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‘मेक इन इंडिया’ के चक्कर में आदिवासी छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ की हास्यास्पद कहानी

मंत्रालय चाहता था कि तकनीकी संसाधनों के ज़रिए आदिवासी छात्रों की पढ़ाई के नुक़सान को कम किया जा सके. इसके साथ ही मंत्रालय की मंशा यह भी थी कि इस बहाने आदिवासी छात्र पढ़ाई लिखाई के नए तरीक़ों को भी सीख सकें. आदिवासी मंत्रालय यानि केंद्र सरकार की इस भली मंशा पर कौन ना फ़िदा हो जाए. लेकिन आगे की कहानी ऐसी है जिसे सुन कर कोई भी शर्म से गड़ जाए. इस कहानी की परतें जब आपके सामने खुलेंगी तो आपको कभी लगेगा कि क्या हमारी व्यवस्था में बैठे लोग इतने मूर्ख हैं.

कोरोना महामारी के दौरान आदिवासी मामलों के मंत्रालय को कई राज्यों की तरफ़ से चिंता बताई गई कि आदिवासी इलाक़ों में छात्रों के पास स्मार्ट फ़ोन या टेबलेट उपलब्ध नहीं हैं. इसलिए इन आदिवासी छात्रों की पढ़ाई ठप्प होने का ख़तरा बना हुआ है. 

आदिवासी मंत्रालय ने इस चिंता को गंभीरता से लिया और एक कमेटी का गठन कर दिया. इस कमेटी को यह बताना था कि कम से कम एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूलों (EMRS) के छात्रों को मोबाइल फ़ोन या टेबलेट कैसे उपलब्ध कराए जा सकते हैं. 

मंत्रालय चाहता था कि तकनीकी संसाधनों के ज़रिए आदिवासी छात्रों की पढ़ाई के नुक़सान को कम किया जा सके. इसके साथ ही मंत्रालय की मंशा यह भी थी कि इस बहाने आदिवासी छात्र पढ़ाई लिखाई के नए तरीक़ों को भी सीख सकें. 

आदिवासी मंत्रालय यानि केंद्र सरकार की इस भली मंशा पर कौन ना फ़िदा हो जाए. लेकिन आगे की कहानी ऐसी है जिसे सुन कर कोई भी शर्म से गड़ जाए. इस कहानी की परतें जब आपके सामने खुलेंगी तो आपको कभी लगेगा कि क्या हमारी व्यवस्था में बैठे लोग इतने मूर्ख हैं.

कभी आपको यह भी लग सकता है कि व्यवस्था में बैठे लोग नकारा हैं या फिर यह भी लग सकता है कि यह लालफ़ीता शाही का मामला है. अब पूरी कहानी पढ़िए. 

कोरोना महामारी के दौरान एकलव्य मॉडल स्कूलों के छात्रों की पढ़ाई के नुक़सान को कम करने के लिए सरकार 10वीं और 12वीं के बच्चों को टेबलेट उपलब्ध करवाना चाहती थी. इसके लिए कमेटी बनाई गई और यह तय हुआ कि 30 हज़ार टेबलेट आदिवासी छात्रों को दी जाएँ ताकि वो अपनी पढ़ाई जारी रख सकें.

ज़ाहिर है अगर आदिवासी छात्रों को कंप्यूटर टेबलेट बाँटनी हैं तो पहले इन्हें ख़रीदना था. इसके लिए सरकार ने जीईएम (Government E-Market Place) पोर्टल पर टेंडर जारी कर दिया. 

इस सिलसिले में CDAC (Centre for Development of Advanced Computing, Mumbai) को काम सौंपा गया कि वो आदिवासी छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाने के लिए एक मजबूत लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम तैयार करे.

यह कहानी का आवरण है. कहानी की असलियत खुलती है जब आप एक एक कर इस कहानी की परत खोलते हैं. पहली परत खुलती है जब संसद की स्थाई समिति मंत्रालय से पूछती है कि कोरोना महामारी के दौरान आदिवासी छात्रों को जो 30 हज़ार कंप्यूटर टेबलेट देने वाली थी उसकी क्या स्थिति है.

मंत्रालय का जवाब पढ़िए, “GeM पर टेंडर जारी किया गया था. लेकिन कई वजहों से इस टेंडर पर रिस्पॉंस काफ़ी ख़राब रहा. इसलिए फिर से टेंडर निकाला गया है. फ़िलहाल जिन लोगों ने टेंडर भरा है उनकी तकनीकी समीक्षा चल रही है.”

अब यहाँ आपको यह बताना बेहद ज़रूरी है कि स्थाई समिति की यह रिपोर्ट अप्रैल 2022 यानि पिछले महीने ही संसद में पेश हुई है. यानि देश कोरोना महामारी से हुए नुक़सान से उभरने का प्रयास कर रहा है. स्कूल और कॉलेज सभी खोल दिये गए हैं.

लेकिन आदिवासी छात्रों को दिए जाने वाली कंप्यूटर टेबलेट अभी तक सरकार ख़रीद नहीं पाई. अब आप सोचिए कि आदिवासी छात्रों के लिए सरकार की चिंता और गंभीरता में कितनी ईमानदार है. 

संसद की स्थाई समिति ने सरकार के जवाब पर हैरानी और दुख दोनों ही जताया है. कमेटी ने कहा है कि सरकार ने आदिवासी छात्रों को टेबलेट उपलब्ध कराने और उनकी पढ़ाई के नुक़सान को कम करने के लिए उपाय करने में इतनी देर कर दी है कि अब उसका कोई मतलब ही नहीं रह गया है. 

कमेटी कहते ही कि आदिवासी छात्रों के लिए टेबलेट ख़रीदारी में हुई देरी की वजह से आदिवासी छात्रों का जो नुक़सान हुआ है उसकी भरपाई अब नहीं हो सकती है. कमेटी ने इस सिलसिले में कई और टिप्पणी की हैं. लेकिन उन टिप्पणियों पर आने से पहले इस कहानी का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य बताना ज़रूरी है.

जब तक वो तथ्य नहीं आएगा यह कहानी अधूरी ही रहेगी. आपके मन में भी बार बार यह सवाल आता रहेगा कि ऐसा क्या था कि सरकार 30000 कंप्यूटर टेबलेट समय पर ख़रीद नहीं पाई. इसका जो कारण मंत्रालय के अधिकारियों की तरफ़ से बताया गया है उसे पढ़िए और ख़ुद ही तय कीजिएगा कि आप हंसे या रोएँ. 

जब कमेटी ने आदिवासी मंत्रालय के अधिकारियों से पूछा की आख़िर इस पूरी प्रक्रिया में इतनी देरी क्यों हो गई थी. तो मंत्रालय के अधिकारी की तरफ़ से दिया गया जवाब पढ़िए, “मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि इसके लिए दो बार टेंडर हुआ है. जब इनिशियली टेंडर हुआ और उसमें मेक इन इंडिया का क्लॉज़ आया, तब इंडिया में कोई भी कंपनी नहीं थी दो हमारी स्पेशिफिकेशन्स यानि 10 इंच का टैग और 3 जीबी की रैम पर खरी उतरती हो. इस वजह से हमें दो बार टेंडर करना पड़ा. तीसरी बार जो टेंडर किया गया है. तीसरी बार जो टेंडर किया गया है, उसका प्रोससे शुरू हो गया है. एक बार यह प्रोसेस पूरा हो जाएगा तो फिर हमारा लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम इस टैबलेट के अंदर जाएगा. उसके बाद किसी स्कूल में इंटरनेट कनक्टिविटी हो या नहीं हो, बच्चे टैबलेट के माध्यम से पूरी जानकारी ले पाएँगे.”

संसद की स्थाई समिति ने मंत्रालय से कहा है कि इस मामले में जिन अधिकारियों की कोताही की है उनकी जवाबदेही तय की जाए. 

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