झारखंड (Jharkhand) के सरायकेला खरसावां (Saraikela Kharsawan) जिले की एक 52 वर्ष की आदिवासी पर्यावरण कार्यकर्ता चामी मुर्मू (Chami Murmu) ने पुरुषों की इच्छा के खिलाफ 500 से अधिक गांवों में पेड़ लगाने के लिए अपने क्षेत्र की सैकड़ों महिलाओं को एकजुट किया.
36 साल की कड़ी मेहनत और 28 लाख से अधिक पेड़ लगाने के बाद उन्हें झारखंड से इस साल के पद्म श्री (Padma Shri) पुरस्कार के लिए चुना गया है.
चामी मुर्मू का कहना है कि पुरस्कार पाकर वो बेहद सम्मानित महसूस कर रही हैं और इससे उन्हें उस काम को जारी रखने की प्रेरणा मिलती है जिसे उन्होंने साल 1988 में शुरू किया था.
चामी ने जो पेड़ लगाए हैं उनमें नीलगिरी, साल, बबूल, जो जलाऊ लकड़ी के अच्छे स्रोत हैं. और नीम, शीशम के पेड़ हैं, जिनका उपयोग फर्नीचर बनाने के लिए किया जाता है.
10वीं कक्षा पास करने वाली चामी को कम उम्र में ही कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा जब उन्होंने अपने पिता और बड़े भाई को खो दिया था. इसके बाद वो अपने तीन भाई-बहनों और बीमार मां की सहारा बन गईं.
चामी की यात्रा
एक पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में चामी की यात्रा 1988 में शुरू हुई जब उन्होंने नौकरी की तलाश में अपने घर से 80 किलोमीटर दूर एक गाँव में आयोजित एक बैठक में हिस्सा लिया. वह अपने गांव की 23 अन्य महिलाओं के साथ यह सीखने की उम्मीद के साथ बैठक के लिए निकलीं कि एक महिला अपने परिवार के लिए कैसे काम कर सकती है और उसकी आर्थिक स्थिति को ऊपर उठा सकती है. उन्होंने कहा कि वह विचारों से भरी हुई घर लौटीं.
चामी को एहसास हुआ कि कई ग्रामीणों के पास खाना पकाने के ईंधन के विकल्प के रूप में कोयला नहीं है और वे इस उद्देश्य के लिए पेड़ काट रहे हैं.
चामी ने कहा, “मैंने अपने क्षेत्र में बंजर भूमि के बड़े हिस्से को देखा और पेड़ लगाना शुरू कर दिया. मेरे गांव के पुरुष सदस्यों को यह मंजूर नहीं था कि कोई महिला इस तरह की शुरुआत करे. घर पर मेरी बहसें हुईं और आखिरकार मैं अपने भाई के घर चली गई. वहां मैंने अपने भाई के साथ खेतों में मजदूरी करनी शुरू कर दी. लेकिन आजीविका कमाने के साथ-साथ प्रकृति के लिए भी काम किया.”
धीरे-धीरे चामी ने महिलाओं का एक नेटवर्क बनाया और 11 सदस्यों के साथ अपना संगठन – ‘सहयोगी महिला’ स्थापित किया. उन्होंने राज्य सरकार की सामाजिक वानिकी योजना से समझौता किया और आखिरकार एक नर्सरी शुरू की.
समय के साथ उनका नेटवर्क काफी मजबूत हो चुका था. आसपास के क्षेत्र में कहीं भी पेड़ों को काटने की सूचना मिलने पर वह महिलाओं की टीम के साथ स्थल पर पहुंचकर पेड़ों को काटने से बचाने लगीं.
हालांकि, 1 लाख से अधिक पौधे लगाने के बाद 1996 में चामी को एक बड़ा झटका लगा.
दरअसल, गांव के पुरुषों ने चामी और उनके संगठन के सदस्यों द्वारा लगाए गए 1 लाख पौधों को नष्ट कर दिया. वो हैरान थीं. लेकिन इस घटना ने उन्हें परेशान नहीं किया. उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और दोषियों को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद फिर से उसी जोश के साथ उन्होंने काम करना शुरू कर दिया.
सरकार ने साल 2000 में उनके प्रयासों को मान्यता दी और उन्हें दिल्ली में ‘इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्षमित्र पुरस्कार’ मिला. उन्होंने कहा कि इसके बाद उन्हें अपने काम में कोई परेशानी नहीं हुई.
चामी ने कहा, “अब जब मैंने 28 लाख और उससे अधिक पेड़ लगाए हैं तो कभी-कभी मुझे अकेलापन महसूस होता है. क्योंकि मैंने कभी अपना परिवार शुरू नहीं किया और कभी शादी नहीं की. लेकिन यह सब एक बड़े उद्देश्य के लिए था.”
चामी यहीं नहीं रूकी… वो अपने काम में भी विविधता लायी. सरायकेला खरावां झारखंड के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है जहां किसान खेती के लिए बारिश पर निर्भर रहते हैं. ऐसे में चामी सिंचाई उद्देश्यों के लिए वर्षा जल संचयन टैंक जैसे वाटरशेड बनाने का काम कर रही है.
उन्होंने 2,800 स्वयं सहायता समूह बनाने, 30 हज़ार महिला सदस्यों को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए बैंक लोन दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
चामी मुर्मू कई लोगों, खासकर के महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं, जो दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं. उन्होंने दिखाया है कि कोई भी शख्स बाधाओं पर काबू पा सकता है और जुनून और दृढ़ता से कुछ भी हासिल कर सकता है.
उन्होंने यह भी प्रदर्शित किया है कि पेड़ लगाना न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि ग्रामीण समुदायों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी अच्छा है.
साथ ही हजारों महिलाओं को उद्देश्य और सम्मान की भावना देकर उनके सशक्तिकरण ने उन्हें इतिहास में एक सम्मानित स्थान दिलाया है. उनके जैसी शख्सियत के कारण ही दुनिया अधिक हरी-भरी और बेहतर जगह है.
कई पुरस्कारों से सम्मानित
चामी मुर्मू को साल 2019 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय नई दिल्ली के द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जिसे 8 मार्च 2020 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर यह पुरस्कार उन्हें प्रदान किया था.
इसके अलावा साल 2000 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार 1996 से भी सम्मानित किया.
चाईबासा के सामाजिक समन्वय समिति ने उन्हें चाईबासा रत्न से सम्मानित किया है. वहीं एनसीसी झारखंड बटालियन, टाटा पावर, नेहरू युवा केंद्र समेत अन्य कई संस्थानों ने उन्हें अलग-अलग मौके पर विशिष्ट पुरस्कार देकर सम्मानित किया है.