HomeGround Reportबस्तरिया बटालियन: सिस्टम में एंट्री या फिर एक दूसरे के क़त्ल को...

बस्तरिया बटालियन: सिस्टम में एंट्री या फिर एक दूसरे के क़त्ल को मजूबर आदिवासी

जब बेला भाटिया से पूछा गया कि सरकार तो आदिवासियों के लिए सरकारी नौकरी दे रही है. उनका कहना था, “सरकार आदिवासी को ऐसा रोज़गार दे रही है जिसमें या तो आदिवासी को मारेगा या फिर आदिवासी के हाथ मारा जाएगा.”

“यह एक प्रक्रिया है जो पिछले कुछ समय से चल रही है. बस्तरिया बटालियन में कुछ समय पहले भी भर्ती हुई थी. लेकिन उस समय इस अभियान का फ़ायदा मुख्यधारा के क़रीब आ चुके आदिवासी ही ले सके थे. जंगल के भीतर दूर दराज़ के गाँवों के लोगों को इस अभियान का फ़ायदा नहीं मिला था. यह देखा गया कि इस अभियान का असली लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका था” गृह मंत्रालय में तैनात के विजय कुमार कहते हैं. 

के विजय कुमार भारत सरकार को जम्मू कश्मीर और माओवादी हिंसा से प्रभावित इलाक़ों में सुरक्षा नीति पर सलाह देते हैं. 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी 2012 में केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल यानि CRPF के महानिदेशक थे. 

बस्तर के तीन ज़िलों दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर के आदिवासी गाँवों के लड़के लड़कियों को सीआरपीएफ़ में भर्ती करने के लिए नियम और शर्तों में काफ़ी छूट दी गई है. इस सिलसिले में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने फ़ैसला लिया है. 

सरकार के इस फ़ैसले पर MBB ने विजय कुमार से उनकी राय माँगी थी. इस मसले पर विजय कुमार का कहना है कि यह एक अच्छा कदम है. सरकार नक्सल प्रभावित बस्तर के आदिवासियों को मुख्यधारा में शामिल करना चाहती है.

उन्होंने कहा कि बस्तरिया बटालियन गठित करने का मक़सद यही था. लेकिन शैक्षणिक योग्यता की शर्त की वजह से शायद जंगल के भीतर के गाँवों के आदिवासी इसका फ़ायदा नहीं ले पाए.

सरकार इन तीन इलाक़ों के कम से कम 400 जवानों को CRPF में नौकरी देना चाहती है. इसके लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने तय किया है कि दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर के आदिवासी नौजवानों के लिए अनिवार्य शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास रखी जाएगी.

के विजय कुमार (दाईं तरफ़ से पहले, टाई पहने हुए)

इसके अलावा आदिवासी जवानों को क़द और छाती के माप में भी कुछ छूट दी गई है. विजय कुमार कहते हैं कि सरकार ने इस तरह का कदम पहली बार नहीं उठाया है.

क्या सरकार का यह कदम माओवादी हिंसा से निपटने में कारगर होगा? क्या इन आदिवासी इलाक़ों के नौजवानों को सुरक्षा बलों का हिस्सा बना कर माओवादी हमलों का सामना करना आसान होगा? 

इन सवालों के जवाब में विजय कुमार कहते हैं कि बस्तर और दूसरे इलाक़े जहां माओवादी आंदोलन है, वहाँ कोई एक रवैया या तरीक़ा नहीं हो सकता. इन इलाक़ों में बहुआयामी रवैया अपनाना पड़ेगा.

लेकिन बस्तर के नाम पर अलग से बटालियन तैयार करने का क्या मक़सद हो सकता है? आदिवासियों को ही आदिवासियों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए इस्तेमाल करना जायज़ है?

विजय कुमार कहते हैं, “ लोग कहेंगे कि सुरक्षा बलों में भर्ती करके आदिवासियों को आदिवासियों के ख़िलाफ़ हथियारबंद किया जा रहा है. लेकिन विकल्प क्या है. हिंसा का सामना करने के लिए तो सुरक्षा बलों की ज़रूरत होगी ही.”

विजय कुमार आगे कहते हैं, “ नागा चरमपंथियों के मामले में भी ऐसी नीति रही थी. जिन लोगों ने सरेंडर किया उनको सुरक्षा बलों में भर्ती किया गया. इस प्रयोग के बेहतरीन परिणाम भी देखने को मिले. इसी तरह से जिन आतंकवादियों ने समर्पण कर दिया उनको पुलिस में भर्ती किया गया. तो इसमें कोई नई बात नहीं है.”

