HomeAdivasi Dailyतीन बार फंड मिलने के बाद भी पूरनापाडु पुल अधूरा क्यों है?

तीन बार फंड मिलने के बाद भी पूरनापाडु पुल अधूरा क्यों है?

एक आदिवासी इलाके में 1996 में नाव पलटने के हादसे में 32 आदिवासी मारे गए तो एक पुल का प्रस्ताव तैयार हुआ, लेकिन अफ़सोस कि यह प्रस्ताव लगभग तीन दशक बाद भी सिर्फ फ़ाईलों में ही धूल खा रहा है. उधर आदिवासी को अपनी जान जोख़िम में डालनी पड़ रही है.

आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम‑मन्यम ज़िले के कोमाराडा मंडल में रहने वाले आदिवासी बुधवार यानी 2 जुलाई 2025 को बाकी दुनिया से कट गए हैं. दरअसल अचानक इस इलाके में बाढ़ आ गई है.

ओडिशा से बहने वाली नागावली नदी यहां से गुज़रती है और उस नदी में बारिश की वजह से उफान आया हुआ है.

इस वजह से कोट्टु, पूरनापाडु, लाबेसु समेत कम से कम नौ आदिवासी गांवों का मंडल मुख्यालय से संपर्क पूरी तरह टूट गया.

क्योंकि नदी में उफ़ान है और बाढ़ के हालात बने हुए हैं इसलिए स्थानीय आदिवासी अपने ज़रूरी काम के लिए भी मंडल मुख्यालय नहीं पहुंच पा रहे हैं.

इन हालातों में अगर कोई आदिवासी बेहद ज़रूरी काम से नदी पार जाना चाहता है तो उसे नदी के दो किनारों में बांधी गई रस्सियों का सहारा लेना पड़ रहा है.

लोग तेज़ धार में अपने सामान को सिर या कंधे पर रखकर जान का जोखिम उठाकर नदी पार कर रहे हैं.

इस इलाके से मिल रही रिपोर्ट्स के अनुसार, पहले एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (Integrated Tribal Development Agency) द्वारा मानसून में चलाई जाने वाली नाव सेवा 2025 में उपलब्ध नहीं कराई गई.

यहां के ग्रामीणों का कहना है कि पिछली नाव खराब हो गई थी. इसके बाद कई बार मांग करने पर भी न तो उसकी मरम्मत करवाई गई और न ही नई नाव उपलब्ध करवाई गई.

कोट्टु गांव के निवासियों का कहना है कि 2024 तक चल रही नाव सेवा को निलंबित कर दिया गया और उन्हें जोखिम लेकर रस्सियों के सहारे नदी पार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

वर्तमान हालात में ये आदिवासी गांव शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और रोज़गार सहित सभी बुनियादी सेवाओं से कटे हुए हैं.

इस स्थिति के बाद, पूरनापाडु–लाबेसु पुल की वर्षों से दबाई गई माँग फिर से ज़ोर पकड़ने लगी है.

इस पुल का प्रस्ताव 1996 में तब रखा गया था, जब नागावली नदी में देसी नाव पलटने से 32 आदिवासियों की मौत हो गई थी.

इसके बाद 2006 में ₹3.5 करोड़ की प्रारंभिक लागत के साथ काम शुरू हुआ लेकिन निर्माण बीच में ही रोक दिया गया.

2016 में इसे ₹7 करोड़ और फिर 2021 में ₹14 करोड़ की नई मंजूरी मिली. लेकिन तब भी भूमि पर कोई कार्य शुरू नहीं हुआ.

इस लंबित पुल को पूरा कराने के लिए आदिवासी समुदाय ने 26 मई 2025 को कोमाराडा मंडल कार्यालय के आगे विरोध प्रदर्शन भी किया गया.

स्थानीय नेता के. सांबा मूर्ति और पूर्णपाडु-लाबेसु वन्थेना साधना समिति ने आने वाले मानसून से पहले पुल निर्माण की मांग को लेकर सरकार पर दबाव डाला.

नागावली नदी 256 किमी लंबी है. यह भारत के ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों से होकर बहती है, जिसमें से लगभग 161 किलोमीटर ओडिशा में और बाकी 95 किलोमीटर आंध्र प्रदेश में है.

यह नदी मानसून में उफान पर आ जाती है और इससे पार्वतीपुरम‑मन्यम जैसे आदिवासी इलाकों का संपर्क मुख्यालय, स्कूल और अस्पतालों  टूट जाता है.

इस इलाके के आदिवासी इस संकट की गहराई समझाते हुए बताते हैं कि न तो प्राथमिक नाव सेवा है और न ही पुल निर्माण की कोई व्यवस्था. इसलिए वे हर दिन जान जोखिम में डालकर विद्यालय, अस्पताल और मंडल मुख्यालय तक पहुंच रहे हैं.

उन्होंने राज्य सरकार और जिला प्रशासन से दो मांगें की हैं.

इन आदिवासियों की पहली मांग नाव सेवा को तुरंत बहाल करने की है. क्योंकि पुल बनेगा भी तो भी उसमें समय लगेगा.

उनकी दूसरी मांग है कि अधूरा पड़ा पूरनापाडु–लाबेसु पुल अगले मानसून से पूरा किया जाए.

मानसून हर साल आता है और ऐसे हालात भी हर साल ही बन जाते हैं. यहां अभी तक नाव के सहारे काम चल रहा था लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि पुल की ज़रूरत नहीं है.

आदिवासियों की मांग है कि बजट से आगे बढ़कर सरकार को ज़मीनी स्तर पर पुल निर्माण का काम जल्द से जल्द पुरा करना चाहिए.

(Image is for representation purpose only)

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