतुलित भी होता है. विशुद्ध आदिवासी व्यंजन नई दिल्ली में चल रहे ट्राइब्स इंडिया आदि महोत्सव दिल्ली हाट के आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र है.

दिल्ली हाट के आदि व्यंजन खंड में लोगों की भीड़ उमड़ रही है. जहां सिक्किम, उत्तराखंड, तेलंगाना, तमिलनाडु, नागालैंड, गुजरात और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के व्यंजनों के स्टॉल लगाए गए हैं.

पिछले कुछ दिनों में यह देखा गया है कि कुछ व्यंजन दूसरों की तुलना में अधिक ध्यान आकर्षित करते हैं. चपड़ा की चटनी या लाल चींटी की चटनी को बहुत लोग पसंद कर रहे हैं. लाल चीटियों से बनी चपड़ा चटनी न सिर्फ स्वादिष्ट होती है बल्कि बीमारियों को दूर रखने में भी मदद करती है. वहीं महुआ के व्यंजनों ने भी काफी लोगों का ध्यान खींचा है. महुआ चाय से लेकर महुआ शक्करपारा तक लोगों की पसंद बना हुआ है.

छत्तीसगढ़ के बस्तर के एक गोंड आदिवासी राजेश यलम की टीम स्थानीय आदिवासी खाना बेच रही है. यलम कहते हैं, “मैं तीन साल से यहां (प्रदर्शनी) आती हूं. हम महुआ की चाय और लड्डू, चावल की शराब और लाल चींटियों से बनी चपड़ा की चटनी बेच रहे हैं. इस तरह के आयोजन से घर की स्थिति सुधारने में मदद मिलती है. क्योंकि यह मांग को बढ़ाता है और बदले में रोज़गार (आजीविका) में मदद करता है.”

ई-कॉमर्स क्रांति के साथ आदिवासी कारीगरों को भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED) द्वारा डिजिटल भुगतान का इस्तेमाल करना भी सिखाया जा रहा है. TRIFED के एमडी प्रवीर कृष्णा ने बताया, “हमने आदिवासी कारीगरों के लिए डिजिटल भुगतान किया है और उनका किराया भी ऑनलाइन उपलब्ध कराया है. ट्राइफेड द्वारा हर एक वस्तु के लिए उचित मूल्य निर्धारित किया जाएगा. इसलिए इन विक्रेताओं के साथ कोई सौदेबाजी नहीं होती है.”

वहीं आदि महोत्सव 2021 के लिए कू ऐप (Koo App) ने जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ यानी ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन (TRIFED) के साथ साझेदारी की है. इसका मतलब है कि 15 दिनों के महोत्सव के लिए सोशल मीडिया पार्टनर के रूप में कू भारत की जनजातियों और उनकी संस्कृति के बारे में बातचीत को सक्षम और प्रसारित करेगा.

जनजातीय संस्कृति, शिल्प, भोजन और वाणिज्य की भावना के उत्सव ‘आदि महोत्सव’ की शुरुआत 2017 में की गई थी. ये महोत्सव देशभर में आदिवासी समुदायों के समृद्ध और विविध शिल्प और संस्कृति से लोगों को परिचित कराने की एक कोशिश है.

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