काणी आदिवासी समुदाय के अप्पुकुट्टन आजकल बड़े चिंतित हैं, क्योंकि उनकी आय का एक बड़ा साधन ठप पड़ा है. दरअसल, केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले में स्थित पोनमुडी पहाड़ियों के एलनचियम गांव के अप्पुकुट्टन एक आदिवासी चिकित्सक हैं.
अप्पुकुट्टन उपचार के लिए औषधीय पौधों का उपयोग करते हैं. वह राज्य के पहले ऐसे काणी चिकित्सकों में से एक हैं जिन्हें 1985 में सरकार से मान्यता प्राप्त हुई थी. अप्पुकुट्टन और उनके चार बच्चों की जीविका आदिवासी उपचार की सदियों पुरानी प्रथा पर ही निर्भर है.
वैसे तो अप्पुकुट्टन से इलाज करवाने के लिए रोगी आते हैं, लेकिन उनकी आय का मुख्य स्रोत चिकित्सा शिविर थे. यह चचिकित्सा शिविर वो KIRTADS (केरल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च, ट्रेनिंग और डेवलपमेंट स्टडीज़ ऑफ शेड्यूल्ड कास्ट्स एंड शेड्यूल्ड ट्राइब्स) की सहायता से संचालित करते थे.
लेकिन, अब KIRTADS कभी-कभी ही इन शिविरों का आयोजन करता है, जिससे अप्पुकुट्टन की आय प्रभावित हुई है.
मंगलवार को केरल विधानसभा चुनाव के लिए अपना वोट डालने के बाद अप्पुकुट्टन की एक ही मांग थी कि अगली सरकार स्थानीय उपचार विधियों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए. वो कहते हैं कि वह सिर्फ़ उन लोगों पर भरोसा करेंगे, जो आदिवासियों की जीवन शैली और उनकी प्रथाओं की रक्षा करने की बात करें.
चिकित्सा शिविरों की कमी और कोविड महामारी ने पारंपरिक चिकित्सकों की कमर तोड़ दी है. पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में स्थित एलनचियम में एक दर्जन से ज़्यादा पारंपरिक काणी चिकित्सक हैं. और इन सबकी एक ही समस्या है – सरकारी मान्यता की कमी और महामारी की वजह से हुआ वित्तीय संकट.
केंद्र सरकार ने बुधवार को ट्राइबल हेल्थ कोलैबोरेटिव की घोषणा की थी, जिसक उद्देश्य देश के आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति को बेहतर करना है. इसके तहत 5000 आदिवासी चिकित्सकों को योजना से जोड़ने का भी प्लान है.
हो सकता है कि केंद्र सरकार की इस परियोजना का फ़ायदा जल्द ही अप्पुकुट्टन जैसे आदिवासी चिकित्सकों को मिल सकेगा.