झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उत्तरी छोटानागपुर का क्षेत्र एक अहम चुनावी मैदान बन चुका है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की नेता कल्पना सोरेन, दोनों इस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं.
इन दोनों ही बड़े आदिवासी नेताओं के बारे में ख़ास बात यह भी है कि दोनों ने ही सामान्य सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला किया है. यानि वे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
इन दोनों बड़े नेताओं के चुनाव मैदान में उतरने से राज्य में बीजेपी और झामुमो-के इंडिया गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर देखी जा रही है.
बाबूलाल मरांडी और कल्पना सोरेन की दावेदारी
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर रहे हैं. जबकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने हाल ही में अपनी राजनीतिक पारी शुरू की है. लेकिन जिस तरह से उन्होंने लोक सभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन की ग़ैर हाज़री में अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार संभाला था, वे अब एक बड़ी नेता स्थापित हो चुकी हैं.
नवंबर 13 और 20 को होने वाले इस दो-चरणीय विधानसभा चुनाव का परिणाम इन दोनों नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर महत्वपूर्ण असर डाल सकता है.
उत्तरी छोटानागपुर का चुनावी परिदृश्य
झारखंड के पाँच डिविजनों में से एक उत्तरी छोटानागपुर में राज्य की कुल 81 विधानसभा सीटों में से 25 सीटें पड़ती हैं. इस क्षेत्र में प्रमुख रूप से कोयला खनन और औद्योगिक क्षेत्र के लिए जाना जाता है.
इस क्षेत्र में धनबाद-बोकारो-हजारीबाग बेल्ट शामिल है. यहां के 25 में से 18 सीटों पर दूसरे चरण में 20 नवंबर को चुनाव होंगे. पिछले विधानसभा चुनाव में, भाजपा ने यहां 25 में से 11 सीटें जीतीं थीं.
इस इलाके में अच्छी सफलता के बावजूद बीजेपी राज्य में सरकार बनाने में असफल रही. इस बार बीजेपी इस क्षेत्र में अपनी मजबूती बनाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही है.
भाजपा के एक बड़े नेता के अनुसार, यह क्षेत्र बीजेपी का पारंपरिक गढ़ रहा है. यहां पर पार्टी को फिर से सफलता का भरोसा है. इसलिए पार्टी संथाल और कोल्हान क्षेत्रों पर अधिक फोकस कर रही है. लेकिन पार्टी यह भी जानती है कि यहां मजबूत आधार के बावजूद यहां पर मेहनत करनी होगी.
दोनो नेताओं की राजनीतिक रणनीतियाँ
मरांडी, जिन्होंने 2020 में अपने दल झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) का भाजपा में विलय किया, धानवार से दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. यह सीट उनके लिए खास है, क्योंकि यहां उनका पैतृक गाँव कोडाईबैंक भी स्थित है.
धानवार में उनके सामने निर्दलीय उम्मीदवार निरंजन राय के उतरने से मुकाबला और रोचक हो गया है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस क्षेत्र में बीजेपी के परंपरागत वोटों में कुछ कमी हो सकती है, और पार्टी इसे रोकने के लिए उपाय करने ही होंगे नहीं तो बाबूलाल मरांडी ख़तरे में आ सकते हैं.
दूसरी ओर, झामुमो के लिए कल्पना सोरेन ने उत्तरी छोटानागपुर में मोर्चा संभाल रखा है. अपने पति और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और इस वर्ष हुए लोकसभा उपचुनाव में गंडेय से जीत दर्ज की.
कल्पना सोरेन की राजनीति में ऐंट्री बेशक मजबूरी में हुई थी. लेकिन उन्होंने खुद को साबित किया है और अब वो पार्टी के लिए बड़ी प्रचारक बन चुकी हैं.
इंडिया गठबंधन का प्रभाव और वामपंथी दलों की भूमिका
झारखंड के इस क्षेत्र में वामपंथी दलों का भी मजबूत आधार है. सीपीआई-एमएल ने इस बार बगोदर, निरसा और सिंदरी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. उसे मार्क्सवादी समन्वय समिति (MCC) से भी समर्थन मिल रहा है. इससे गठबंधन को और मजबूती मिलने की उम्मीद है.
झारखंड में कुड़मी समाज के प्रभावशाली नेता जयराम महतो भी इस इलाके में प्रभाव डाल सकते हैं. वे दो सीटों — डुमरी और बेरमो — से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका प्रदर्शन भी अंतिम परिणाम पर असर डाल सकता है.
इस बार उत्तरी छोटानागपुर इलाके में अगर कल्पना सोरेन की मजौदूगी का कुछ असर गांडेय के अलावा कुछ और सीटों पर भी अगर इंडिया गठबंधन को मदद कर देगी तो भाजपा की सत्ता वापसी की कोशिशों को झटका लग सकता है.