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डीयू में नहीं पढ़ाई जाएगी ‘द्रौपदी’, दो दलित लेखकों को भी कोर्स से बाहर किया

सदस्यों ने आरोप लगाया है कि निगरानी समिति ने हमेशा से दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को लेकर पूर्वाग्रह का रवैया अपनाया है. उसने हमेशा पाठ्यक्रम से ऐसी आवाजें हटाने की कोशिशें की हैं.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के एकेडमिक काउंसिल के कुछ सदस्यों ने बीए (ऑनर्स) के कोर्स से महाश्वेता देवी की कहानी और दो दलित लेखकों को हटाने का विरोध किया है. काउंसिल ने कोर्स से महाश्वेता देवी की कहानी ‘द्रौपदी’ को हटाने को मंजूरी दे दी है. साथ ही दो और दलित लेखकों भी हटा दिया है, जिसके बाद विरोध शुरू हो गया है. सदस्यों ने काउंसिल के सदस्यों पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है.

डीयू एकेडमिक काउंसिल के 14 सदस्यों ने आपत्ति जताते हुए नोटिस दिया है और लिखा है कि ये पाठ्यक्रम के साथ ‘बर्बरता’ है. इस नोट में लिखा है कि कमेटी ने दो दलित लेखकों बामा और सुकीरथरिणी को हटा दिया है और उनकी जगह ऊंची जाति की लेखक रमाबाई को जगह दे दी गई. यह कहानी आदिवासी औरतों के शोषण के मसले को उठाती है. इस कहानी की नायिका ‘द्रौपदी’ एक संथाल लड़की है जो अपने समुदाय के उत्पीड़न करने वालों से मुकाबला करती है.

इस कहानी पर आधारित एक नाटक भी लिखा गया है जिसका मंचन काफ़ी लोकप्रिय माना गया था. 

सदस्यों ने आपत्ति जताते हुए नोट में लिखा है कि कमेटी ने बिना कुछ सोचे-समझे मनमाने ढंग से महाश्वेता देवी की लघु कहानी द्रौपदी को पाठ्यक्रम से हटाने को कह दिया है. ये कहानी डीयू के पाठ्यक्रम में 1999 से शामिल थी. 

सदस्यों का कहना है कि कमेटी ने महाश्वेता की कोई और दूसरी लघु कहानी को भी शामिल करने से इनकार कर दिया.

सदस्यों ने आरोप लगाया है कि निगरानी समिति ने हमेशा से दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को लेकर पूर्वाग्रह का रवैया अपनाया है. उसने हमेशा पाठ्यक्रम से ऐसी आवाजें हटाने की कोशिशें की हैं. आरोप ये भी है कि समिति में कोई भी दलित या आदिवासी समुदाय का सदस्य नहीं है.

शैक्षणिक परिषद के सदस्य मिठूराज धूसिया ने कहा, “हम निरीक्षण समिति के इस फैसले का कड़ा विरोध करते हैं, जिन्होंने मनमाने ढंग से फैकल्टी, कोर्स कमेटी और स्थाई समिति जैसे वैधानिक निकायों को दरकिनार करते हुए पाचवें सेमेस्टर के लिए नए अंडरग्रैजुएट लर्निंग आउटकम्स बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क (LOCF) पाठ्यक्रम में बदलाव किए हैं.”

मिठूराज धूसिया ने कहा कि मल्टीपल एंट्री एंड एग्जिट स्कीम्स (MEES) या अन्य एजेंडा मदों के साथ चार साल के अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम (FYUP) के मामले पर शैक्षणिक परिषद में पर्याप्त चर्चा की अनुमति नहीं थी.

उन्होंने कहा, “इस दौरान मतदान की अनुमति नहीं दी गयी थी और निर्वाचित सदस्यों को असहमति नोट जमा करने के लिए कहा गया था. यह वैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन है. स्थाई समिति में 27 सदस्यों के साथ चर्चा 100 से अधिक सदस्यों के साथ शैक्षणिक परिषद में हुई चर्चा के जैसा नहीं है.”

उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि एफवाईयूपी मॉडल को लेकर डीयू प्रशासन में विश्वास की कमी है और वह इन महत्वपूर्ण मुद्दो से निपटने से बच रहे हैं.

वहीं इन आरोपों पर निगरानी समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर एमके पंडित ने न्यूज एजेंसी से कहा, “मुझे नहीं पता कि वो लेखक दलित थे. अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष मीटिंग में मौजूद थे. क्या वो अपने विषय के एक्सपर्ट नहीं हैं. आर्ट्स, सोशल साइंस के डीन भी मीटिंग में थे. क्या वो एक्सपर्ट नहीं हैं? लोकतंत्र में असहमति होना लाजमी है. वो हमारे कलीग हैं और हम उनके विचारों का सम्मान करते हैं.” उन्होंने कहा कि कुछ कहानियां सालों से पढ़ाई जा रही हैं, जिनमें अब बदलाव होना तय है.

मंगलवार को 12 घंटे चली लंबी बैठक के बाद एकेडमिक काउंसिल ने 2022-23 के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को लागू करने की मंजूरी भी दे दी. साथ ही 4 साल के यूजी प्रोग्राम को भी मंजूर कर लिया गया.

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