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माल पहाड़िया आदिवासियों का जीवन छोटा क्यों हो रहा है, अब होगा शोध

भारत की आइसीएमआर (ICMR) और स्वीडन की शोध संस्थान फोर्टे (Forte) दोनों मिलकर झारखंड के माल पहाड़िया और स्वीडन की सामी जनजाति की लाइफ एक्सपेक्टेंसी पर शोध करेंगे. यह पाया गया है कि माल पहाड़िया आदिवासी अन्य समुदायों की तुलना में काफी कम जी रहे हैं.

झारखंड के माल पहाड़िया (Mal Paharias) और स्वीडन की सामी जनजाति की जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) के बार में शोध किया जाएगा.

यह शोध आइसीएमआर यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR- Indian Council of Medical Research) और स्वीडन की शोध संस्थान फोर्टे (Swedish Research Institute Forte) साथ मिलकर करेंगे.

इसके साथ ही शोध में रिम्स और स्वीडन के डॉक्टर भी शामिल होंगे.

शोध का विषय

झारखंड के माल पहाड़िया और स्वीडन की सामी जनजाति पर किए जा रहे शोध में यह देखा जायेगा कि किस कारण से इन दोनों जनजातियों की औसत आयु (Average age) में कमी आ रही है.

ऐसा माना जा रहा है कि शायद पारंपरिक भोजन को छोड़ने के कारण जनजातियों के कुछ समुदायों में लोगों की आयु पहले की तुलना में कम हुई है.

इसलिए शोधकर्ताओं की टीम जनजाति के भोजन और उनके रहने के तरीके पर भी शोध करेगी.

इस टीम में डॉ अनित कुजूर, डॉ मोनालिसा, डॉ प्रवीर और धनंजय आदि शोधकर्ता शामिल है.

कितनी धानराशी दी ?

आइसीएमआर ने शोध के लिए रिम्स के पीएसएम विभाग को 1.50 करोड़ रुपये का फंड दिया है.

शोधकर्ता के विचार

मुख्य शोधकर्ता डॉ विद्यासागर और उप मुख्य शोधकर्ता डॉ देवेश कुमार ने शोध की जगह के बारे में बताते हुए कहा कि शोध के लिए झारखंड में दुमका ज़िले के कांठीकुंड ब्लॉक को चुना गया है.

शोधकर्ता ने शोध के लिए चुने गए जगह का कारण यह बताया है कि कांठीकुंड ब्लॉक में पहाड़िया जनजाति की संख्या ज्यादा इसलिए उन्होंने शोध के लिए इस जगह को चुना है.

शोधकर्ता की योजना

शोधकर्ता ने बताया कि वह जनजाति के वृद्धों का एक समूह बनाएंगे. जिसका नाम वनफूल दिया जाएगा.

इस समूह में शामिल वृद्धों से जानकारी लेने के लिए यह पूछा जाएगा कि आखिर वह भोजन में क्या खाते थे जिस से उनकी आयु पहले अधिक होती थी.

इसके अलावा शोधकर्ता उनसे यह भी पूछेंगे की युवा पीढ़ी अब क्या भोजन खाती है.

जहां एक और माल पहाड़िया के खाने के बारे में पूछा जाएगा तो वहीं दूसरी तरह स्वीडन में सामी जनजाति रेनडियर मीट खाने में उपयोग करती है. वहां की सरकार भोजन सुरक्षा के अंतर्गत लोगों को रेनडियर का मीट निःशुल्क उपलब्ध कराती है.

तो स्वीडन के डॉक्टर शोध में यह पता लगाएंगे कि सरकार सामी जनजाति के लोगों को क्या रेंडियर मीट प्रर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराती है.

दोनो जनजाति के बारे में शोध होने के बाद दोनों देश यानी भारत और स्वीडन के शोधकर्ता साथ में मिलकर शोध का निष्कर्ष निकालेंगे.

इस निष्कर्ष पर दोनों देश की सरकारें इन जनजातियों को पारंपरिक भोजन उपलब्ध कराएगी.

माल पहाड़िया

यह भी देखें:-

माल पहाड़िया जनजाति के लोग देश के द्रविड़ जातीय लोग है जो मुख्य रूप से झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में रहते है.

यह जनजाति राजमहल पहाड़िया के मूल निवासी है, जिन्हें अब झारखंड के संथाल परगना डिवीजन के रूप में जानते है.

माल पहाड़िया माल्टो भाषा बोलते हैं, जो एक द्रविड़ भाषा है. इसके साथ ही वह दस्तावेज वाली इंडो-आर्यन मल पहाड़िया भाषा भी बोलते हैं.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार माल पहाड़ियों की कुल जनसंख्या लगभग 1 लाख 35 हजार 7 सौ 97 है.

जिसमें से पुरुषों की कुल जनसंख्या लगभग 67 हजार 7 सौ 91 और महिलाओं की कुल जनसंख्या लगभग 68 हजार है.

माल पहाड़िया कि जीवन शैली

माल पहाड़िया खेती और वन में उगने वाले उपज से अपना जीवन यापन करते है.

इस जनजाति के आदिवासी चावल, मूंग, मसूर कुल्थी और लार आदि दाले का सेवन करते है.

एक ज़माने में ये आदिवासी जंगल से शिकार करते थे. इन आदिवासियों के खाने में अलग अलग जानवरों का मांस शामिल था.

लेकिन 1972 में वन्य जीव संरक्षण कानून के लागू होने के बाद आदिवासियों के खाने में मांस की मात्रा कम होती गई.

आदिवासियों में कुपोषण की यह भी एक वजह मानी जाती है. इसके अलावा अत्याधिक शराब का सेवन और तंबाकु का इस्तेमाल भी उनके स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं में शामिल हैं.

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