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जलविद्युत परियोजनाओं और वन अधिकारों को लेकर आदिवासी कर रहे मंडी लोकसभा उपचुनाव का बहिष्कार

दुकानों, कारों, सार्वजनिक स्थानों और सोशल मीडिया पर जिले भर में 'नो मीन्स नो' अभियान के पोस्टर देखे जा सकते हैं. जिससे यह संदेश जा रहा है कि अब कोई और जल विद्युत परियोजना नहीं होनी चाहिए.

हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों पर वोटिंग जारी है. लेकिन मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में किन्नौर जिले के आदिवासी नोटा या चुनाव का बहिष्कार करने के लिए अभियान चला रहे हैं. इसकी वजह है सतलुज नदी पर आगामी जल विद्युत परियोजना का विरोध.

बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों को लेकर गुस्सा इतना बढ़ गया कि परियोजना से प्रभावित होने वाले क्षेत्र के आदिवासी लोगों ने मंडी लोकसभा उपचुनाव के बहिष्कार का निर्णय लिया है जो बहुत बड़ी बात है.  

सबसे पहले रारंग ग्राम सभा ने 30 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया. लेकिन चुनाव से एक दिन पहले जंगी और अकपा भी उनके साथ शामिल हो गए. उपचुनाव के नतीजे 2 नवंबर को घोषित किए जाएंगे.

रारंग ग्राम सभा के अध्यक्ष राजिंदर नेगी ने कहा, “हम 2008-09 से लगातार सरकारों को ज्ञापन भेज रहे हैं जिसमें 804 मेगावाट की जंगी-थोपन जलविद्युत परियोजना को रद्द करने की मांग की गई है. इसके बावजूद हमारी मांगें किसी के कान पर नहीं रेंग रही है. हमारे प्रयासों के बावजूद मौजूदा सरकार ने परियोजना के आवंटन के लिए सतलुज जल विद्युत निगम (SJVN) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.”

जंगी पंचायत संघर्ष समिति के अध्यक्ष बुद्ध सैन नेगी ने कहा, “हमारी ग्राम सभा (जंगी) ने मंडी उपचुनाव के बहिष्कार के आह्वान में शामिल होने का फैसला किया है.”

युवा मंडल के अध्यक्ष ज्ञान कुमार ने कहा, “अकपा महिला मंडल और युवा मंडल ने भी बहिष्कार आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया है.”

फेसबुक और व्हाट्सएप पर अभियानों के केंद्र में हिमलोक जागृति मंच और जिला वन अधिकार समिति हैं जिनमें ज्यादातर गांवों के सदस्य हैं.

25 जुलाई को सांगला घाटी में हाल के भूस्खलन में नौ लोगों की मौत हो गई और 11 अगस्त को निगुलसारी में एक अन्य घटना में 28 लोग मारे गए जिसके बाद किन्नौर में जलविद्युत परियोजनाओं के खिलाफ विरोध तेज हो गया है. आदिवासियों का मानना ​​​​है कि वर्षों से जलविद्युत परियोजनाओं की निरंतर निर्माण गतिविधि ने नाजुक पहाड़ों को भूस्खलन के जोखिम में डाल दिया है.

दुकानों, कारों, सार्वजनिक स्थानों और सोशल मीडिया पर जिले भर में ‘नो मीन्स नो’ अभियान के पोस्टर देखे जा सकते हैं. जिससे यह संदेश जा रहा है कि अब कोई और जल विद्युत परियोजना नहीं होनी चाहिए.

बीजेपी उम्मीदवार ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर (सेवानिवृत्त) और कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा सिंह ने शायद ही उनकी मांगों का समर्थन किया है इसलिए चुनाव के बहिष्कार का शोर फैल रहा है.

जिला वन अधिकार समिति के अध्यक्ष जिया लाल नेगी ने कहा, “हमने हाल ही में कांग्रेस और बीजेपी दोनों और उनके उम्मीदवारों सिंह और ठाकुर से अपील की है कि वे जल विद्युत परियोजनाओं और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है लेकिन ये व्यर्थ रहा. स्थानीय मुद्दों की अनदेखी की जा रही है. दूसरी ओर बीजेपी मोदी सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों और कोविड के टीकाकरण पर वोट मांग रही है, जबकि कांग्रेस मूल्य वृद्धि पर जोर दे रही है.”

स्थानीय डीसी कार्यालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के आने के बाद से अकेले किन्नौर जिले से व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकारों के लिए 1 हज़ार 16 दावे दायर किए गए थे. लेकिन उनमें से कोई भी मंजूरी नहीं दी गई थी.

हिम लोक जागृति मंच और जिला वन अधिकार समिति का दावा है कि वन अधिकार अधिनियम को सही भावना से लागू नहीं किया गया था.

संपर्क करने पर कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा सिंह और बीजेपी उम्मीदवार ब्रिगेडियर खुशाल सिंह ठाकुर दोनों ने कहा कि वे मूल निवासियों से संपर्क करेंगे और उन्हें परेशान करने वाले मुद्दों को देखेंगे.

(Photo Credit: The Statesman)

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