हुनसुर के आदिवासियों ने अपने पुनर्वास में हो रही देरी के चलते कर्नाटक हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार द्वारा पुनर्वास में देरी के बाद इन आदिवासियों ने पत्र लिखकर कोर्ट से राज्य सरकार को निर्देश जारी करने नहीं तो अवमानना कार्यवाही का सामना करने का आदेश जारी करने का अनुरोध किया है.
यह पत्र बुदकट्टू कृषिकर संघ और डेवलपमेंट थ्रू एजुकेशन द्वारा लिखा गया है. इसमें कहा गया है कि मुज़फ्फर असदी समिति की रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार द्वारा 3,428 आदिवासी परिवारों का पुनर्वास किया जाना है, लेकिन इसकी प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है.
इन दो संगठनों के अलावा, 22 बस्तियों में फैले 1,106 परिवारों ने भी अदालत को पत्र लिखकर पुनर्वास प्रक्रिया को जल्द लागू करने में हस्तक्षेप करने की मांग की है.
हाई कोर्ट का आदेश 2009 में जारी किया गया था, जबकि अंतरिम आदेश पारित हुए लगभग 14 वर्ष हो चुके हैं. लेकिन सरकार ने अभी तक ज़मीनी स्तर पर कोई कार्रवाई शुरू नहीं की है.
मुज़फ्फर असदी समिति की रिपोर्ट में 34 सिफारिशें की गई हैं, जिसमें नागरहोल से विस्थापित हर परिवार को पांच एकड़ भूमि का आवंटन शामिल है. यह इसलिए कि नागरहोल को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित इलाक़ा घोषित कर दिया गया था.
हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, नागरहोल के आदिवासियों के पुनर्वास पर पब्लिक पॉलिसी के सुझावों और सिफारिशों पर अंतिम रिपोर्ट 2014 में पेश की गई थी. इस रिपोर्ट के बाद भी सात साल बीत चुके हैं, लेकिन योजना लागू नहीं हुई है.
अंतिम रिपोर्ट में कहा गया था कि अधिकारियों द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए एक सचेत प्रयास किया जाना चाहिए कि जहां तक संभव हो, पुनर्वास एक भागीदारी तरीके से किया जाए. खासकर जब पुनर्वास के लिए नई जगहों के चयन की बात हो.
इस रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया था कि चुनी गई जगह के आसपास जंगल जैसा ही माहौल हो, न कि सूखी ज़मीन. इसके अलावा आदिवासियों पर अपनी संपत्ति बेचने की रोक लगनी चाहिए, और इसकी सब-लेटिंग पर भी प्रतिबंध हो.
रिपोर्ट में यह भी सिफ़ारिश था कि आदिवासियों को खेती में ज़रूरी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. इसके अलावा खेती का मौसम शुरू होने से पहले सॉफ्ट लोन का विस्तार, और हर बस्ती के लिए एक ट्रैक्टर का प्रावधान होना चाहिए.