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त्रिपुरा में अलग आदिवासी राज्य की माँग अगली सरकार तय कर सकती है

त्रिपुरा में अगले साल विधान सभा चुनाव होंगे. यह माना जा रहा है कि अलग राज्य की माँग आदिवासी इलाक़ों में एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है. राज्य की राजनीति की जानकारी रखने वाले कहते हैं कि राज्य की कम से कम 20 विधान सभा सीट ऐसी हैं जिन पर यह मुद्दा निर्णायक साबित हो सकता है.

त्रिपुरा के आदिवासी कल्याण मंत्री और आईपीएफटी (IPFT) के नेता मेवर कुमार जमातिया ने कहा है कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास में भेदभाव अलग आदिवासी राज्य की माँग का मुख्य कारण है.

उन्होंने कहा है कि क्योंकि आदिवासी इलाक़ों में विकास का काम नहीं हुआ है इसलिए आदिवासी क्षेत्र के ज़्यादातर नौजवान अलग आदिवासी राज्य की माँग का समर्थन करते हैं. त्रिपुरा की कुल 40 लाख की आबादी में से एक तिहाई से ज़्यादा आदिवासी हैं. 

यह आबादी मुख्यतः पहाड़ी इलाक़ों में रहती है. यह इलाक़ा त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस काउंसिल (Tripura Tribal Areas Autonomous District Council) के आधीन है.

राज्य के मैदानी इलाकों में ज़्यादातर बंगाली आबादी ही रहती है. राज्य की विधान सभा में बोलते हुए आदिवासी मामलों के मंत्री ने कहा कि हां यह सच है कि हमारी नौजवान पीढ़ी अलग आदिवासी राज्य की मांग करती है.

इसका मुख्य कारण मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों के बीच विकास की योजनाओं में भेदभाव हुआ है. उन्होंने कहा कि आज़ादी के 74 साल बाद आज भी पहाड़ी क्षेत्रों के साथ विकास के मामले में भेदभाव होता है. 

उन्होंने कहा कि आदिवासी सामाजिक और आर्थिक न्याय की गुहार लगा रहे हैं. उन्होंने दावा कि राज्य की बीजेपी और आईपीएफटी सरकार आदिवासी इलाक़ों के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है. 

उन्होंने कहा कि राज्य के आदिवासी इलाक़ों के विकास के लिए कई नई योजनाएँ वर्तमान राज्य सरकार ने शुरू की हैं. जमातिया ने विधान सभा में कहा कि इतिहास में पहली बार राज्य के आदिवासी इलाक़ों के विकास के लिए 1300 करोड़ रूपये का पैकेज दिया गया है.

उन्होंने कहा कि स्पेशल पैकेज के पैसे से आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और सड़क संपर्क को सुधारा जाएगा. 

उन्होंने कहा कि सीपीएम और कांग्रेस पार्टियों ने लंबे समय तक राज्य में सत्ता भोगी है. सीपीएम ने 35 साल तक त्रिपुरा पर राज किया था जबकि कांग्रेस पार्टी भी 30 साल तक सरकार में रही थी. उन्होंने कहा कि इतने लंबे समय तक सरकार में रहने के बावजूद इन सरकारों ने राज्य को आदिवासियों के विकास के लिए कोई काम नहीं किया था. 

त्रिपुरा में अगले साल विधान सभा चुनाव होंगे. यह माना जा रहा है कि अलग राज्य की माँग आदिवासी इलाक़ों में एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है. राज्य की राजनीति की जानकारी रखने वाले कहते हैं कि राज्य की कम से कम 20 विधान सभा सीट ऐसी हैं जिन पर यह मुद्दा निर्णायक साबित हो सकता है. 

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अलग राज्य की मांग को लेकर बना प्रद्योत किशोर देबबर्मन की अगुवाई वाला तिपरा मोथा गठबंधन तेज़ी से अपना आधार बढ़ा रहा है. बीते कुछ समय में भाजपा सरकार की सहयोगी इंडीजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के विधायकों सहित कई नेता और समर्थक इसमें शामिल हुए हैं.

त्रिपुरा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन या टीआईपीआरए मोथा, शाही वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा के नेतृत्व में एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल है. यह दल त्रिपुरा के मूल निवासियों के लिए एक अलग राज्य की मांग करता है. पार्टी ने पिछले साल अप्रैल में हुए त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (टीटीएएडीसी) के चुनाव में बड़ी जीत हासिल की.

इसने ‘‘ग्रेटर टिपरालैंड’’ मांग को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन को हरा दिया और 28 में 18 सीट हासिल की. अलग राज्य की मांग 60 सदस्यीय सदन में 20 विधानसभा सीटों के परिणाम को प्रभावित कर सकती है, जहां आदिवासियों का दबदबा है.

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