यह जो पहला फ़ोटो है यह उतर बस्तर की पखांजुर तहसील में कोटरी नदी के पार के घने जंगल में लिया गया है. इन आदिवासी औरतों ने हमें बताया कि वो गोंड आदिवासी समुदाय से हैं. ये औरतें रोज़ जंगल आती हैं. इनका कहना है कि जंगल से आदिवासी को कभी ख़ाली हाथ नहीं लौटना पड़ता है.
ये औरतें कहती हैं कि आदिवासियों के लिए जंगल से दर्जनों तरह के तो कांदे ही मिल जाते हैं. इसके अलावा अलग अलग सीज़न में तरह तरह के फल भी मिलते हैं. पहाड़ी ढलानों पर छोटी मोटी खेती करने वाले आदिवासियों के लिए जंगल एक बड़ा सहारा होता है. जहां जंगल कम हुआ है वहाँ आदिवासी ग़रीबी और भुखमरी का शिकार हो गए हैं.
आदिवासी घरों में सुबह शाम अलाव जला कर घर परिवार के लोग बैठते हैं. अलाव के पास बैठ कर ये लोग अपने दिन भर की गतिविधियों और गाँव की बातों को एक दूसरे को बताते हैं. इन बातों में रोज़मर्रा की बातचीत के अलावा कई बार समाज में आ रहे बदलाव और मुश्किल होती ज़िंदगी की चर्चा भी होती है.
आदिवासी इलाक़ों में मुर्ग़ा लड़ाई मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय खेल है. आदिवासी इलाक़ों में सप्ताह में एक दिन बाज़ार लगता है. इस बाज़ार में मुर्ग़ा लड़ाई सबसे बड़ा आकर्षण होता है. इसके लिए कई दिन पहले से लोग तैयारी शुरू कर देते हैं.
इस फ़ोटो में एक गोंड आदमी मुर्ग़े के पैर पर बांधने वाला ब्लेड पैना कर रहा है. इन्होंने बताया कि लड़ाई में भाग लेने वाला मुर्ग़ा अलग से तैयार किया जाता है. इस मुर्ग़े को बाक़ायदा लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है.
इस मुर्ग़े को अलग से रखा जाता है और उसे अलग से दाना पानी भी दिया जाता है.
आदिवासी इलाक़ों में मोबाईल की पहुँच काफ़ी बढ़ी है. लेकिन नेटवर्क अक्सर कमज़ोर रहता है. गाँव के किसी कोने पर या फिर किसी पहाड़ी पर ही नेटवर्क मिलता है. गाँव में जहां नेटवर्क मिलता है, वहाँ सामूहिक रूप से लोग मोबाईल पर अपनी मनपसंद वीडियो देखते मिलते हैं.
आदिवासी इलाक़ों में छोटी छोटी लड़कियाँ अपने छोटे भाई बहनों की ज़िम्मेदारी सँभालती हैं. इनके माँ बाप अक्सर सुबह सुबह जंगल निकल जाते हैं. अपने छोटे भाई बहनों को सँभालने की ज़िम्मेदारी छोटी छोटी बच्चियों पर ही आ जाती है.
आदिवासी इलाक़ों में औरतें ही घर का कामकाज और जंगल से खाना जुटाने का काम करती हैं. बेशक मर्द भी काम करते हैं लेकिन ज़्यादा काम औरतों के हिस्से में ही आता है. आदमी अक्सर गाँवों में बैठे गप्प लगाते मिल जाते हैं. लेकिन औरतों के पास गप्प करने का समय कम ही रहता है.
बस्तर में हमारी टीम ने कई दिन बिताए और इस दौरान हमें आदिवासी ज़िंदगी के कई पहलुओं को देखने समझने का मौक़ा मिला. इसमें कई पहलू ऐसे हैं जो शहरी ज़िंदगी से बहुत बेहतर नज़र आए. लेकिन कुछ ऐसा भी लगा जो बदलना चाहिए.
क्या क्या हमने देखा, क्या बेहतर है और क्या बदल जाना चाहिए ? इस पर हम कुछ ख़ास ग्राउंड रिपोर्टों का सिलसिला शुरू कर चुके हैं. आप इन्हें देख भी सकते हैं और पढ़ भी सकते हैं.