महाराष्ट्र के डिप्टी स्पीकर और एनसीपी नेता नरहरि झिरवाल ने बीते महीने खूब सुर्खियाँ बटोरी थी, जब उन्होंने मंत्रालय की तीसरी मंजिल से कूदकर राज्य सरकार के एक फैसले का विरोध जताया था.
उन्होंने यह कदम महाराष्ट्र सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उम्मीदवारों की भर्ती रोकने और धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव के खिलाफ उठाया था.
नासिक जिले के डिंडोरी विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रह चुके नरहरि झिरवाल इस बार अपनी राजनीतिक जिंदगी की सबसे कठिन चुनौती का सामना कर रहे हैं.
पिछले साल एनसीपी में हुए विभाजन के बाद, जब उन्होंने शरद पवार का साथ छोड़कर अजीत पवार के साथ जाने का निर्णय लिया तो उनके पारंपरिक जनजातीय वोटर उनसे खफा हो गए. इसी के चलते आगामी विधानसभा चुनाव उनके लिए एक कठिन लड़ाई बनता जा रहा है.
शिवसेना के साथ बढ़ते तनाव ने बढ़ाई मुश्किलें
इस चुनाव में झिरवाल के सामने सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं बल्कि महायुति सरकार में उनके सहयोगी शिवसेना भी एक चुनौती बनकर उभरी है.
शिवसेना ने पहले पूर्व विधायक धनराज महाले को झिरवाल के खिलाफ उम्मीदवार के तौर पर उतारने का फैसला लिया था.
यहां तक कि पार्टी ने धनराज महाले को हेलिकॉप्टर से नामांकन फॉर्म भी भेजा था. हालांकि, बाद में शिवसेना ने महाले को मैदान से हटा लिया लेकिन इससे झिरवाल और शिवसेना के बीच तनाव की स्थिति स्पष्ट हो गई.
आदिवासी और मराठा मतदाताओं का झुकाव विपक्ष की ओर
इस बार एनसीपी (शरद पवार गुट) ने झिरवाल के खिलाफ सुनीता चारोस्कर को टिकट दिया है. सुनीता को डिंडोरी में आदिवासी और मराठा समुदाय का अच्छा समर्थन मिल रहा है.
सामाजिक कार्यकर्ता याकूब शेख का कहना है कि डिंडोरी के जनजातीय इलाकों में अब भी बुनियादी सुविधाओं की कमी है, जबकि बाकी महाराष्ट्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर दिया जा रहा है.
जनजातीय सीटों पर झिरवाल का प्रभाव कितना महत्वपूर्ण?
झिरवाल का मानना है कि उनके जनजातीय मतदाताओं में प्रभाव का असर महाराष्ट्र के अन्य जनजातीय क्षेत्रों में भी देखा जा सकता है.
उनका कहना है कि महाराष्ट्र की 72 सीटें ऐसी हैं, जहां जनजातीय मतदाता चुनाव परिणाम को बदलने की क्षमता रखते हैं.
उनका कहना है कि अगर उनके काम को वहां सराहा जाता है, तो इसका असर अन्य सीटों पर भी हो सकता है.
नरहरि झिरवाल ने अपने सहयोगियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि उनके खिलाफ किसी तरह की साजिश होती है, तो इसका असर महायुति के अन्य उम्मीदवारों पर भी पड़ सकता है.
हालांकि, बढ़ती चुनौतियों के बावजूद झिरवाल अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं और अपने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत से जुटे हुए हैं.
महाराष्ट्र में सभी 288 सीटों पर एक चरण में ही मतदान होगा. राडज्य में 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और 23 नवंबर को मतगणना होगी.