लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024)के चौथे चरण में 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) की 96 सीटों पर मतदान शुरू हो गया है. इसके अलावा आज लोकसभा के चौथे चरण के मतदान के साथ ही आंध्र प्रदेश की 175 और ओडिशा की 28 विधानसभा सीटों के लिए भी मतदान होगा.
लोकसभा चुनाव के इस चरण में आंध्र प्रदेश की 25 सीटों, बिहार की पांच सीटों, झारखंड की चार सीटों, मध्य प्रदेश की आठ सीटों, महाराष्ट्र की 11 सीटों, ओडिशा की चार सीटों, तेलंगाना की 17 सीटों, उत्तर प्रदेश की 13 सीटों, पश्चिम बंगाल की आठ सीटों और जम्मू-कश्मीर की एक सीट के लिए वोटिंग हो रही है.
इस दौर के कुल 1710 उम्मीदवारों में से 1540 पुरुष और 170 महिला उम्मीदवार हैं.
आम चुनाव के चौथे चरण में कुल 96 सीटों में से 12 एसटी (Scheduled tribe) सीटें भी शामिल है. इसमें आंध्र प्रदेश की अरकू निर्वाचन क्षेत्र, मध्य प्रदेश की रतलाम-झाबुआ, धार और खरगोन सीट, महाराष्ट्र की नंदुरबार, ओडिशा की नबरंगपुर और कोरापुट सीट, तेलंगाना की आदिलाबाद और महबूबाबाद, झारखंड की सिंहभूम, खूंटी और लोहरदगा निवार्चन क्षेत्र शामिल है.
तो आइए आज इन्हीं आदिवासी आरक्षित सीटों के बारे में विस्तार से जानते हैं…
अरकू निर्वाचन क्षेत्र
आंध्र प्रदेश की अरकू लोकसभा सीट पर इस बार चुनावी लड़ाई दिलचस्प देखने को मिलेगी. क्योंकि यहां मुकाबला त्रिकोणीय होने वाला है.
यहां साल 2008 में परिसीमन हुआ था, जिसके बाद ये सीट सामने आई थी और पहली बार चुनाव 2009 में करवाए गए थे. इस संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं. यह इलाका अरकू घाटी के नाम से भी जाना जाता है.
अरकू लोकसभा सीट अल्लूरी सीतारामा राजू और पार्वतीपुरम मान्यम जिले के अंतर्गत आती है. यहां के बारे में कहा जाता है कि ये क्षेत्र जैव विविधता से अपने आप में पूरी तरह से समृद्ध है और बॉक्साइट का जमकर खनन होता है.
इस सीट पर केवल तीन बार चुनाव हुए हैं, जिसमें दो बार युवजन श्रमिक रायथु कांग्रेस पार्टी (YSRCP) जीती है. जबकि एक बार कांग्रेस खाता खोल पायी है. अब यहां कांग्रेस कमजोर होने लग गई है और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) का वर्चस्व बढ़ने लग गया है.
अब वाईएसआरसीपी और टीडीपी के बीच मुख्य मुकाबला देखने को मिलेगा. पार्टियां जमकर चुनाव प्रचार कर रही हैं और मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तमाम तरह के वादे कर रही हैं.
इस बार यहां पर सरकार से बकाया भुगतान न होने पर कॉफी बागान मालिकों के बीच बढ़ता असंतोष एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बन सकता है.
वाईएसआर कांग्रेस इस क्षेत्र में “हैट ट्रिक” हासिल करने का लक्ष्य बना रही है, जबकि एनडीए सत्तारूढ़ पार्टी से सीट छीनने के लिए प्रयासरत है.
इस बार सत्तारूढ़ दल ने डॉक्टर चेट्टी तनुजा रानी को मैदान में उतारा है. जबकि भाजपा की पूर्व सांसद कोथापलल्ली गीता को एनडीए ने उनके खिलाफ खड़ा किया है.
वहीं I.N.D.I.A ब्लॉक के हिस्से के रूप में सीपीआई (एम) ने पी अप्पाला नरसा को मैदान में उतारा है, जो संभावित रूप से विपक्षी वोटों को विभाजित कर सकते हैं.
रतलाम-झाबुआ निर्वाचन क्षेत्र
रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र कांग्रेस की परंपरगत सीट है. रतलाम-झाबुआ एसटी सीट पर हुए 18 चुनावों और उपचुनावों में से कांग्रेस ने 14 बार ये सीट जीती है. जबकि बीजेपी ने दो बार, 2014 और 2019 में ये सीट जीती है.
