HomeAdivasi Dailyअमेज़न के माश्को पिरो लोगों का नज़र आना चिंताजनक क्यों है

अमेज़न के माश्को पिरो लोगों का नज़र आना चिंताजनक क्यों है

माश्को पिरो जनजाति बहुत ही एकांतप्रिय है और कभी-कभार ही मूल निवासियों से संपर्क करती है. लेकिन इन्होंने यिन लोगों से संपर्क किया. माशको पिरो के बारे में जो कुछ भी जाना जाता है, वह यिन लोगों से ही पता चला है.

दुनिया की सबसे अलग-थलग रहने वाली जनजातियों में से एक माशको पीरो जनजाति ((Mashco Piro tribes) का एक दुलर्भ नजारा कैप्चर हुआ है.

माशको पीरो जनजाति पेरू में अमेजन के जंगलों में रहती है और हाल ही में इस जनजाति के लोगों को उनके इलाके से बाहर निकलते हुए देखा गया है.

मूल निवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ सर्वाइवल इंटरनेशनल ने माशको पिरो आदिवासियों (Mashco Piro tribespeople) की दुर्लभ तस्वीरें जारी की हैं. यह दुनिया की 100 से ज़्यादा संपर्कविहीन जनजातियों में से एक है.

जून के आखिर में ली गई तस्वीरों में 50 से ज़्यादा आदिवासी एक नदी के किनारे नज़र आ रहे हैं. यह जगह उस जगह के नज़दीक है जहां लकड़ी काटने वाली कंपनियों को रियायतें दी गई हैं.

सर्वाइवल इंटरनेशनल की डायरेक्टर कैरोलीन पीयर्स ने कहा, “ये अविश्वसनीय तस्वीरें दिखाती हैं कि बहुत बड़ी संख्या में संपर्क रहित माशको पिरो लोग उस जगह से कुछ ही मील की दूरी पर रह रहे हैं, जहां लकड़ी काटने वाले अपना काम शुरू करने वाले हैं… यह एक मानवीय आपदा है.”

संपर्क रहित जनजाति

यह सभी अमेज़न और दक्षिण-पूर्व एशिया के जंगलों में रहते हैं. माना जाता है कि माशको पिरो, जिनकी संख्या करीब 750 से ज़्यादा है, ऐसी जनजातियों में सबसे बड़ी है. ये खानाबदोश जनजाति ब्राज़ील और बोलीविया के साथ पेरू की सीमा के नज़दीक, माद्रे डी डिओस क्षेत्र के अमेज़न जंगलों में रहते हैं.

यह जनजाति, जो बहुत करीब आने वाले किसी भी व्यक्ति पर तीर चलाने के लिए जानी जाती है. हाल ही में माद्रे डी डिओस में लास पिएड्रास नदी के पास वर्षावन से निकलती हुई देखी गई.

पेरू की सरकार ने माशको पिरो के साथ सभी तरह के संपर्क पर रोक लगा दी है. क्योंकि उन्हें डर है कि आबादी में कोई बीमारी फैल सकती है, जिसके प्रति उनमें कोई प्रतिरोधक क्षमता नहीं है.

यह देखा गया है कि माशको पिरो ने अपने समुदाय के बाहर बहुत कम बातचीत की है और इनमें से अधिकांश बातचीत हिंसक रही है. बताया गया है कि माशको पिरो जनजाति के लगभग 50 सदस्यों ने मोंटे साल्वाडो के गांव का दौरा किया है.

यह जनजाति बहुत ही एकांतप्रिय है और कभी-कभार ही मूल निवासियों से संपर्क करती है. लेकिन इन्होंमे यिन लोगों से संपर्क किया है. माशको पिरो के बारे में जो कुछ भी जाना जाता है, वह यिन लोगों से ही पता चला है.

माशको पिरो, यिन लोगों से मिलती-जुलती भाषा बोलते हैं. जो कभी-कभी माशको पिरो के भोजन और आपूर्ति की तलाश में बाहर निकलने पर संचार की अनुमति देती है.

