गुजरात के आदिवासी-बहुल डांग ज़िले में दसवीं की बोर्ड परीक्षा पास करने वाले 500 से ज़्यादा आदिवासी छात्र ग्यारहवीं में दाखिला पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
कई स्कूलों में अभी तक नई क्लासरूम बनने का इंतज़ार है, तो दूसरों में मौजूदा क्लासरूम में नए बच्चों के लिए जगह नहीं है.
जिला शिक्षा अधिकारियों ने सरकारी स्कूलों में क्लासरूम की संख्या बढ़ाने के लिए फ़ाइल आगे बढ़ा दी है. ज़िले के दूसरे स्कूलों से भी ऐसा करने को कहा गया है.
लेकिन इन अधिकारियों को डर है कि दाखिले में देरी ज़िले में ड्रॉपआउट रेट को बढ़ा सकती है.
डांग जिला शिक्षा निरीक्षक विजय देशमुख ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “2019-20 में 10वीं के बाद 26.43 प्रतिशत छात्र स्कूल छोड़ गए थे, जिनमें 24.96 प्रतिशत लड़कियां और 27.91 प्रतिशत लड़के थे.
इसी तरह 2020-21 में ड्रॉपआउट रेट 17.55 फीसदी था, जिसमें 17.19 लड़कियां और 17.91 लड़के थे. इस साल क्लासरूम में जगह की कमी से यह कड़ा और भी बढ़ सकता है.”
राज्य के शिक्षा विभाग को डांग के आठ सरकारी स्कूलों में आठ क्लासरूम बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा गया है, लेकिन अबी सरकार की प्रतिक्रियी का इंतज़ार है. जैसे ही मंज़ूरी मिलेगी, काम शुरू हो जाएगा.
इस साल ज़िले में पास हुए कुल 3,909 छात्रों में से 3,255 को दाखिला मिला है. पिछले शैक्षणिक वर्ष में ज़िले में 67 प्रतिशत छात्र पास हुए थे, और उससे पहले 65 प्रतिशत. स्कूलों को अब न केवल 10वीं कक्षा के अपने छात्रों को दाखिला देना है, बल्कि नए छात्रों के लिए भी जगह बनानी है.
डर यह है कि जगह की कमी की वजह से इस प्रक्रिया को पूरा करने में जिन छात्रों के कम अंक हैं, वो पीछे रह जाएंगे, और उन्हें दाखिला नहीं मिलेगा.
अखबार से बात करने वाले कुछ छात्रों ने कहा कि अगर इस साल उन्हें एडमिशन हीं मिलता है तो वो अपने माता-पिता की मदद करने और परिवार की आय को पूरा करने के लिए एक साल का ब्रेक लेंगे.
डांग ज़िले के अहवा तालुक के शामघन गांव के जनता हाई स्कूल में एडमिशन पाने के लिए गांव के कम से कम 26 बच्चे इंतज़ार कर रहे हैं.
शामघन के आसपास के 10 गांवों के लिए यह एकमात्र हाई स्कूल है. इसी स्कूल से दसवीं की पढ़ाई करने वाले छात्रों को दाखिले में प्राथमिकता दी गई, तो बाकि बच्चों के सीट नहीं बचीं.
दूसरे स्कूल गाँव से बहुत दूर हैं और वहाँ ट्रांस्पोर्ट की कमी की वदह से वहां पहुंचना बेहद मुश्किल है, क्योंकि डांग एक पहाड़ी इलाक़ा है.
इलाक़े के आदिवासी परिवारों के लिए पढ़ाई के लिए अपने बच्चों को दूसरे ज़िलों में बेजना नामुमकिन है, क्योंकि वो उनके पढ़ाई और रहने का ख़र्च नहीं उठा पाएंगे.
डांग ज़िले में कुल 29 हाई स्कूल हैं, जिनमें से 13 स्कूल सरकारी अनुदान सहायता, 13 सरकारी स्कूल और 3 सेल्फ़-फ़ाइनैंस्ट (Self-financed) स्कूल हैं. इन स्कूलों में 11वीं के लिए कुल 37 कक्षाएं हैं, जिनमें से 9 साइंस स्ट्रीम के लिए हैं, 24 कॉमर्स स्ट्रीम के लिए हैं और बाकि आर्ट्स स्ट्रीम के लिए.
शामघन गांव के जनता हाई स्कूल में कॉमर्स के एक लिए क्लास है, जिसमें फ़िलहाल 75 छात्रों को एडमिशन दिया गया है.
स्कूल से 11वीं की नई कक्षाएं शुरू करने के लिए कहा तो गया है, लेकिन उनके पास उसके लिए जगह ही नहीं है. पिछले साल के कॉमर्स बैच में 50 छात्र थे, लेकिन इस साल पहले ही उस संख्या को बढ़ाकर 75 कर दिया गया है.
स्कूल के प्रिंसिपल मनुभाई गावित कहते हैं, “हमारे पास सीमित संख्या में बेंच हैं, हम कक्षाओं में छात्रों को कैसे दाखिला दें? हमारे पास न तो बेंच खरीदने और न ही अतिरिक्त क्लासरूम बनाने के लिए पैसे हैं.”
डांग के डीईओ (District Education Officer) मणिलाल भुसारा का कहना है, “दाखिले के मुद्दे पर हमने स्कूलों से कहा है कि वो ज़्यादा से ज़्यादा छात्रों को एडमिशन देने के लिए कमरों और क्लास में छात्रों की संख्या को बढ़ाएं.
हमने डांग के मौजूदा सरकारी हाई स्कूलों में नौ नई कक्षाओं के लिए आवेदन दिया है.”
महामारी के इस दौर में पहले से ही देशभर और ख़ासतौर पर आदिवासी इलाक़ों के बच्चों की पढ़ाई पर बहुत बुरा असर पड़ा है. अब पास होने के बावजूद एडमिशन न मिलने से उन्हें भविष्य में कई दिक्कतें आएंगी.
एक साल का ब्रेक लेने के बाद उनके लिए स्कूल वापस जाना कितना संभव होगा, यह एक बड़ी चिंता है. इसके अलावा अगले साल भी 11वीं में सीटों की संख्या कितनी बढ़ पाएगी, यह भी देखना होगा, क्योंकि अगले साल पास होने वाले बच्चे भी एडमिशन की दौड़ में शामिल होंगे.
(Photo Credit: Pawan Khengre, The Indian Express)