सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease) आदिवासी इलाकों के लिए बड़ी चिंता बनता जा रहा है. अनुमानों के मुताबिक, भारत के दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी राज्यों में रहने वाली जनजातीय आबादी इसके लिए विशेष रूप से संवेदनशील है.
हमारे देश की 10 प्रतिशत आबादी आदिवासी क्षेत्रों में रहती है और इस समुदाय में सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia) का पता लगाने पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है.
आदिवासी लोगों में अक्सर जरूरी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का अभाव होता है और उनमें जागरूकता का स्तर कम होता है जिसके कारण सिकल सेल लक्षणों का पता लगाने में देरी या चूक होती है.
सूचनाओं के अंतर को दूर करने के लिए सिकल सेल रोग और सिकल सेल एनीमिया के बारे में सामुदायिक स्तर पर जागरूकता उत्पन्न करने और बढ़ाने के लिए आशा और एएनएम जैसे फ्रंटलाइन कार्यकर्ता से अधिक जुड़ाव की जरूरत है.
इस मामले में फ्रंटलाइन वर्कर यानि सहायक नर्स और मिडवाइफ (ANM) जैसे कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका हो सकती है. अगर फ्रंटलाइन वर्कर आदिवासी समुदाय से ही आते हों तो काम और भी प्रभावी तरीके से हो सकता है.
क्योंकि सिकल सेल का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग और सिकल सेल एनीमिया के बारे में समुदायों के बीच ज्ञान और जागरूकता बेहद जरूरी है.
जब फ्रंटलाईन वर्कर आदिवासी समुदाय सेही होंगे तो लोग उनके साथ अपने मुद्दों और लक्षणों को साझा करने में अधिक खुलते हैं. ऐसी स्थिति में एससीडी से पीड़ित लोगों की काउंसलिंग शुरू की जा सकती है.
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले और झारखंड के खूंटी जिले में एक कार्यक्रम के तहत स्क्रीन किए गए समुदायों के लिए एक मोबाइल मेडिकल यूनिट आधारित दृष्टिकोण अपनाया गया है.
इस कार्यक्रम के तहत लाभार्थियों में 15 से 19 वर्ष की आयु के युवा, गर्भवती महिलाएं और उनके पति और सिकल सेल एनीमिया के लिए पॉजिटीव पाए जाने वालों के रक्त संबंधी रिश्तेदार शामिल हैं.
सोलुबिलिटी टेस्ट (Solubility test) में पाए जाने वालों को इलाज और फॉलो-अप के लिए जिला अस्पताल भेजा जाता है.
सिकल सेल एनीमिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के साथ समय-समय पर जागरूकता सेशन चलाया जाता है.
आदिवासी समुदायों में SCD की घटना
सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है. इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्लड सेल्स या तो टूट जाती हैं या उनका साइज और शेप बदलने लगती है जो खून की नसों में ब्लॉकेज कर देती हैं.
यह रोग लाल रक्त कोशिकाओं की लगातार कमी का कारण बनता है जिससे संक्रमण, तीव्र छाती सिंड्रोम और यहां तक कि स्ट्रोक जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं.
हाल के एक अध्ययन में सिकल सेल रोग वाले वयस्कों की जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) 54 वर्ष होने का अनुमान लगाया गया है, जो बिना एससीडी वाले वयस्कों की तुलना में लगभग 20 वर्ष कम है.
आदिवासी आबादी सिकल सेल रोग के लिए अतिसंवेदनशील हैं. इन भौगोलिक क्षेत्रों में मलेरिया का उच्च प्रसार है. आदिवासी क्षेत्र कई वर्षों से मलेरिया के एनडेमिक (एक बीमारी का प्रकोप लगातार मौजूद है, जो एक विशेष क्षेत्र तक सीमित होता है उसे एनडेमिक कहते है) थे, जिससे कई मौतें हुईं.
ऐसी स्थिति में उनकी लाल रक्त कोशिकाएं सिकल के आकार की हो रही थीं. इसने अल्फा-थैलेसीमिया सहित सिकल सेल रोग के लिए उनकी उच्च संवेदनशीलता को जन्म दिया. मलेरिया को रोकने के लिए सुरक्षात्मक तंत्र ने सिकल सेल रोग की घटनाओं को जन्म दिया और यह पीढ़ियों से चली आ रही है और एक वंशानुगत बीमारी बन गई है.
