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‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग को लेकर त्रिपुरा के आदिवासी दलों का दिल्ली में प्रदर्शन

TIPRA और IPFT दोनों क्षेत्रीय दलों ने हाल ही में संपन्न टीटीएएडीसी चुनावों में एक-दूसरे के खिलाफ अपने उम्मीदवारों को कट्टर-प्रतिद्वंद्वी के तौर पर खड़ा किया था.

त्रिपुरा में एक अलग राज्य की मांग को लेकर जन आंदोलन और तेज हो रहा है. सत्तारूढ़ बीजेपी के सहयोगी IPFT सहित दो आदिवासी-आधारित दलों ने मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में “ग्रेटर टिपरालैंड” (आदिवासियों के लिए एक बड़ा क्षेत्र) की मांग को लेकर दो दिवसीय प्रदर्शन शुरू किया है.

त्रिपुरा के शाही वंशज प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मन के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) और तिप्राहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (TIPRA) ने जंतर-मंतर दिल्ली में अपना दो दिवसीय धरना शुरू किया.

उनके नेताओं के नेतृत्व में दो आदिवासी आधारित दलों के सैकड़ों सदस्यों ने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया. जहां कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश और राज्यसभा में शिवसेना की उप नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने भाग लिया.

टीआईपीआरए के प्रवक्ता कमल कोलोई ने कहा कि उन्होंने पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने की योजना बनाई थी ताकि उन्हें अपनी मांग से अवगत कराया जा सके. लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने संकेत दिया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने “आदिवासी नेताओं से मिलने की इच्छा व्यक्त की है”.

कोलोई ने IANS को फोन पर बताया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बुधवार को प्रदर्शन स्थल पर अपनी एकजुटता व्यक्त करने आ सकते हैं.

त्रिपुरा के तत्कालीन राजघराने के प्रमुख देब बर्मन ने मंगलवार को कहा कि समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास और पारंपरिक जीवन, संस्कृति और रीति-रिवाजों की सुरक्षा के लिए “ग्रेटर टिपरालैंड” आवश्यक है और यह भारतीय संविधान के तहत किया जा सकता है.

बीजेपी, माकपा और कांग्रेस सहित अधिकांश राष्ट्रीय दल “ग्रेटर टिपरालैंड” की मांग का विरोध कर रहे हैं. जबकि इस मांग ने मिश्रित आबादी वाले त्रिपुरा में भारी संदेह और भय पैदा कर दिया है.

देब बर्मन ने ट्वीट किया, “दिल्ली हमारी बात सुनो! हम यहां अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग करने आए हैं. ग्रेटर टिपरालैंड में सभी का स्वागत है.”

देब बर्मन ने पहले आईएएनएस को बताया था, “ग्रेटर टिपरालैंड’ अवधारणा के तहत, आठ पूर्वोत्तर राज्यों और बांग्लादेश सहित पड़ोसी देशों में रहने वाले स्वदेशी आदिवासियों के सर्वांगीण सामाजिक आर्थिक विकास के लिए एक शक्तिशाली परिषद का गठन किया जाएगा. ऐसी परिषदें यूरोपीय देशों में मौजूद हैं। हम आदिवासियों की मूलभूत समस्याओं का स्थाई समाधान चाहते है.”

IPFT जो 2009 से TTAADC को अपग्रेड करके एक अलग राज्य के निर्माण के लिए आंदोलन कर रहा है, जिसका अधिकार क्षेत्र त्रिपुरा के 10,491 वर्ग किमी के दो-तिहाई से अधिक है. क्षेत्र और 12,16,000 से अधिक लोगों का घर है जिनमें से 90 फीसदी आदिवासी हैं.

TTAADC, जिसे जून 1985 में आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत गठित किया गया था, को अपने अधिकार क्षेत्र और संवैधानिक शक्ति के मामले में त्रिपुरा की एक मिनी-विधान सभा माना जाता है.

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