यिन लोग अक्सर माशको पिरो को देखने से पहले सुन लेते हैं क्योंकि जनजाति टिनमौ पक्षी की नकल करते हुए ऊंची आवाज़ में सीटी बजाती है. यह सीटी दूसरों को चेतावनी देती है कि वे नदी के किनारे से कछुओं के अंडे इकट्ठा करते समय या फल और सब्जियाँ इकट्ठा करते समय दूर रहें.

जंगल में कटाई

2002 में पेरू सरकार ने माशको पिरो के क्षेत्र की रक्षा के लिए माद्रे डी डिओस टेरिटोरियल रिजर्व बनाया. लेकिन उनके पारंपरिक मैदान का बड़ा हिस्सा रिजर्व के बाहर है. तब से भूमि के बड़े हिस्से को कटाई के लिए बेच दिया गया है, जिससे कंपनियों को लकड़ी और अन्य उपज के लिए सदाबहार जंगलों को काटने का अधिकार मिल गया है.

सबसे प्रमुख लॉगिंग कंपनी, कैनालेस ताहुआमानू (Canales Tahuamanu) को पेरू के वन प्रबंधन परिषद (FSC) द्वारा देवदार और महोगनी निकालने के लिए माद्रे डी डिओस के जंगलों में 53 हज़ार हेक्टेयर का क्षेत्र आवंटित किया गया है.

माश्को पिरो ने खुद यिन के सामने लॉगिंग कंपनियों के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की है.

यिन जनजाति के एक शख्स का कहना है कि लॉगिंग में रियायतें दिए जाने के बाद से वे (माश्को पिरो) अधिक दबाव और परेशानी महसूस कर रहे हैं क्योंकि कंपनियों ने उन पर हमला किया है.

जनजाति के पास जाने के लिए कोई जगह नहीं

हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि माशको पिरो क्षेत्र पर अतिक्रमण किया गया है. 1880 के दशक में पेरू के रबर बूम के दौरान माशको पिरो उन कई जनजातियों में से एक थे जिन्हें जबरन उनकी ज़मीन से बेदखल कर दिया गया, गुलाम बना लिया गया और सामूहिक रूप से मार दिया गया.

इस दौरान बचे हुए लोग मनु नदी के ऊपर की ओर चले गए. जहां तब से माशको पिरो अलग-थलग रह रहे हैं.

अब जब लकड़ी काटने वाली कंपनियां उनके क्षेत्रों में अतिक्रमण कर रही हैं तो विशेषज्ञों का कहना है कि उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं बची है. यही कारण है कि हाल के वर्षों में उनको कई बार देखा गया है.

माशको पिरो न सिर्फ भोजन खोजने के लिए बल्कि बाहरी लोगों से “भागने” के लिए भी अपने जंगलों से बाहर निकलते हैं. उन्हें ब्राज़ील की सीमा पार भी देखा गया है.

जनजाति अलग-थलग क्यों रहती है?

1880 के दशक के ‘रबर बूम’ के दौरान रबर कंपनियों ने पश्चिमी अमेज़न में माशको पिरो और अन्य मूल निवासी जनजातियों के क्षेत्र पर आक्रमण किया.

सर्वाइवल इंटरनेशनल वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, उन्होंने हजारों मूल निवासी लोगों को गुलाम बनाया, हत्या की, कोड़े मारने, जंजीरों में जकड़ने, शिकार करने, बलात्कार करने और उनकी ज़मीन और घरों की चोरी करने के लिए मजबूर किया.

इस दौरान कुछ माशको पिरो भागने में सफल रहे, वे जंगल में दूर-दराज के नदियों के पास चले गए, जहां वे छिपे रहे और उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ.

उनके वंशज अभी भी अलग-थलग रहते हैं लेकिन उनकी ज़मीनें एक बार फिर खतरे में हैं. उनके क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा लकड़ी काटने के लिए बेच दिया गया है और अब जंगल में चेनसॉ की आवाज़ गूंजती है.

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