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तमिलनाडु: वेल्लोर के आदिवासियों के साथ हो रहा अन्याय, वन विभाग पर लगाया ज़मीन से जबरन बेदख़ली का आरोप

पालमपट्टू पहाड़ियों के ऊपर चिन्नूर में रहने वाले 34 आदिवासियों द्वारा पट्टों के लिए दिए गए आवेदन हाल में खारिज कर दिए गए थे. इसके बाद अमिर्थी रेंज के वन विभाग के कर्मचारियों ने हाल ही में गांव का दौरा कर, इन आदिवासियों से पट्टों के बिना खेती न करने की चेतावनी दी.

तमिलनाडु के वेल्लोर ज़िले की पालमपट्टू पहाड़ियों के ऊपर रहने वाले आदिवासियों ने वन विभाग पर ज्यादती का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि खेती की ज़मीन से बेदख़ल करने के लिए वन विभाग ने उनकी झोपड़ियों को जला दिया.

अब उनकी मांग है कि ज़िला प्रशासन वन विभाग के आरोपी अदिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रावाई करे, और आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत पट्टा देने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए.

पालमपट्टू पहाड़ियों के ऊपर चिन्नूर में रहने वाले 34 आदिवासियों द्वारा पट्टों के लिए दिए गए आवेदन हाल में खारिज कर दिए गए थे. इसके बाद अमिर्थी रेंज के वन विभाग के कर्मचारियों ने हाल ही में गांव का दौरा कर, इन आदिवासियों से पट्टों के बिना खेती न करने की चेतावनी दी.

वन विभाग ने इन आदिवासियों को नोटिस भी जारी किया. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ तमिलनाडु ट्राइबल पीपल वेलफेयर एसोसिएशन का आरोप है कि वन विभाग के अधिकारियों ने आदिवासियों की झोपड़ियों में आग लगा दी.

अब इलाक़े के आदिवासियों और आदिवासी कार्यकर्ताओं की मांग है कि वन और राजस्व विभाग के अधिकारियों की एक समिति का गठन किया जाए, जो ज़मीन का सर्वेक्षण करे और पहाड़ के आदिवासी निवासियों को उनके पट्टे दे.

आदिवासी मानते हैं कि उनका इस ज़मीन पर हक़ है क्योंकि वो पीढ़ियों से यहां खेती कर रहे हैं.

उधर, अमिर्थी वन रेंज अधिकारी मुरुगन ने अखबार को झोपड़ियों में आग लगाने के आरोप को ग़लत बताया है. उनका कहना है कि डीएफओ और एसीएफ के निर्देश पर ही वो गांववालों को नोटिस जारी करने के लिए गए थे.

अमिर्थी वन रेंज के अंतर्गत आने वाली पहाड़ियों में एफआरए के तहत 106 लोगों को पट्टा दिया जा चुका है, जबकि 526 आवेदनों को अब तक खारिज किया गया है. अधिकारियों के मुताबिक़ पालमपट्टू में लगभग 11 आदिवासियों को पट्टा जारी किया गया है, जबकि 52 आवेदन खारिज कर दिए गए.

पट्टों के बिना जंगल की ज़मीन पर खेती करने की अनुमति किसी को नहीं है. खारिज किए गए आवेदनों पर पुनर्विचार के लिए आदिवासियों को आदिवासी कल्याण विभाग से संपर्क करना होगा और आवेदनों की अस्वीकृति के खिलाफ़ अपील दायर करनी होगी.

इसके बाद ही मामले की उचित जांच की जाएगी, और कोई समाधान ढूंढा जाएगा.

(तस्वीर आज के द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपी है.)

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