HomeAdivasi Dailyपश्चिम बंगाल: आदिवासी पहचान के चलते महिला प्रोफेसर की हो रही रैगिंग

पश्चिम बंगाल: आदिवासी पहचान के चलते महिला प्रोफेसर की हो रही रैगिंग

राज्य में इस तरह का यह पहला मामला नहीं है. पिछले साल जादवपुर विश्वविद्यालय (JU) में एक एसोसिएट प्रोफेसर, मरूना मुर्मू को सोशल मीडिया पर जातिवादी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था.

पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर जिले के सबांग सजनिकंता महाविद्यालय के एक आदिवासी सहायक प्रोफेसर ने एक सहकर्मी और कॉलेज के प्रिंसिपल द्वारा पिछले कुछ महीनों से अपनी आदिवासी पहचान के कारण “रैगिंग” करने का आरोप लगाया है जिससे वह मानसिक तनाव में है.

दरअसल कॉलेज में बंगाली की सहायक प्रोफेसर पापिया मंडी ने आरोप लगाया कि उनके साथ “काफी समय से” रैगिंग की जा रही थी. लेकिन यह 11 सितंबर को एक घटना के दौरान बढ़ गया जब उन्होंने एक ऑनलाइन वाइवा परीक्षा के दौरान एक छात्र से आदिवासियों को परिभाषित करने के लिए कहा.

पापिया मंडी ने दावा किया कि उनके एक सहयोगी निर्मल बेरा जो उसी वाइवा पैनल में थे ने कथित तौर पर आदिवासी को “प्राचीन काल से भूमि के निवासी” के रूप में परिभाषित करते हुए छात्र के जवाब को काट दिया और इसके बजाय कहा कि आदिवासी वे थे जो “एक पेड़ की शाखा से दूसरी पर कूदते थे”.

मंडी ने कथित तौर पर 36 छात्रों के सामने बयान दिया, “मुझे एक साल से मेरे वेतन का भुगतान नहीं किया गया और सिर्फ डेढ़ महीने का मातृत्व अवकाश दिया गया था जिससे मैं बीमार हो गई थी. लेकिन ऐसा लगता है कि यह पीड़ा पर्याप्त नहीं थी.”

उन्होंने कहा, “मुझे एक साल का वेतन नहीं मिलने का क्या कारण है जबकि मेरे साथ सेवा में शामिल होने वाले सभी लोगों को पहले ही वेतन मिल गया है?”

पापिया मंडी ने कहा कि प्रिंसिपल स्वपन केआर दत्ता ने “खुले तौर पर आरोपी प्रोफेसर का पक्ष लिया और उन्हें शिक्षक परिषद के प्रमुख के रूप में पदोन्नत किया”. हालांकि इस मुद्दे पर कॉलेज के अधिकारियों द्वारा एक जांच समिति का गठन किया गया था.

15 सितंबर को शिक्षक परिषद की एक बैठक में निर्मल बेरा ने कथित तौर पर पापिया मंडी से बिना शर्त माफी मांगने या लिखित रूप में माफी मांगी मांगने से इनकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने तृणमूल कांग्रेस मंत्री मानस भुनिया और कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष को घटना की जानकारी दी. हालांकि उन्होंने आरोप लगाया कि उसके बाद उसकी “रैगिंग और प्रिंसिपल का दबाव” काफी हद तक बढ़ गया.

राज्य में इस तरह का यह पहला मामला नहीं है. पिछले साल जादवपुर विश्वविद्यालय (JU) में एक एसोसिएट प्रोफेसर, मरूना मुर्मू को सोशल मीडिया पर जातिवादी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद इस विषय पर राज्य के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा एक जागरूकता अभियान चलाया गया. जेयू की एंटी रैगिंग कमेटी ने मुर्मू के पक्ष में राय दी थी। हालांकि इस नए मामले में अभी तक कॉलेज प्रशासन की ओर से पापिया मंडी के पक्ष में ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है.

मंडी ने राज्य के शिक्षा मंत्री को भी लिखा और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पुलिस से संपर्क किया है.

29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक असंबंधित मामले में कहा था कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार “अतीत की बात नहीं है”.

(तस्वीर प्रतिकात्मक है)

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