HomeAdivasi Dailyक्या संसद में दलित, आदिवासी नेता मोदी सरकार के लिए बनेंगे चुनौती

क्या संसद में दलित, आदिवासी नेता मोदी सरकार के लिए बनेंगे चुनौती

इस बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले में आदिवासी और दलित समुदायों के ऐसे प्रतिनिधि चुने गए हैं जो ज़बरदस्त वक्ता हैं. इसके अलावा उनकी ख़ास बात ये है कि वे अलग अलग आंदोलन से नेता बने हैं.

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार केंद्र में कायम हो चुकी है. इस बार यानि 18वीं लोकसभा में आदिवासी और दलित समुदायों से ऐसे कई सदस्य हैं जो अपने समुदायों के मुद्दों पर आंदोलन करते हुए राजनीति में आए हैं.

इसके अलावा संसद में पहुचने वाले ये नेता अच्छे और आक्रमक वक्ता भी माने जाते हैं.

मसलन भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत राजस्थान के बांसवाड़ा से चुनाव जीते हैं. अभी उन्होंने सांसद की शपथ भी नहीं ली है, लेकिन उनके बारे में यह ख़बरें लगातार छप रही हैं कि वे संसद में भील प्रदेश की मांग को ज़ोर-शोर से उठाएँगे.

भील प्रदेश की मांग के अलावा भी राजकुमार रोत आदिवासियों के अन्य मुद्दों पर भी काफ़ी मुखर रहे हैं. वैसे वे अपनी पार्टी के एकमात्र सांसद हैं. लेकिन उन्हें कांग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त है. इसलिए यह हो सकता है कि कांग्रेस पार्टी उन्हें संसद में बोलने के लिए अपने समय में से कुछ समय देती रहे.

इसी तरह से आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद, झारखंड मुक्ति मोर्चा के कालीचरण मुंडा और कांग्रेस के प्रोफेसर अंगोमचा बिमोल अकोइजाम, जिन्होंने इनर मणिपुर से जीत हासिल की है.

इंजीनियर राशिद, जिन्होंने बारामुल्ला में उमर अब्दुल्ला को हराकर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की, लद्दाख से निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद हनीफा जान और राजस्थान के सीकर से सीपीएम नेता अमरा राम शामिल हैं.

उत्तर प्रदेश के नगीना से जीतने वाले चंद्रशेखर आज़ाद दलित मुद्दों, खासकर समुदाय के खिलाफ अत्याचारों को जोरदार तरीके से उठाने के लिए जाने जाते हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, जाति आधारित अत्याचारों के मामलों में यूपी अग्रणी राज्यों में से एक है.

हनीफा जान ने लद्दाख के लिए राज्य के दर्जे की चल रही मांग का समर्थन किया है. जिसकी 90 प्रतिशत आबादी आदिवासी है और वर्तमान में यह एक केंद्र शासित प्रदेश है.

हनीफ ने संविधान की छठी अनुसूची के तहत क्षेत्र को शामिल करने की मांग का समर्थन किया है, जो पहाड़ी परिषदों को एक विशेष दर्जा प्रदान करेगा. जिससे उन्हें भूमि और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग जैसे मुद्दों पर निर्णय लेने की अनुमति मिलेगी.

इनर मणिपुर से जीतने वाले बिमोल अकोइजाम मणिपुर में हिंसा को नियंत्रित करने में केंद्र की भूमिका की आलोचना करते रहे हैं. इस सांप्रदायिक हिंसा में राज्य के 200 से अधिक लोग मारे गए हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में हिस्ट्री फैकल्टी के सदस्य जीतेंद्र मीना ने कहा कि एनडीए सरकार ने कई छात्रवृत्तियाँ बंद कर दी हैं या लाभार्थियों की संख्या कम करने के लिए कुछ योजनाओं में संशोधन किया है. जबकि ऐसी योजनाएं ज़्यादातर वंचित वर्गों की मदद कर रही थीं लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा है.

बंद की गई कुछ छात्रवृत्तियों में मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फैलोशिप, राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा, (जिसके माध्यम से हर साल 2,000 मेधावी स्कूली छात्रों को राष्ट्रीय छात्रवृत्ति दी जाती थी), माध्यमिक शिक्षा के लिए लड़कियों को प्रोत्साहन की राष्ट्रीय योजना और किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना शामिल हैं.

मोदी मंत्रिमंडल में 5 आदिवासी नेता शामिल

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में 5 आदिवासी नेता भी शामिल किए गए हैं. जिसमें ओडिशा के सुंदरगढ़ लोकसभा क्षेत्र से जीते बीजेपी के जुएल ओराम, BJP के नेता और असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, उत्तरी गोवा से जीते बीजेपी के श्रीपद नाइक, मध्य प्रदेश के धार लोकसभा सीट से चुनी गईं सांसद सावित्री ठाकुर और मध्य प्रदेश के बैतूल से लोकसभा सांसद दुर्गादास उईके शामिल हैं.

ऐसे में इन नेताओं से उम्मीद है कि सरकार का हिस्सा रहते हुए संसद में आदिवासी मुद्दों को जोर-शोर से उठाएंगे.

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