दशकों से इस सीट पर दो लोगों का दबदबा रहा है. जिनमें दिग्गज आदिवासी नेता दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया का नाम शामिल है.
दिलीप सिंह भूरिया, जिन्होंने कांग्रेस के लिए पांच बार सीट जीती और आखिरी बार 2014 में बीजेपी की टिकट पर इस सीट को जीता. क्योंकि कांतिलाल भूरिया और दिग्विजय सिंह की राजनीति का शिकार हुए दिलीप सिंह बाद में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए.
दिलीप सिंह भूरिया के बीजेपी में जाने के बाद 1998 से 2019 तक पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व राज्य कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया इस सीट से 5 बार सांसद रहे.
2014 में मोदी लहर में वो चुनाव हार गए. उन्हें बीजेपी के दिलीप सिंह भूरिया ने 1 लाख से ज़्यादा वोटों को हराया. लेकिन एक साल के अंदर ही 2015 में बीजेपी सांसद दिलीप सिंह भूरिया का निधन हो गया.
जिसके बाद इस सीट के लिए उपचुनाव हुआ और कांतिलाल भूरिया फिर चुनाव जीत गए. उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया ने बीजेपी की प्रत्याशी और दिलीप सिंह भूरिया की बेटी निर्मला भूरिया को 88 हजार वोटों से हराया.
इस बार बीजेपी ने रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से अनीता नागर सिंह चौहान को टिकट दिया है. पार्टी ने यहां पर मौजूदा सांसद गुमान सिंह डामोर का टिकट काट कर उन्हें टिकट दिया है.
अनीता नागर सिंह चौहान अलीराजपुर के विधायक और राज्य में मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी हैं. अनीता सिंह चौहान दूसरी बार अलीराजपुर जिले की जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गई है.
वहीं कांग्रेस पार्टी ने अपने दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया पर दांव खेला है.
2011 की जनगणना के मुताबिक, झाबुआ में आदिवासी आबादी करीब 86 फीसदी है.
लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में बेहद अहम होने के बावजूद झाबुआ की 80 फीसदी से अधिक आदिवासी आबादी के लिए गरीबी से छुटकारा पाना एक दूर का सपना बना हुआ है. क्योंकि यहां के लगभग आधे स्थानीय लोग गरीबी रेखा से नीचे आते हैं. जिले की 49.62 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे है.
धार निर्वाचन क्षेत्र
धार लोकसभा क्षेत्र पूरे धार जिले और इंदौर जिले के कुछ हिस्से को कवर करता है. धार लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 8 विधानसभा आता है. जिसमें सरदारपुर विधानसभा, गंधवानी विधासभा, कुक्षी विधानसभा, मनावर विधानसभा, धरमपुरी विधानसभा, बदनावर विधानसभा शामिल है.
धार में इस बार कांग्रेस ने रोधश्याम मुवेल को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं भाजपा ने सावित्री ठाकुर पर भरोसा जताया है. इसके साथ ही इस सीट पर कुल 7 प्रत्याशी मैदान पर है.
मुद्दों की बात की जाए तो इस क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार है. रोजगार के लिए हर साल बड़ी संख्या में आदिवासी नजदीकी प्रदेश गुजरात में पलायन करते हैं.
खरगोन निर्वाचन क्षेत्र
अब तक इस सीट पर 16 आम चुनाव हो चुके हैं, जिनमें से पांच बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है, जबकि 8 बार बीजेपी को जीत मिली है, इसके अलावा 2 चुनाव भारतीय जनसंघ और 1 बार लोकदल ने जीता है.
देश के आजाद होने के करीब 15 साल बाद 1962 में इस सीट को निमाड़ सीट कहा जाता था. यहां जब से चुनाव हुए तब से ही रेल लाने के नाम पर कई उम्मीदवारों ने खेल किए. हर लोकसभा चुनाव में रेल कहीं ना कहीं मुद्दा बना रहा लेकिन नागरिकों को इसका सफर अबतक नसीब नहीं हुआ.