विजय कु्मार कहते हैं कि जो आज हिंसा के रास्ते पर हैं अगर वो हिंसा छोड़ते हैं तो उन्हें सिस्टम में शामिल किया जाना चाहिए.

मानवाधिकार कार्यकर्ता विरोध में हैं

इस पूरे मामले पर MBB ने सामाजिक कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया से बातचीत की है. बेला भाटिया कहती हैं कि यह पूरी नीति ही दोषपूर्ण है. वो पूछती हैं कि एक आठवीं पास लड़के की उम्र क्या होगी? 12-13 साल और दसवीं पास लड़के की उम्र ज़्यादा से ज़्यादा 15 साल होगी. 

केन्द्र सरकार इस फ़ैसले से बच्चों को सुरक्षा बलों में शामिल करेगी. भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई वादों से बंधा हुआ है. इनमें से एक है कि बच्चों को फ़ोर्स में भर्ती नहीं किया जा सकता है.

इस फ़ैसले के बाद भारत अंतरराष्ट्रीय इस तरह की संधियों का उल्लंघन करने वाला देश बन जाएगा. दरअसल यह आदिवासियों को आदिवासियों के ख़िलाफ़ खड़ा करने का मामला है.

हम लोग सलवा जूडुम के वक़्त से कह रहे हैं. सरकार का ताज़ा कदम भी बिलकुल वैसा ही है. इससे पहले सरकार स्पेशल पुलिस ऑफ़िसर तैनात करती थी. सुप्रीम कोर्ट से इस पर पाबंदी लगा दी गई.

बेला भाटिया, मानवाधिकार कार्यकर्ता

क्योंकि नाबालिग आदिवासी बालकों को भर्ती किया जा रहा था. सरकार को आतंकवाद या चरमपंथी संगठनों से निपटने के रास्ते तलाशने का हक़ है. लेकिन यह संविधान और क़ानून के दायरे में ही हो सकता है.

सरकार ही क़ानून नहीं तोड़ सकते है, लेकिन सरकार ही क़ानून का उल्लंघन करती है. 

जब बेला भाटिया से पूछा गया कि सरकार तो आदिवासियों के लिए सरकारी नौकरी दे रही है. उनका कहना था, “सरकार आदिवासी को ऐसा रोज़गार दे रही है जिसमें या तो आदिवासी को मारेगा या फिर आदिवासी के हाथ मारा जाएगा.”

सरकार माओवादियों पर आरोप लगाती रही है कि वो बच्चों को हथियारबंद दस्तों में शामिल कर रहे हैं. लेकिन सरकार क्या कर रही है? सरकार ख़ुद भी बच्चों को हथियार पकड़ाने को तैयार है. 

सरकार यह सब छोड़ कर बस्तर के इलाक़े में शिक्षा की सुविधाओं को बढ़ाए. शिक्षित आदिवासी युवा बेहतर रोज़गार तलाश कर सकेगा. 

बस्तरिया बटालियन और मामले की पृष्ठभूमि

सीआरपीएफ ने एक अप्रैल 2017 को छत्तीसगढ़ के चार जिलों बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और सुकमा से अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों की भर्ती करके एक बस्तरिया बटालियन का गठन किया था. इसके पीछे मकसद स्थानीय प्रतिनिधित्व को बढ़ाना था.

इसके लिए सरकार ने भर्ती प्रक्रिया में पहले से ही छूट दी थी. इसमें स्थानीय आवेदकों को मौका देने के लिए ऊंचाई और वजन के शारीरिक मानकों में ढील दी गई थी, और सीआरपीएफ ने स्थानीय युवाओं को सिविक एक्शन प्रोग्राम के तहत शैक्षिक और शारीरिक प्रशिक्षण प्रदान किया.

लेकिन इस पहल का वैसा असर देखने को नहीं मिला जैसा कि उम्मीद थी, क्योंकि अंदरूनी इलाक़ों के उम्मीदवार अपेक्षित शैक्षणिक योग्यता पूरी न करने की वजह से भर्ती प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पा रहे थे.

सरकार के ताज़ा फ़ैसले से इन युवाओं के सामने आने वाली यह अड़चन तो कम से कम दूर होगी.

बटालियन के लिए 743 कर्मियों की भर्ती निर्धारित है. और भारत सरकार की महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की नीति के अनुसार, यूनिट में फ़िलहाल 534 कर्मी हैं, जिनमें 189 महिलाएं हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments