एक साल पहले त्रिपुरा के 13 वस्तु सहित यहां के मशहूर अनानास को जीआई टैग (GI Tag) मिला था. अब त्रिपुरा के आदिवासियों की पहचान रीसा को भी जीआई टैग मिल गया है.
राज्य के 19 आदिवासी समुदायों में इसे पांरपरिक कपड़े के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. प्रत्येक आदिवासी समुदायों के रीसा में अलग-अलग डिजाइन बनाए जाते है. जो इनकी पहचान से जुड़ा होता है.
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री, माणिक साह ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “ त्रिपुरा रीसा को जीआई टैग मिला है. सभी कारीगरों को हार्दिक बाधाई. जीआई टैग मिलने से हमारे रीसा को निशचित रूप से अंतराष्ट्रीय पहचान मिलेगी.
चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह भी दावा किया गया की जब से बीजेपी-आईपीएफटी की सरकार बनी है. तब से ही पार्टी आदिवासियों के रीसा को राज्य की पहचान के रूप में बढ़ावा दे रही है. जब प्राधनमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह राज्य का दौरा करने आए थे. उनका सम्मान रीसा से ही किया गया था.
रीसा आदिवासी महिलाओं के पांरपरिक कपड़ों से जुड़ा हुआ है. पांरपरिक तौर पर राज्य की महिलाओं के पहनावे में तीन कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता था. जिनमें रीसा, रिग्गनाई और रिकुतु शामिल है.
रिग्गनाई का अर्थ है साड़ी और इसे साड़ी की तरह ही लपेटा जाता है. रिकुतु को त्रिपुरा महिलाएं चुन्नी की तरह अपनी साड़ी के ऊपर ओढ़ती है. नए-नवेली दुल्हन को भी शगुन के तौर पर रिकुतु ओढ़ाई जाती है
इसके बाद आता है रीसा, जिसे शॉल की तरह इस्तेमाल किया जाता है और इसे सामान देने के लिए भी ओढ़ाते है.
रीसा को हाथों से बुना जाता है. रीसा पर अलग-अलग तरह के रंग के धागों का इस्तेमाल, इसे और भी आकर्षक बना देता है.
12 से 14 साल की उम्र में लड़कियों को सबसे पहले रीसा सोरमानी नामक एक कार्यक्रम में पहनने के लिए दिया जाता है.
रीसा का इस्तेमाल मुख्य तौर पर धार्मिक त्योहारों में किया जाता है. आदिवासी समुदायों द्वारा गरिया पूजा, शादियों के पंरपराओं में यह एक महत्वपूर्ण कपड़ा है.
रीसा को त्योहारों के दौरान पुरुषों द्वारा पगड़ी के रूप में पहनना जाता है. इसके अलवा धोती के ऊपर कमरबंद, युवा लड़कियों और लड़कों द्वारा सिर पर दुपट्टा और सर्दियों के दौरान मफलर के रूप में रीसा का इस्तेमाल होता है.