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4 पुलिसकर्मियों के दो साल के लंबे प्रयास से केरल में मुथुवन समुदाय की चिंताओं को उजागर करने में मिली मदद

राज्य पुलिस ने एक विशेष आदिवासी खुफिया टीम को उपद्रवियों को बस्ती से बाहर निकालने के लिए तैनात किया. यह टीम साल 2012 में छह सदस्यों के साथ स्थापित की गई थी. जिसमें से दो सदस्यों के पीछे हटने के बाद इस टीम में चार लोग बच गए थे.

कई आदिवासी इलाकों, बस्तियों में बुनियादी सुविधाएं नहीं होने के चलते अपराध होने पर आदिवासी रिपोर्ट लिखाने भी नहीं जाते है. ऐसा ही एक मामला करेल के एक आदिवासी गांव से जुड़ा हुआ है.

केरल में एक समय था जब बाहरी लोग अपने छिपे हुए एजेंडे को अंजाम देने के लिए दुर्गम इलाके और अशिक्षित लोगों का फायदा उठाकर एडामालक्कुडी आदिवासी बस्ती (Edamalakkudy tribal settlement) के कमजोर मुथुवन समुदाय (Muthuvan community) में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे.

तभी राज्य पुलिस ने एक विशेष आदिवासी खुफिया टीम को उपद्रवियों को बस्ती से बाहर निकालने के लिए तैनात किया.

साल 2012 में स्थापित छह सदस्यों वाली टीम में दो सदस्यों के पीछे हटने के बाद इस टीम में चार लोग बच गए थे. फिर भी दो महिला अधिकारियों वाला समूह, आदिवासी लोगों तक उनकी जरूरतों और शिकायतों को समझने के लिए पहुंचने के लिए दृढ़ था.

उनके लगभग दो साल लंबे प्रयास का परिणाम, जो 2016 में शुरू हुआ था, राज्य की पहली आदिवासी पंचायत पर पहली आधिकारिक पुलिस रिपोर्ट थी.

उनका अध्ययन अब राज्य सरकार और अन्य विभागों द्वारा आदिवासी समुदायों के लिए कल्याणकारी परियोजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में उपयोग किया जाता है.

मुन्नार पुलिस स्टेशन के तत्कालीन उप निरीक्षक पाकुरुदीन ए एम, मुन्नार क्षेत्र में जनमैत्री पुलिस के रूप में काम करने के बाद, मुन्नार स्टेशन के सिविल अधिकारियों मधु वी के (एएसआई), लाइजामोल के एम और खदीजा बीवी को क्षेत्र के बारे में उनके ज्ञान को ध्यान में रखते हुए चुना गया था.

मुन्नार पुलिस स्टेशन के उप निरीक्षक का अनुभव

मुन्नार पुलिस स्टेशन के उप निरीक्षक पाकुरुदीन ए एम (Pakurudeen A M) ने एडामलक्कुडी इलाके की समस्या बताते हुए कहा कि हालांकी एडामलक्कुडी में स्थानीय लोग उन सभी को जानते थे लेकिन जनजातीय पंचायत पर एक व्यापक प्रत्यक्ष रिपोर्ट तैयार करने का कार्य स्थान की सुदूरता के कारण चुनौतीपूर्ण साबित हुआ क्योंकि यह मुन्नार से लगभग 36 किमी दूर जंगल के अंदर है.

एडामलक्कुडी ऐसी जगह में स्थित है जहां से शहर तक जाने के परिवहन कमी के साथ ही नेटवर्क और संचार सुविधाओं की भी कमी है.

इसके अलावा मुन्नार से बस्ती तक आने-जाने में चार से पांच दिन लग जाते थे. इसमें इदामालक्कुडी पंचायत के 28 बस्तियों से होकर प्रतिदिन 20-30 किमी की यात्रा करनी पड़ती थी.

परिवार के सदस्यों से बात करने के लिए उन्हें तमिलनाडु से आने वाले नेटवर्क सिग्नलों पर निर्भर रहना पड़ता था. जिन तक केवल पहाड़ी चोटियों, वन सीमा बिंदुओं और यहां तक कि पेड़ों की चोटी जैसे ऊंचे स्थानों पर ही पहुंचा जा सकता था.

उप निरीक्षक पाकुरुदीन ए एम ने बताया कि ज्यादातर बस्तियां 8 से 10 किलोमिटर की दूरी थी और यहां पर भोजन और अन्य सामान सिर पर लेकर जाना पड़ता था.

इसके साथ ही“वॉकी-टॉकी भी उन्हें उन लोगों के लिए कनेट करता थे जो जंगल में फंस गए थे या रास्ता भटक गए थे.

टीम से अलग होना एक नियमित घटना थी, खासकर जब रास्ते में जंगली जानवर दिखाई देने पर सदस्य भाग जाते थे.

आदिवासियों की फेक रिपोर्ट

पाकुरुदीन ए एम ने बताया कि साल 2012 में एडामलक्कुडी में गरीबी से होने वाली मौतों और हत्याओं पर फर्जी रिपोर्टें सामने आई.

जो आदिवासी लोगों को सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए बाहरी ताकतों की एक बड़ी साजिश का हिस्सा थीं. आदिवासियों की ऐसी रिपोर्टों का मुकाबला करने के लिए पहला कदम समुदाय की जनसंख्या को समझना था.

सभी आदिवासी घरों का दौरा करके और बच्चों के साथ ही लोगों के लापता होने की रिपोर्टों के बारे में पूछताछ करके पाकुरुदीन ए एम ने 24 बस्तियों के आदिवासी लोगों की गिनती की तो पता चला उसमें 4 लोग वहां के रहने वाले नहीं थे.

इसके अलावा पाकुरुदीन ए एम भी उनके बीच रहे और उनकी संस्कृति, मान्यताओं और प्रथाओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है.

तैयार कि गई रिपोर्ट ने बस्ती में महिलाओं के बीच माला-डी गर्भनिरोधक गोलियों के व्यापक उपयोग के परिणामस्वरूप कम जन्म दर और बांझपन की प्रमुख समस्या को उजागर किया.

इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग द्वारा वालपराई, मुन्नार और मरयूर क्षेत्रों में फार्मेसियों को गोली की आपूर्ति रोकने के प्रयास किए गए, जहां से आदिवासी लोग इसे प्राप्त करते थे.

मुन्नार पुलिस स्टेशन के उप निरीक्षक ने कहा कि मुथुवन भरोसेमंद लोग हैं. यहां तक कि बस्ती में रहते हुए भी, जहां बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है, हम सुरक्षित महसूस करते थे.

साल 2018 में इडुक्की एसपी को सौंपी गई रिपोर्ट में पाकुरुदीन ए एम के सुझावों में बस्ती में एक पुलिस चौकी और एक पंचायत कार्यालय खोलना शामिल था. लेकिन इन्हें अभी तक लागू नहीं किया गया है.

इसके साथ ही कुछ बस्तियों में 4जी और बिजली कनेक्टिविटी है. लेकिन कई अन्य सुविधाएं निवासियों के लिए दूर का सपना बनी हुई हैं.

राज्य सरकार ने साल 2018 में टीम के सदस्यों को सम्मानित किया. मधु (उप निरीक्षक) और लाइजा (वरिष्ठ नागरिक अधिकारी – गुलाबी गश्ती) मुन्नार स्टेशन पर काम करना जारी रखा है, जबकि खदीजा को इडुक्की के वेल्लाथुवल स्टेशन पर सहायक उप निरीक्षक के रूप में तैनात किया गया है.

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