विलुप्त होने के कगार पर बिरहोर आदिवासी समुदाय की एक 16 साल की लड़की ने मैट्रिक की परीक्षा पास कर इतिहास रच दिया है. झारखंड के हज़ारीबाग में इस आदिम जनजाति से ऐसा करने वाली पायल बिरहोर पहली लड़की बन गई हैं.
बिरहोर देश की 75 आदिम जनजातियों यानि पीवीटीजी में से एक है, जो झारखंड और बिहार के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं.
हज़ारीबाग के 36 बिरहोर बस्तियों में से मैट्रिक की परीक्षा पास करने वाली पायल बिरहोर पहली हैं. उनके पिता अंधनु बिरहोर हैं.
हज़ारीबाग के उपायुक्त आदित्य कुमार आनंद ने मीडिया को बताया कि पायल बिरहोर की इस उपलब्धि के मायने क्या हैं. उनह्नों कहा कि प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद बिरहोर समुदाय के लड़के और लड़कियां स्कूल जाने में हिचकिचाते हैं.
इन हालात में रहने के बावजूद पायल ने न सिर्फ़ स्कूल जाने में दिलचस्पी दिखाई, बल्कि पढ़ाई करने में काफी मेहनत भी की.
पायल की सफ़लता से कुछ उम्मीद बढ़ी है, और प्रशासन उनकी तरह दूसरी बिरहोर लड़कियों को भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए हर ज़रूरी सहायता देंगा. राज्य सरकार पीवीटीजी बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए वित्तीय अनुदान और स्टाइपेंड देती है.
फ़िलहाल, पायल जो सेकंड डिविज़न से पास हुई हैं, उन्हें ज़िला प्रशासन सर्वश्रेष्ठ संस्थान में एडमिशन दिलाने की कोशिश कर रहा है. पायल खुद पनी इस उपलब्धि से काफ़ी खुश हैं.
पायल बिरहोर और उनका परिवार हज़ारीबाग ज़िले के सुदूर कटकमसांडी ब्लॉक के कंडसर में परियोजना उच्च विद्यालय की छात्रा थी, जहां से उसने मैट्रिक की परीक्षा पास की है.
पायल अब आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती हैं. वो दूसरी बिरहोर लड़कियों को भी पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करना चाहती है, जो स्कूल छोड़ चुकी हैं.
हज़ारीबाग में बिरहोर आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 11 हज़ार है.
ज़िले के विनोभा भावे विश्वविद्यालय में ट्राइबल एजुकेशन पढ़ाने वाले विनोद रंजन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि राज्य सरकार ने बिरहोर आदिवासियों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई क़दम उठाए हैं.
कई सुविधाएं इन आदिवासियों को दी गई हैं. लेकिन इसके बावजूद, इन आदिवासियों की पढ़ाई में रुचि बेहद कम है. वो अपना ज़्यादातर समय जंगल जाके शिकार करने या फिर रस्सी बनाने में बिताते हैं.

कौन हैं बिरहोर?
बिरहोर एक आदिम जनजाति है. झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़, उड़ीशा और पश्चिम बंगाल में इनकी कुछ-कुछ आबादी है. लेकिन बिरहोर आदिवासियों की आबादी का बड़ा हिस्सा झारखंड के रांची, हज़ारीबाग़ और सिंहभूमि ज़िलों में है.
1991 में इनकी आबादी क़रीब आठ हज़ार बताई गई. फ़िलहाल ये आबादी 11 हज़ार के आसपास है.
बिरहोर घुमक्कड़ आदिवासी थे, यानि वो एक जंगल से दूसरे जंगल में अपने ठिकाने बनाते रहते. ये आदिवासी लकड़ियों और पत्तों से अपने घर बनाते हैं.
बिरहोर आदिवासियों में कुल साक्षरता दर 15 प्रतिशत के आसपास बताई जाती है. इन हालात में पायल बिरहोर की यह उपलब्धि बेहद अहम मानी जा सकती है.
(इस्तेमाल की गई तस्वीर प्रतीकात्मक है.)