HomeAdivasi Dailyभूरी बाई: दिहाड़ी मज़दूर कैसी मशहूर पेंटर बन गई

भूरी बाई: दिहाड़ी मज़दूर कैसी मशहूर पेंटर बन गई

भील आदिवासियों कि पिथौरा पेंटिंग को कैनवस और पेपर पर बनाने वाली पहली महिला भूरी बाई को साल 2021 में कला के क्षेत्र में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्होंने पिथोरा पेंटिंग को संरक्षित करने के साथ ही लोगों को इस कला का प्रशिक्षण भी दिया है.

भारत में करीब 730 आदिवासी समुदायों को मान्यता दी गई है. इन समुदायों की अपनी सामाजिक व्यवस्था है.

इसके अलावा इन आदिवासियों की अपनी धार्मिक आस्थाएं भी अलग अलग हैं. इन धार्मिक आस्थाओं में चित्रकारी (painting) भी शामिल है.

कई आदिवासियों के देवी देवताओं या फिर उनके परिवेश की पेंटिंग्स अब दुनिया भर में मशहूर हो चुकी हैं. ऐसी ही एक पेंटिंग पिथौरा या पिठोरा आर्ट भी है.

लेकिन अब उन लोगों की संख्या सीमित हो रही है जो इस आर्ट को जानते हैं. पिथौरा आर्ट को जानने वाले लोगों की संख्या भी अब कम होती जा रही है. इस वजह से कई अन्य आदिवासी कलाओं की तरह ही इस कला पर भी ख़तरा मंडरा रहा है.

लेकिन कुछ कलाकार ऐसे हैं जो इस कला को ना सिर्फ़ बचाने में जुटे हैं बल्कि उनका प्रयास है कि नई पीढ़ी के लोग भी इसे सीखें.

उन कलाकार में से एक आदिवासी महिला कलाकार भूरी बाई(Bhuri Bai) है. जिन्होंने अपने आदिवासी समुदाय यानी भील आदिवासियों की लोक कला पिथौरा पेंटिंग का नौजवानों को प्रशिक्षण देकर इस कला को संरक्षित रखा हुआ है.

भूरी बाई को भील आदिवासियों कि लोक कला को संरक्षित रखने के लिए साल 2021 में कला के क्षेत्र में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

कौन हैं भूरी बाई?

पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित भूरी बाई मध्य प्रदेश राज्य के झाबुआ ज़िले के छोटे से गाँव पिटोल की रहने वाली है.

उनका जन्म 10 मई 1968 को हुआ.

वह कभी स्कूल नहीं गई. लेकिन बचपन से उनका चित्रकारी से लगाव था. जिसके लिए उन्होंने कोई प्रशिक्षण नहीं लिया हुआ है. फिर भी वह पिथौरा पेंटिंग को काफी लंबे समय से बड़ी सुंदरता से बना रही है.

उन्होंने चित्रकारी को अपने पेशे के तौर पर अपनाने के इच्छुक अपने बच्चों, पोते-पोतियों और अपने रिश्तेदारों को भी चित्रकारी सिखाने और भील चित्रकारी की परम्परा को बचाए रखने की पहल की है.

इसके साथ ही उन्होंने यह ठान हुआ है कि वह अपनी अंतिम सांस तक चित्रकारी करती रहेंगी.

भूरी बाई ने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी चित्रकारी का शौक ही उनकी पहचान बन जाएगी.

उन्होंने बताया है कि वह बाहर के देश में जाना तो दूर की बात है उनको तो ठीक से हिंदी तक भी बोलना नहीं आता थी और उनका पूरा बचपन तो गरीबी में बीता है. भूरी बाई ने बचपन में दिहाड़ी-मज़दूरी करके अपने परिवार का हाथ बंटाया था.

वह अपनी बहन और पिता जी के साथ कभी कहीं, तो कभी कहीं काम की तलाश में जाया करती थी.

भूरी बाई ने यह बताया है कि वह अपने परिवार के साथ मिलकर इधर-उधर मजदूरी करती थी. फिर जंगल से लकड़ियां इकट्ठा करके लाती थी और ट्रेन में बैठकर इकट्ठा कि हुई लकड़ियों को बेचने जाती थी.

लेकिन इस सबके बीच भी वह चित्रकारी करती रहती थी. गाँव में जो भी कच्चा-पक्का घर था उसे ही गोबर-मिट्टी से लीपकर, दीवारों पर चित्र बनाकर सजाया करती थी.

कब शुरु कि पिथौरा पेंटिंग?

भूरी बाई: दिहाड़ी मज़दूर कैसी मशहूर पेंटर बन गई

भूरी बाई अपने परिवार और गांव में किसी भी पारिवारिक शादियों या समारोहों के अवसर पर घरों की सजावट करने में अपनी बड़ी बहन और मां की मदद किया करती थी. जैसे उनके गांव की अन्य लड़कियों किया करती थी.

वह सिर्फ अपने द्वारा बनाए गए प्राकृतिक और मिट्टी के रंगों का प्रयोग करके अपने पारंपरिक रूपों और डिजाइनों को चित्रित करती थी.

उन्हें चित्रकारी करने का शौक था. जिसे उन्होंने आगे बढ़ाया और एक नई मिसाल पेश की. वह देखते ही देखते विदेशों में भी अपनी पिथौरा पेंटिंग के लिए प्रशंसक बन गई.

