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वायरल बुख़ार से हॉस्टल में आदिवासी लड़के की मौत दुखद और शर्मनाक है

जब मौसम बदलता है तो वायरल बुख़ार एक सामान्य सी बीमारी है. लेकिन अगर वायरल बुख़ार से एक आदिवासी लड़के की मौत हो जाती है तो यह एक गंभीर विषय है जिसकी तह में जाने की ज़रूरत है. आदिवासी मामलों पर निगरानी और सुझावों के लिए बनी समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने 2014 में आश्रम स्कूलों की ज़रूरत और योगदान पर एक रिपोर्ट संसद को दी थी. इस रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई हुई, कौन जाने?

तेलंगाना के एक आश्रम स्कूल में वायरल बुख़ार से एक आदिवासी लड़के की मौत हो गई है. इस लड़के का नाम अल्लम राजेश बताया गया है. प्रशासन ने कहा है कि पंछीकालपेट मंडल में इल्लूरू नाम के गाँव के इस लड़के की मौत बुख़ार बिगड़ जाने की वजह से हो गई.

इस सिलसिले में मिली जानकारी के अनुसार अल्लम राजेश क़रीब एक हफ़्ते से बीमार था. जब उसकी हालत बहुत ख़राब हो गई तो उसे आदिलाबाद के राजीव गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ले जाया गया. लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी और इस आदिवासी लड़के को बचाया नहीं जा सका.

इस मामले के विरोध में छात्र संगठनों ने रास्ता रोको प्रदर्शन किया है. छात्र संगठनों का कहना है कि अगर इस बच्चे को सही समय पर सही इलाज मिलता तो उसकी जान नहीं जाती.

छात्र संगठनों का कहना है कि स्कूल प्रशासन ने इस पूरे मामले में गंभीर लापरवाही दिखाई है. जब यह लड़का एक हफ़्ते से बीमार था तो उसके परिवार को इसकी सूचना तक नहीं दी गई थी.

जब उसकी हालत बहुत ज़्यादा बिगड़ गई और उसकी जान ख़तरे में पड़ गई तब परिवार को सूचित किया गया. जब तक परिवार को सूचना मिली और उन्होंने उसे एक प्राइवेट अस्पताल में दाखिल कराया, यह मामला बिगड़ चुका था.

इस दुखद घटना के विरोध में सड़कों पर उतरे छात्र संगठनों ने पीड़ित परिवार को कम से कम 15 लाख रूपये मुआवज़े की माँग रखी है.

जब मौसम बदलता है तो वायरल बुख़ार एक सामान्य सी बीमारी है. लेकिन अगर वायरल बुख़ार से एक आदिवासी लड़के की मौत हो जाती है तो यह एक गंभीर विषय है जिसकी तह में जाने की ज़रूरत है.

आदिवासी छात्रों के लिए बनाए गए हॉस्टलों में इस तरह की घटना कोई पहली बार नहीं हुई है. इन हॉस्टलों में साफ़ सफ़ाई और सुविधाओं की कमी एक पुराना मसला है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि वायरल बुख़ार से हुई इस मौत से एक परिवार ने अपना बच्चा खो दिया है.

उस परिवार के सदमे के अलावा यह समाज और सिस्टम दोनों के लिए ही बेहद शर्मनाक बात है कि वायरल जैसी मामूली बीमारी में एक आदिवासी बच्चे की जान चली जाती है. इस घटना के बाद सिर्फ़ आदिलाबाद ज़िला प्रशासन ही नहीं बल्कि राज्य में जितने भी आदिवासी हॉस्टल हैं, उनके हालातों की जाँच होनी चाहिए.  

आश्रम स्कूलों की ज़रूरत और योगदान

आदिवासी मामलों पर निगरानी और सुझावों के लिए बनी समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति ने 2014 में आश्रम स्कूलों की ज़रूरत और योगदान पर एक रिपोर्ट संसद को दी थी.

इस रिपोर्ट में कमेटी ने यह माना था कि आश्रम स्कूलों का आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा की स्थिति को सुधारने में अहम योगदान है. इसके साथ ही कमेटी ने यह भी कहा था कि इन स्कूलों का योगदान और भी अधिक हो सकता है बशर्ते इनकी हालत बेहतर की जाए. 

अलग अलग राज्य में आदिवासी छात्रों के लिए ये स्कूल राज्य सरकारों द्वारा चलाए जाते हैं. लेकिन कमेटी ने इस बात को अफ़सोस के साथ नोट किया था कि इन स्कूलों की संख्या के बारे में केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय या जनजाति कार्य मंत्रालय को कोई अंदाज़ा तक नहीं है. 

कमेटी ने यह जोर दे कर यह सुझाव दिया था कि राज्य और केन्द्र सरकारें मिल कर देश में चल रहे आश्रम स्कूलों के बारे में आँकड़े जमा करे. इसके साथ ही इन स्कूलों को स्थापित मानदंडों पर चलाया जाना चाहिए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है. 

लेकिन अफ़सोस कि संसद की स्थाई समिति की इस मामले में 8 साल पहले आई रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को किसी मंत्रालय ने गंभीरता से नहीं लिया. 

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