त्रिपुरा की राजनीति में आज यानि सोमवार की रात बहेद अहम मानी जा रही है. आज की रात त्रिपुरा की राजनीति पूरी तरह से नई दिशा ले सकती है. दरअसल आज रात त्रिपुरा की राजनीति के तीन अहम दलों की बैठक तय है.
अगर इस बैठक में सब कुछ ठीक रहता है तो फिर अगले दो महीने के भीतर होने वाले विधान सभा चुनाव में बीजेपी के मुकाबले बहुत मज़बूत गठबंधन मैदान में होगा. यह एक ऐसा गठबंधन बन सकता है जिसे त्रिपुरा में हराना लगभग नामुमकिन लगता है.
आज रात को टिपरा मोथा (Tipra Motha), सीपीआई (एम) CPI (M) और Congress (I) की बैठक तय है. इस बैठक में राज्य में विधान सभा चुनाव में बीजेपी का मुक़ाबला करने के लिए एक व्यापक गठबंधन बनाने की रणनीति पर चर्चा होगी.
सीपीआई (एम) और कांग्रेस में गठबंधन
सीपीआई (एम) और कांग्रेस पार्टी के बीच राज्य में मिल कर चुनाव लड़ने पर सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है. हाल ही में सीपीआई (एम) की राज्य इकाई की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया था.
सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने इस सिलसिले में पार्टी के फ़ैसले को सार्वजनिक करते हुए यह भी कहा था कि उनकी पार्टी त्रिपुरा में जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रहे टिपरा मोथा के साथ भी बातचीत की जा रही है.
कांग्रेस पार्टी के त्रिपुरा के प्रभारी अजय कुमार भी कल यानि रविवार को सीपीआई (एम) के नेताओं से मिलने अगरतला में पार्टी के ऑफिस पहुँचे. यह तय माना जा रहा है कि सीपीआई (एम) और कांग्रेस त्रिपुरा में मिल कर चुनाव लड़ेंगे.
लेकिन टिपरा मोथा ने अभी तक इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है. टिपरा मोथा के नेता प्रद्योत किशोर माणिक्य ने MBB से ख़ास बातचीत में यह ज़रूर माना था कि वे कांग्रेस पार्टी और सीपीआई (एम) दोनों से ही बातचीत कर रहे हैं.
टिपरामोथा ग्रेटर टिपरालैंड की माँग कर रहा है
आज यानि सोमवार को टिपरा मोथा का महिला फ़्रंट राज्य में एक बड़ी जनसभा कर रहा है. इस जनसभा में हज़ारों आदिवासी महिलाएँ शामिल हैं. इस जनसभा को संबोधित करने टिपरा मोथा के नेता प्रद्योत किशोर माणिक्य को 500 मोटर साइकिल सवार सभा स्थल तक ले कर आएँगे.
टिपरा मोथा अभी तक घर-घर जा कर चुनाव प्रचार कर रहा है. लेकिन आज इस दल ने भी अपना शक्ति प्रदर्शन किया है. त्रिपुरा में कुल 60 विधान सभा सीटें हैं. इनमें से 20 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 20 सीटों के अलावा भी कई और सीटों पर कुछ जनजातीय आबादी रहती है. त्रिपुरा की राजनीति में वही सत्ता में आता है जिसे जनजातीय इलाक़ों में समर्थन मिलता है.
2018 में बीजेपी भी IPFT नाम के ट्राइबल संगठन के साथ गठबंधन करके ही सत्ता तक पहुँची थी. इसलिए टिपरा मोथा के साथ अगर सीपीआई (एम) और कांग्रेस का गठबंधन हो जाता है तो बीजेपी के लिए मुक़ाबला बेहद मुश्किल हो जाएगा.
टिपरा मोथा की माँग है कि जो भी दल उसके साथ गठबंधन करना चाहते हैं, वे लिखित में यह आश्वासन दें कि अलग टिपरालैंड बनाया जाएगा. सीपीआई (एम) और कांग्रेस पार्टी के लिए इस माँग को मान लेना आसान नहीं है.
लेकिन MBB से ख़ास बातचीत में सीपीआई (एम) के राज्य सचिव जितेन्द्र चौधरी ने यह कहा था कि टिपरा मोथा की माँग संवैधानिक दायरे में है.
त्रिपुरा में राष्ट्रीय दल आदिवासियों के भरोसे
सीपीआई (एम) और कांग्रेस पार्टी त्रिपुरा में लंबे समय से प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. संघ परिवार भी लंबे समय से राज्य में बीजेपी के लिए राजनीतिक ज़मीन तैयार करने में जुटा रहा है.
राज्य में सीपीआई (एम) का लगातार दबदबा बना रहा था. क्योंकि यहाँ के जनजातीय इलाक़ों में उसे समर्थन मिल रहा था. लेकिन 2018 में आदिवासियों ने सीपीआई (एम) का साथ छोड़ दिया. IPFT और बीजेपी का गठबंधन बना और सीपीआई (एम) का वर्चस्व टूट गया.
2023 के त्रिपुरा विधान सभा चुनाव में भी यह स्पष्ट है कि आदिवासी समर्थन के बिना कोई सरकार नहीं बन सकती है. इसलिए सीपीआई (एम) या कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल टिपरा मोथा को यह यक़ीन दिलाने में जुटे हैं कि वह बीजेपी के मुक़ाबले बन रहे गठबंधन का हिस्सा बन जाए.