भूरी बाई पिथौरा पेंटिंग के अलावा मजूदरी भी करती है.

जब चार्ल्स कोरिया(Charles Correa) भारत भवन(Bharat Bhawan) के निर्माण का काम कर रहे थे तो भूरी बाई वहां पर मज़दूर थी.

भारत भवन में काम करते समय एक प्रख्यात चित्रकार जे स्वामीनाथन की नज़र भूरी बाई पर पड़ी और उन्होंने देखा कि वह और दूसरी लड़कियां खाली समय में कोयले से चित्र बना रही हैं.

तो जे स्वामीनाथन ने भूरी में चित्र के प्रति छिपी हुई प्रतिभा को देखा और उन्हें यह मालूम हो गया था कि वह एक उत्कृष्ट चित्रकार बन सकती है.

भूरी बाई के चित्रकार बनने में जे स्वामीनाथन का एक बड़ा योगदान रहा है. उन्हीं के कारण वह एक मजदूर से चित्रकार बन पाई.

भूरी बाई ने पहले भारत भवन की चट्टानों पर चित्रकारी करना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे उन्होंने परंपरागत आकृतियों को कागज, कैनवास और दीवार पर भी चित्रित करना शुरु कर दिया.

जैसे-जैसे समय बीतता गया वह भील चित्रकला परंपरा की पहचान बनती गई.

वह चटकीले रंगों का प्रयोग करने के साथ ही आकृति एंव बहुत ही सुंदर मेल के साथ चित्रों की अपनी अभिन्न शैली को भी विकसित करने लगी.

इसके अलावा भूरी ने पिथौरा पेंटिंग को राज्य सरकार के लगभग सभी प्रतिष्ठित विभागों, भारत सरकार के कार्यालयों, भारत के व्यापारिक घरानों, अनेक संग्रहालयों और निजी संग्रहों में भी बनाया हुआ हैं.

उन्होंने मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध आदिवासी संग्रहालय(Madhya Pradesh Tribal Museum) में भी पिथौरा पेंटिंग को बनाया हुआ है.

इसके साथ ही भूरी बाई ने संग्रहालय की एक पूरी दीवार पर अपनी जीवनी को चित्र के रूप में चित्रित कर चुकी है.

उनके इस चित्र में उन्होंने अपने गांव के घर में एक बच्चे से लेकर एक प्रतिभावान प्रसिद्ध कलाकार की उनकी यात्रा को दर्शाया है.

भूरी बाई को चित्रकला एंव डिजाइनिंग की अच्छी समझ है.

वह अलग-अलग ज़िलों में जाकर भील आदिवासियों की पिथौरा पेंटिंग पर वर्कशॉप करती है.

पुरस्कार

भूरी बाई को पद्म श्री पुरस्कार के अलावा भी कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है.

उनको चित्रों और भील चित्रकला परंपरा में अपने योगदान के लिए राष्ट्रीय देवी अहल्या सम्मान(Rashtriya Devi Ahilya Samman), रानी दुर्गावती सम्मान(Rani Durgawati Samman), शिखर सम्मान(Shikhar Samma), और मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा मध्य प्रदेश गौरव सम्मान(Madhya Pradesh Gaurav Samman) आदि जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है.

भूरी बाई की चित्रकारी

भूरी बाई: दिहाड़ी मज़दूर कैसी मशहूर पेंटर बन गई

भूरी अपने बनाई हुई पिथौरा पेंटिंग प्रतियोगिता में जंगल में जानवर, वन एंव इसके वृक्षों की शांति तथा गाटला (स्मारक स्तंभ), भील देवी-देवताएं, पोशाक, गहने और टैटू, झोपड़ियां, अन्नागार, हाट, उत्सव तथा नृत्य और मौखिक कथाओं के साथ ही भील के जीवन के प्रत्येक पहलू को भी चित्रित करती है.

इसके अलावा उन्होंने अब वृक्षों और जानवरों के साथ-साथ वायुयान, टेलीविजन, कार तथा बसों पर भी चित्र बनाना शुरू कर दिया है.

पिथौरा पेंटिंग

पिथौरा पेंटिंग भील आदिवासी समुदाय की कला-शैली है.

यह पेंटिंग या कला सिर्फ एक कला ही नहीं बल्कि मान्यता भी है. जिसे भील आदिवासी दिवारों पर बनाते है.

इस पिथौरा पेंटिंग में बनी आकृतियों को सिर्फ पूजा नहीं की जाता है बल्कि इस पेंटिंग में आदिवासियों के जीवन को दर्शाया जाता है.

इसके अलावा मन्नत पूरी होने पर एक कमरे को गोबर से लीपा जाता है और पुरुष उसमें पिथौरा बनाते (मांडते) हैं.

इसे आम भाषा में पिथोराबाबा कहते है और उनकी पूजा भी होती है.

विवाह से लेकर मृत्यु तक के तमाम महत्वपूर्ण पलों, खेत, शिकार, उत्सव, रोजमर्रा की जिंदगी, स्थानीय वनस्पति, पशु-पक्षी पिथौरा पेंटिंग में चित्रित होते है. जिसकी पूजा की जाती है.

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