तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने हरिनसिंगा के आदिवासियों और उनके नेताओं से शुक्रवार को मुलाकात की. बैठक में देवचा-पचामी कोयला खदान के लिए आदिवासियों की जमीन और उन्हें दिए जाने वाले पुनर्वास पैकेज पर चर्चा हुई.
दरअसल, गुरुवार को हरिनसिंगा के आदिवासी निवासियों के एक समूह, जो बीरभूम की प्रस्तावित देवचा-पचामी कोयला खदान साइट का हिस्सा है, ने घोषणा की थी कि वो परियाजना के खिलाफ हैं, और उसके लिए अपनी जमीन नहीं देंगे.
पश्चिम बंगाल सरकार ने कुछ दिन पहले ही देवचा-पचामी कोयला खदान से जुड़े मुआवजा पैकेज की घोषणा की थी. उसके बाद यह पहला मौका था है जब परियोजना क्षेत्र में रहने वाली आदिवासी आबादी का एक वर्ग प्रस्तावित कोयला खदान के खिलाफ खुलकर सामने आया था.
शुक्रवार को बैठक में आदिवासियों ने कुछ और शर्तें सरकार के सामने रखी हैं.सरकार दो आदिवासी बस्तियों – हरिनसिंगा और दीवानगंज से सटी जमीन पर खनन शुरू करना चाहती है.
“गाँव (आदिवासी बस्ती) के मुखिया के रूप में, मैंने प्रस्तावित कोयला खदान के बारे में स्थानीय लोगों के मन को समझने के लिए बैठक बुलाई थी। बैठक में हिस्सा लेने वाले सभी लोगों ने फैसला लिया कि हम क्षेत्र में कोई कोयला खदान नहीं चाहते हैं. हम यहां वैसे ही रहना चाहते हैं जैसे हम अभी रह रहे हैं. कोई भी पैकेज पर चर्चा करने के लिए सहमत नहीं हुआ,” हरिनसिंगा के ग्राम प्रधान जोसेफ मरांडी ने द टेलीग्राफ से कहा.
परियोजना के विरोध और पुनर्वास पैकेज पर विचार करने से इनकार करने के पीछे की वजह के बारे में मरांडी कहते हैं, “यहां हम एक खुले वातावरण में रहते हैं. हमारे पास घर, खुला मैदान और जंगल हैं, जिन्हें हम छोड़ना नहीं चाहते.”
हरिनसिंगा ग्रामीणों की प्रतिक्रिया के बावजूद, बीरभूम के जिला मजिस्ट्रेट बिधान रे ने कहा था कि सरकार उनकी बात सुनेगी और परियोजना और सरकार के पैकेज के बारे में उनकी चिंताओं को दूर करने का प्रयास करेगी.
देवचा-पचामी कोयला खदान राज्य का सबसे बड़ा कोयला ब्लॉक है और पत्थर की परत के नीचे लगभग 2.2 बिलियन टन कोयले का भंडार है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 9 नवंबर को मेगा प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास पैकेज की घोषणा की थी. इसके तहत प्रभावित होने वाले हर परिवार के एक सदस्य को जूनियर कांस्टेबल की सरकारी नौकरी और सरकार की जमीन की दरों को बात थी. 19 नवंबर को रे की अध्यक्षता में वरिष्ठ जिला अधिकारियों ने आदिवासी ग्राम प्रधानों को पुनर्वास पैकेज की प्रतियां तीन भाषाओं में सौंपी थीं.
अब आदिवासी चाहते हैं की उनके जमीन देने से पहले उन्हें सरकारी नौकरी दी जाए.
अधिकारियों का मानना है कि आदिवासियों के फैसले के पीछे अवैध खदान मालिकों के हाथ है, जो अपने निजी स्वार्थ के लिए ग्रामीणों को उकसा रहे हैं.
हालांकि, बीरभूम आदिवासी गांव के नेता रबिन सोरेन ने कहा कि यह ग्रामीणों का सोचा समझा फैसला है. उन्होंने बताया कि पैकेज को लेकर ग्रामीणों में काफी चिंताएं हैं.
राज्य सरकार के भूमि विभाग ने ग्रामीणों के लैंड रिकॉर्ड को ठीक करने के लिए देवचा-पचामी के ग्राम पंचायत क्षेत्रों में शिविर लगाना शुरू कर दिया था. हिंगलो ग्राम पंचायत कार्यालय में गुरुवार को कैंप लगाया गया जहां 50 ग्रामीणों ने जमीन संबंधी कागजात जमा किए.