लेकिन इस चुनाव में प्रशासन और पार्टी उम्मीदवारों के लिए यहां से पलायन कर अन्य प्रदेशों में मजदूरी के लिए गए आदिवासियों को वापस लाना बड़ी चुनौती है. इसके लिए गंभीर प्रयास भी नहीं दिखाई दे रहे हैं.
2019 चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के गजेंद्र सिंह पटेल ने कांग्रेस के डॉ गोविंद मुजाल्दा को हरा जीत हासिल की थी. इस बार भी बीजेपी में आदिवासी भिलाला समाज के गजेंद्र सिंह पटेल को टिकट दिया है. वहीं उनका मुकाबला कांग्रेस के आदिवासी बारेला समाज के पोर लाल खरते से है. यानि इस बार चुनाव आदिवासी बनाम आदिवासी है.
नंदुरबार निर्वाचन क्षेत्र
नंदुरबार लोकसभा सीट फिलहाल बीजेपी के कब्जे में है. पिछले दो लोकसभा चुनावों से यहां बीजेपी ही जीतती आ रही है. 2019 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हीना विजयकुमार गावित को करीब 95 हजार वोटों से जीत हासिल हुई थी.
नंदुरबार में बीजेपी प्रत्याशी हिना गावित का मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी गोवाल पाडवी से है. हिना इस सीट से 2014, 2019 में सांसद रह चुकी हैं.
नंदुरबार के आदिवासियों के मुद्दों की बात करें तो यहां पर लोगों की वन और भूमि अधिकार आदि से जुड़ी प्रमुख मांगे हैं.
यहां पर वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को ज़मीन सौंपना, वन भूमि में चरागाह क्षेत्र स्थापित करना, कृषि उपज के लिए उचित मूल्य तय करना, क्षेत्र के कई तालुकों को सूखा प्रभावित घोषित करना और सूखा प्रभावित क्षेत्र के प्रत्येक किसान को 30 हज़ार रुपये का मुआवजा देने की मांग शामिल है.
नबरंगपुर निर्वाचन क्षेत्र
आदिवासी बहुल नबरंगपुर लोकसभा सीट बीजू जनता दल का कब्जा है. यहां पर बीजेपी अभी भी तीसरे नंबर की पार्टी है. इस सीट पर मुख्य मुकाबला बीजेडी और कांग्रेस के बीच होती रही है. नबरंगपुर लोकसभा सीट के तहत 7 विधानसभा सीटें आती हैं.
इस सीट पर 2019 तक 15 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, इनमें से 11 बार कांग्रेस जीती है.
नबरंगपुर सीट पर 2019 में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था. बीजेडी के प्रत्याशी रमेश चंद्र मांझी ने कांग्रेस के प्रदीप कुमार मांझी को हराकर जीत अपने नाम की थी. बीजेपी के बालभद्र मांझी तीसरे स्थान पर रहे थे.
इस बार भाजपा ने बलभद्र माझी को मैदान में उतारा है, जिन्होंने टिकट से इनकार किए जाने के बाद 2019 चुनाव से पहले बीजद छोड़ दिया था. वहीं बीजेडी ने अपने मौजूदा सांसद रमेश चंद्र माझी की जगह प्रदीप कुमार माझी को टिकट दिया है.
यहां के आदिवासी सड़क संपर्क, ढहता स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा और पानी की कमी से जूझ रहे हैं. इसके अलावा स्कूली शिक्षा और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है.
कोरापुट निर्वाचन क्षेत्र
कोरापुट लोकसभा सीट को 2 जिलों की विधानसभा सीटों को जोड़कर बनाया गया है. ये 2 जिले हैं रायगढ़ा और कोरापुट. इस संसदीय क्षेत्र के तहत 7 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें रायगढ़ा जिले की 3 तो कोरापुट जिले की 4 सीटों को शामिल किया गया है.
कोरापुट कांग्रेस का वह दुर्ग रहा है जिसे लोकतंत्र के जंग में दो बार ही भेदा जा सका है. 2009 और 2014 छोड़ दें तो ये सीट कांग्रेस के कब्जे में रही है.
2024 की जंग के लिए कांग्रेस ने अपने सांसद सप्तागिरी शंकर उलाका को अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व कोरापुट सीट से फिर से मैदान में उतारा है तो बीजेपी ने कालीराम मांझी को टिकट दिया है. बीजेडी की ओर से कौशल्या हिकाका अपनी चुनौती पेश करेंगी. ऐसे में यहां पर कड़ा मुकाबला होने के आसार हैं.