सिकल सेल एनीमिया से जूझना
सामुदायिक स्क्रीनिंग में ज्ञान और संसाधन अंतराल को पाटना और जिला स्तर के अस्पतालों में कंफर्मेटरी टेस्ट के लिए पर्याप्त और उपयुक्त गुणवत्ता सुविधाएं प्रदान करना महत्वपूर्ण है. एससीडी को संबोधित करने के लिए केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं. केंद्रीय बजट 2023 के दौरान वित्त मंत्री ने 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए एक मिशन की घोषणा की है.
केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों के प्रयास से यह परियोजना जागरूकता बढ़ाने, पीड़ित जनजातीय क्षेत्रों में 0-40 आयु वर्ग के लगभग सात करोड़ व्यक्तियों की सार्वभौमिक जांच और संयुक्त रूप से परामर्श देने पर ध्यान केंद्रित करेगी.
2016 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भारत में हीमोग्लोबिनोपैथी की रोकथाम और नियंत्रण पर राष्ट्रीय दिशानिर्देश जारी किए थे. इसके अलावा जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने एससीडी के लिए राष्ट्रीय परिषद की स्थापना की. इसने आदिवासी क्षेत्रों में मरीजों और स्वास्थ्य सुविधाओं के बीच की खाई को पाटने के लिए SCD सपोर्ट कॉर्नर लॉन्च किया.
बजट आवंटन के तहत अगले तीन वर्षों में अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्य योजना के हिस्से के रूप में पीएम पीवीटीजी (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह) विकास मिशन के तहत 15 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
सरकार और निजी संगठनों के इन प्रयासों से थोड़ा-बहुत सुधार हुआ क्योंकि हाशिए के समुदायों सहित सिकल सेल एनिमीया के बारे में जागरूकता के साथ-साथ समय पर निदान में वृद्धि हुई है. लेकिन हमें बीमारी के तेजी से उन्मूलन के लिए सहयोग और प्रौद्योगिकी के माध्यम से इन प्रयासों को और बढ़ाने की जरूरत है.
और अधिक करने की जरूरत
सिकल सेल रोग के उन्मूलन के लिए सरकार, कॉरपोरेट्स और गैर-सरकारी संगठनों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास महत्वपूर्ण है. पिछले हस्तक्षेपों से सबक लिया जाना चाहिए और जमीनी प्रयासों को बढ़ाया जाना चाहिए.
असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 के अनुसार, सिकल सेल रोग का जल्द से जल्द पता लगाने और इलाज को प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (Preimplantation genetic testing) के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. जो भविष्य की मुश्किलों से बचने के लिए प्रसव पूर्व स्टेज में बीमारी की पहचान कर सकता है.
जेनेटिक टेस्टिंग में प्रगति ने बीमारी के वाहकों के लिए यह संभव बना दिया है कि वे अपनी संतानों को इसे पारित करने से बचें. इसके अलावा भारत के आदिवासी क्षेत्र में समय पर और संवेदनशील सिकल सेल एनीमिया देखभाल और प्रबंधन में मदद करेगा.
क्या है सिकल सेल एनीमिया?
सिकल सेल एनीमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है. इस आनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्लड सेल्स या तो टूट जाती हैं या उनका साइज और शेप बदलने लगती है जो खून की नसों में ब्लॉकेज कर देती हैं.
सिकल सेल एनीमिया में रेड ब्लड सेल्स मर भी जाती हैं और शरीर में खून की कमी हो जाती है. जेनेटिक बीमारी होने के चलते शरीर में खून भी बनना बंद हो जाता है.
वहीं शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण यह रोग कई जरूरी अंगों के डेमेज होने का भी कारण बनता है. इनमें किडनी, स्पिलीन और लिवर शामिल हैं.
सिकल सेल एनीमिया के लक्षण
जब भी किसी को सिकल सेल एनीमिया हो जाता है तो उसमें कई लक्षण दिखाई देते हैं. जैसे मरीज को हर समय हड्डियों और मसल्स में दर्द रहता है. स्पिलीन का आकार बढ़ जाता है. शरीर के अंगों खासतौर पर हाथ और पैरों में दर्द भरी सूजन आ जाती है. खून नहीं बनता, बार-बार खून की भारी कमी होने के चलते बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है.
सिकल सेल एनीमिया बीमारी का पूरी तरह निदान संभव नहीं है. हालांकि ब्लड जांचों के माध्यम से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है. फॉलिक एसिड आदि दवाओं के सहारे इस बीमारी के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. इसके लिए स्टेम सेल या बोन मेरो ट्रांस्प्लांट एक उपाय है.
सिकल सेल एनीमिया में मौत का कारण संक्रमण, दर्द का बार-बार उठना, एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम और स्ट्रोक आदि हैं. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की मौत अचानक हो सकती है.
(Photo credit: AFP)