School with a difference – कहने, सुनने में यह बात भले ही अच्छी लगती हो, लेकिन जब कोई स्कूल इसलिए अलग है कि उसकी इमारत खस्ता हाल में है जिससे बच्चे खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हों, तो आप क्या कहेंगे?
मौसम चाहे जैसा भी हो, इस स्कूल के करीब 30 छात्र बाहर बैठकर पढ़ाई करते हैं. अफसोस को बात यह है कि आदिवासी भारत के इस स्कूल की स्थिति अनोखी नहीं है. आदिवासी इलाकों में अकसर स्कूल समेत बाकि बुनियादी सुविधाओं का लगभग यही हाल है.
सरकारें आती हैं, बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन आदिवासी गांवों में कुछ नहीं बदलता है. और जो आदिवासी पहाड़ों पर बसे हैं, उनका हाल तो पूछिए भी मत.
आज हम विशाखापत्तनम के एजेंसी इलाके के ऐसे ही आदिवासी गांवों की बात कर रहे हैं. इन बस्तियों के लिए बुनियादी ढांचा भी एक सपना ही है.
जिस स्कूल की यह तस्वीर है, वहां रोमपल्ली पंचायत, अनंतगिरी मंडल के बुरिगा और गुडेम गांवों के आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं. जब बरसात होती है तो ये बच्चे घर पर ही रहते हैं.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गांव के स्वयंसेवक अप्पाला राजू का कहना है कि स्कूल के लिए 2.5 लाख रुपये की लागत से एक इमारत बनाने को मंजूरी दी गई थी. लेकिन ठेकेदार ने 2013-14 में नींव रखने के बाद निर्माण का काम छोड़ दिया.
स्कूल में दो शिक्षक कक्षा एक से पांच तक के छात्रों को पढ़ाते हैं. विद्या समिति के अध्यक्ष बी वीरैया का कहना है कि इमारत का न होना बच्चों की प्राथमिक शिक्षा पर असर डाल रहा है.
इनमें से 16 स्कूलों की इमारत नहीं है. इनमें पेड्डा कोटा पंचायत के टोमेकोटा, टुनिसिबू, मडेलु और पाटीपल्ली के, और रोमपल्ली पंचायत के गुडेम और बुरिगा और पिनाकोटा पंचायत के बोनुरु के स्कूल शामिल हैं.
चक्रवात हुदहुद ने एजेंसी के 67 स्कूलों की टिन की छतें उड़ा दीं. छतों की मरम्मत 59.65 लाख रुपये की लागत से की गई. इसके अलावा 150 स्कूलों में शौचालय हैं, जबकि सिर्फ 50 में ही बहता पानी उपलब्ध है.
अप्पाला राजू ने कहा कि उन्होंने अरकू विधायक चेट्टी पालगुना को उनके हालिया दौरे के समय बुरुगा के छात्रों की दुर्दशा से अवगत कराया था. पालगुना ने आदिवासी बच्चों की मुश्किलों का समाधान करने के लिए कार्रवाई शुरू करने का वादा भी किया.
स्कूल भवनों की कमी और उचित सड़क नेटवर्क विशाखा एजेंसी में आदिवासी बच्चों की प्राथमिक शिक्षा को प्रभावित कर रहा है.
बिना सड़कों वाले गांवों की पहचान