आदिलाबाद निर्वाचन क्षेत्र
तेलंगाना का आदिलाबाद लोकसभा क्षेत्र देश की चुनावी राजनीति में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है. आदिलाबाद लोकसभा सीट में 7 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव में यहां कड़ा मुकाबला देखने को मिला था और आखिर में इस सीट पर BJP के सोयम बापू राव ने जीत दर्ज की थी.
इस बार बीआरएस पार्टी ने अतराम सक्कू को मैदान में उतारा है. वहीं गोदाम नागेश भाजपा के लिए खड़े हैं और सुगुना कुमारी चेलीमाला कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.
महबूबाबाद निर्वाचन क्षेत्र
परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आई इस लोकसभा सीट पर 2009 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ. तब कांग्रेस के बलराम नाइक ने इस लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी.
हालांकि 2014 लोकसभा चुनाव में BRS (भारत राष्ट्र समिति) उम्मीदवार प्रोफेसर अजमीरा सीताराम नाइक ने ये सीट बलराम नाइक से छीन ली. वहीं 2019 में BRS ने सीताराम नाइक की जगह कविता मालोथू को मैदान में उतारा, उन्होंने भी इस सीट पर जीद दर्ज की.
महबूबाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें आते हैं, जिसमें दोर्नाकल, महबूबाबाद, नरसमपेट, मुलुग, पिनापाका, येल्लान्दु और भद्राचलम विधानसभा सीटें शामिल हैं.
सिंहभूम निर्वाचन क्षेत्र
सिंहभूम लोकसभा सीट पर आदिवासियों का खास दबदबा है. इस सीट पर उरांव, संथाल समुदाय, महतो (कुड़मी), प्रधान, गोप, गौड़ समेत कई आदिवासी समुदाय, इसाई और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं.
इस सीट के अंतर्गत सरायकेला, चाईबासा, मंझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर विधानसभा सीट आते हैं. यह सभी सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.
शुरुआत में यह सीट झारखंड पार्टी का गढ़ थी, लेकिन समय के साथ यहां कांग्रेस ने पांव पसारा और उसके प्रत्याशी कई बार जीते. इस सीट से झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीत चुके हैं.
सिंहभूम सीट से कांग्रेस की गीता कोड़ा ने जीत दर्ज की थी.वहीं बीजेपी के लक्ष्मण गिलुवा दूसरे स्थान पर रहे थे.
आगामी चुनाव में बीजेपी ने इस सीट से गीता कोड़ा को अपना प्रत्याशी बनाया है. गीता कोड़ा इससे पहले कांग्रेस में थी. चुनाव से पहले ही इन्होंने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा है.
खूंटी निर्वाचन क्षेत्र
खूंटी लोकसभा सीट मुख्य रूप से मुंडा जनजातियों के लिए जानी जाती है. इस सीट के अन्तर्गत सूबे की छह विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें खरसावन, तमर, तोरपा, खूंटी, कोलेबीरा, सिमडेगा विधानसभा सीटें शामिल हैं. ये सभी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी कालीचरण मुंडा से कड़ी टक्कर के बाद बीजेपी के अर्जुन मुंडा महज 1400 वोट से जीत हासिल की.
इस चुनाव में भाजपा ने खूंटी लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को टिकट दिया है. वहीं कांग्रेस ने यहां से फिर एक बार कालीचरण मुंडा को टिकट दिया है.
लोहरदगा निर्वाचन क्षेत्र
लोहरदगा लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है. बीजेपी के समीर उरांव और कांग्रेस के सुखदेव भगत के बीच जेएमएम के बागी विधायक चमरा लिंडा तीसरा कोण बनाने में जुटे हैं.
लोहरदगा सीट पर आदिवासियों की तादात करीब 64.04 फीसदी है. इस सीट की 96 फीसदी आबादी गांवों में रहती है.
इस लोकसभा सीट के तहत मान्डर, गुमला, लोहरदगा, सिसई और बिशुनपुर विधानसभा सीटें आती हैं. यह सभी सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.
इस सीट से 2019 में बीजेपी ने तीसरी बार सांसद सुदर्शन भगत को चुनाव मैदान में उतारा था और उन्होंने जीत भी दर्ज की. वहीं कांग्रेस के टिकट से सुखदेव भगत चुनाव लड़ रहे थे.

