तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की 9 अक्टूबर की घोषणा पर आदिवासी संगठनों ने नाराज़गी जताई है. मुख्यमंत्री ने कहा था कि जंगल के बीच में पोडु भूमि पर खेती करने वाले आदिवासियों को सीमा क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा.
आदिवासी कर्मचारी कल्याण और सांस्कृतिक संघ (Adivasi Employees Welfare and Cultural Association – AEWCA) ने सीएम के बयान पर गंभीर आपत्ति जताते हुए तेलंगाना के राज्यपाल और केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री को पत्र लिखकर राज्य सरकार पर अनुसूचित इलाक़ों में रहने वाले आदिवासियों को दिए गए संवैधानिक अधिकारों को छीनने का आरोप लगाया है.
कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस क़दम से न सिर्फ़ आदिवासियों के व्यक्तिगत अधिकारों, बल्कि उनके सामुदायिक अधिकारों पर भी गहरा असर पड़ेगा.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ इन संगठनों का कहना है कि कोलम और चेंचू जैसी आदिम जनजातियां अपनी पहचान खो देंगे, अगर उन्हें उनके पारंपरिक आवास से हटा दिया गया. AEWCA के अध्यक्ष जी वेंकट रमणा ने कहा, “स्थानीय विधायकों को एजेंसी इलाक़ों में भूमि के मुद्दों की देखरेख के लिए ज़िम्मेदार ठहराकर, राज्य पेसा अधिनियम और वन अधिकार अधिनियम की भावना के खिलाफ जा रहा है.”
दरअसल, तेलंगाना सरकार ने कहा था कि जंगलों के बीच में खेती करने वाले किसानों को सीमा पर शिफ़्ट कर दिया जाएगा, और उन्हें खेती के लिए ज़मीन दी जाएगी. ऐसे किसानों को रायतु बंधु कार्यक्रम जैसी कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाने के अलावा भूमि के पट्टे, बिजली आपूर्ति और पानी भी दिया जाएगा.
मुख्यमंत्री ने तब कहा कि वन भूमि का अतिक्रमण न हो इसके लिए अधिकारी सभी ज़रूरी क़दम उठाएंगे. इसके अलावा उन्होंने यह बी आस्वास्न दिया था कि पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों और आजीविका की रक्षा की जाएगी.
मुख्यमंत्री ने माना था कि आदिवासियों की संस्कृति जंगलों से जुड़ी हुई है. आदिवासी जंगलों को अपने जीवन के जैसा ही प्रिय मानते हैं, और वो जंगलों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. इसलिए सरकार उनकी आजीविका और अधिकारों की रक्षा करेगी. समस्या उन सभी की है जो बाहर से आते हैं, वन भूमि पर क़ब्ज़ा करते हैं, वन संपदा को नष्ट करते हैं और संसाधनों का दुरुपयोग करते हैं.
सरकार का प्लान पोडु भूमि का मुद्दा सुलझाने के बाद, वन भूमि की रक्षा के लिए कड़े क़दम उठाने का है.