ओडिशा (Odisha) के 11,000 पवित्र स्थानों (sacred groves) को सुरक्षा प्रदान करके इन्हें भविष्य के लिए सरंक्षित किया जा रहा है.
आदिवासी समाज में मुख्य रूप से पूर्वजों और प्रकृति की पूजा होती है. इसलिए आदिवासी जंगल को भी देवी-देवता की तरह पूजता है.
आदिवासी समुदायों के पूजा स्थल या देव स्थान अक्सर जंगल के एक हिस्से में होते हैं. ये देव स्थान एक-दूसरे से आकार, स्थान और प्राकृतिक विशेषताओं में भिन्न हो सकते हैं.
आमतौर पर गांव के लोग मिल कर जंगल के उस हिस्से की देखरेख करते हैं जहां पर उनके देवता विद्यमान होते हैं.
2017 में ओडिशा सरकार ने 9 ज़िलें के 10,599 उपासना स्थलों को एसडीसी(स्पेशल डेवोल्पमेंट काउंसिल) लिस्ट में जोड़ा था.
एसडीसी (SDC) का उद्देश्य आदिवासी पहचान को बनाए रखना और जनजातीय संस्कृति का विकास करना है.
इस लिस्ट में जंगल में जितने भी आदिवासी पविक्ष स्थल हैं उनकी चारदिवारी कराई जाती है. इसके अलावा प्रसाद तैयार करने और वितरण के लिए यहां मंडप भी बनाए जाते है.
इसके साथ ही एसडीसी द्वारा आदिवासियों को सामुदायिक वन अधिकार (सीएफआर) द्वारा भूमि अधिकार भी दिए जा रहे हैं.
इसी सिलसिले में पर्यावरण विशेषज्ञ बिजया मिश्रा ने बताया की समय के साथ वनों का संरक्षण जरूरी हो गया है. क्योंकि यह पवित्र उपवन जैव विविधता का सबसे अच्छा उदाहरण है.
उन्होंने आगे कहा की यह उपवन पेड़ों और अन्य फल-फूलों की लुप्त प्राजतियों को भी सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं.
एसडीसी के अंतर्गत 9 ज़िलों के 10,599 उपवनों में से अब तक 5712 को विकसित किया जा चुका है.
पिछले साल एसडीसी लिस्ट में 14 नए ज़िलों जोड़ा गया था. इन 14 ज़िलों में 584 पवित्र उपवन शामिल है, जिनमें विकास कार्य अभी किए जा रहे हैं.
ओडिशा सरकार का यह फैसला अच्छा ही कहा जएगा, लेकिन इस फैसले की टाइमिंग पर सवाल उठ रहे हैं. ज़्यादातर लोगों का मानना है कि राज्य सरकार ने यह फैसला चुनाव को ध्यान में रखते हुए कहा है.
हाल ही में ओडिशा में सरकार ने आदिवासियों की ज़मीन की ख़रीद बिक्री पर लगी रोक को हटाने का ऐलान किया था. लेकिन आलोचना के बाद इस फ़ैसले को वापस ले लिया गया था.
इस पृष्ठभूमि में ऐसा लगता है कि सरकार ने चुनाव से पहले आदिवासियों की नाराज़गी को कम करने के लिए यह कदम उठाया है.