15 दिसंबर 2022, गुरूवार को जब लोकसभा में जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के लिए बिल पेश किया. इस बिल पर चर्चा के दौरान की सांसदों ने अपने अपने राज्य के समुदायों की तरफ़ से आवाज़ उठाई.
इसी सिलसिले में ओडिशा में सत्ताधारी दल बीजू जनतादल की सांसद चंद्रानी मुर्मू ने दुरवा आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की माँग की. दुरवा समुदाय को छत्तीसगढ़ में पीवीटीजी (PVTG) की श्रेणी में रखा गया है.
लेकिन ओडिशा में यह समुदाय अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल नहीं हुआ है. इस समुदाय के लोग लंबे समय इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस क्रम में इस समुदाय के लोग कई बार दिल्ली भी आ चुके हैं.
अपने दावे के समर्थन में दुरवा समुदाय के लोग अपने परंपरागत वाद्ययंत्र, औज़ार और अपनी जीवनशैली से जुड़े दूसरे प्रमाण पेश करते रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार ने उनकी इस माँग पर अभी तक कोई फ़ैसला नहीं किया है.
हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय के अलावा केंद्र सरकार ने तमिलनाडु, यूपी और छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी समुदायों के समूहों और उपसमूहों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का फ़ैसला किया है.

इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए संसद में कई बिल लाए जा रहे हैं. इन बिलों पर चर्चा के दौरान यह अहसास होता है कि जिन भी राज्यों में आदिवासी आबादी मौजूद है , उन सभी राज्यों में इस तरह का मसला मौजूद है.
ओडिशा के दुरवा समुदाय की माँग पर बोलते हुए संजू जनता दल की सांसद चंद्रानी मुर्मू ने कहा कि ओडिशा की राज्य सरकार ने कम से कम 160 समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा हुआ है.
इन 160 समुदायों में कुछ तो नए नाम हैं जिन्हें अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की सिफ़ारिश की गई है. इनमें से ज़्यादातर नाम ऐसे हैं जो आदिवासी समुदाय पहले से ही इस सूची में शामिल हैं. लेकिन इन समुदायों के कुछ समूहों को अनुसूचित जनजाति के लिए किये गए आरक्षण या दूसरे प्रावधानों का लाभ नहीं मिल पाता है.
इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि उनके नाम के उच्चारण में फ़र्क़ मिलता है. इसके अलावा कई ऐसे समुदाय हैं जिन्हें छत्तीसगढ़ या झारखंड में अनुसूचित जनजाति माना गया है लेकिन ओडिशा में उन्हें जनजाति नहीं माना जाता है.
ओडिशा के दुरवा आदिवासियों की कहानी कुछ इसी तरह की है. ओडिशा के मल्कानगिरी, कोरापुट और नबरंगपुर के दुरवा अनुसूचित जनजाति की सूचि से बाहर हैं. लेकिन इन इलाक़ों से सटे छत्तीसगढ़ के बस्तर में दुरवा आदिवासी विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति मानी जाती है.
आदिवासियों को जनजाति की सूची में रखे जाने पर संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार ये सूची राज्य विशेष के आधार पर होगी. इसका अर्थ ये है कि अगर एक आदिवासी समुदाय को एक राज्य में जनजाति की श्रेणी में रखा गया है, तो ऐसा ज़रूरी नहीं है कि उसी समुदाय को दूसरे राज्य में भी वो दर्जा मिल जाये.
संविधान की धारा 342 में ये साफ़ किया गया है कि आदिवासी या आदिवासी समुदायों या किसी समुदाय के किसी हिस्से को जनजाति की सूची में राज्य विशेष या केन्द्र शासित प्रदेश विशेष में ही रखा जायेगा.
इस प्रावधान के अनुसार जनजाति की सूची राज्यों या केन्द्र शासित प्रदेशों के लिये अलग-अलग नोटिफ़ाई की जाती है. यह सूची उस राज्य विशेष में ही लागू होती है.
संसद के वर्तमान यानि शीत सत्र में विपक्ष के कई दलों के सांसद यह माँग करते रहे हैं कि अनुसूचित जनजाति तय करने की प्रक्रिया के कुछ निश्चित मापदंड तय कर दिये जाएँ.
इसके अलावा सरकार टुकड़ों में अलग अलग समुदायों के लिए बिल लाने की बजाए एक व्यापक बिल लाए जिसमें अलग अलग राज्यों के सभी समुदायों के साथ न्याय हो सके.