पश्चिम बंगाल में देउचा पाचामी कोयला खादान का विरोध कर रहे आदिवासी चार दिन की यात्रा पूरी कर कल यानि 14 अप्रैल को कोलकाता पहुंच रहे हैं.
देउचा-पाचामी, दिवानगंज-हरिनसिंगा इलाके में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित कोयला खादान परियोजना के खिलाफ आदिवासी पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे हैं.
इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जगन्नाथ टुडु ने MBB से बातचीत करते हुए कहा कि यह आंदोलन पूरी तरह से लोकतांत्रिक तरीके से चल रहा है.
उन्होंने कहा कि आदिवासियों ने अपनी ज़मीन और जीविका और वन अधिकार को बचाने के लिए बार-बार प्रशासन को ज्ञापन दिया है.
MBB से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ पर सरकार ज़बरदस्ती सभी कानूनों का उल्लंघंन करते हुए ज़बरदस्ती आदिवासियों की ज़मीन का अधिग्रहण कर रही है.
इसलिए अब आदिवासी मजबूर हो कर देउचा-पचामी से लेकर कोलकाता में राजभवन तक यात्रा कर रहे हैं. हम लोग अब अपनी मांगों को राज्यपाल के सामने रखेंगे.
आदिवासी महासभा के आह्वान ‘राजभवन चलो यात्रा’ 10 अप्रैल को मथुरा पहाड़ी नाम के गांव से शुरू हुई है.
ये यात्रा मोहम्मद बाज़ार, शिवड़ी, बोलपुर, बर्धमान, उत्तर 24 परगना का अशोक नगर, बड़ा नगर होते हुए 14 अप्रैल यानि अंबेडकर जयंति के दिन कोलकत्ता पहुंच रही है.
आदिवासी अधिकार महासभा के प्रवक्ता शिवलाल सोरेन ने इस आंदोलन की मांगों के बारे में बात करते हुए कहा कि पहली मांग तो यही है कि इस परियोजना को रद्द किया जाए. क्योंकि यह परियोजना आदिवासियों की जीविका और अधिकार पर हमला है.
उसके अलावा इस परियोजना से पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुँचेगा.
इस आंदोलन की मुख्य मांगे निम्नलिखित हैं –
- इस इलाके में प्रस्तावित कोयला खादान परियोजना को खारिज किया जाए
- ग़ैर कानूनी तरीके से जमीन अधिग्रहण और आदिवासी विस्थापन तुरंत रोका जाए
- पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई की जाए
- गांव के जो रास्ते खोदे गए हैं उनकी मरम्मत की जाए
- संविधान की अनुसूचि 5 में दिए गए अधिकार इस इलाके में भी लागू किये जाएं
- सरकारी अस्पताल का निर्माण किया जाए
- संताली भाषा के लिए ओलचिक्की लिपि में शिक्षा की व्यवस्था की जाए
देउचा पाचामी हरिन सिंगा – दीवानगंज कोयला ब्लॉक बहुत बड़ा है
केंद्र सरकार ने 2018 में पश्चिम बंगाल को भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला ब्लॉक देउचा पाचामी हरिनसिंगा दीवानगंज कोयला ब्लॉक आवंटित किया था.
यह दुनिया की सबसे बड़ी खानों में से एक है. इसमें 2,102 मिलियन टन कोयले का अनुमानित भंडार है. 12 वर्ग किलोमीटर ये ज़्यादा पर फैला यह कोयला ब्लॉक बीरभूम ज़िले में है.
इस कोयला ब्लॉक दिसंबर 2019 में पश्चिम बंगाल सरकार को आवंटित किया गया था.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दावा है कि इस खदान से कम-से-कम एक लाख से ज़्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा. लेकिन इलाक़े के संथाल आदिवासी और क्षेत्र के छोटे किसानों का कहना है कि इससे उनकी आजीविका पर संकट गिरेगा.
आदिवासियों की इस सोच के पीछे की वजह साफ़ है. अनुमान है कि इस परियोजना से क़रीब 70 हज़ार लोग विस्थापित होंगे. इसके अलावा लोगों को डर है कि परियजना के लागू होने से वह अपनी पारंपरिक भूमि खो देंगे.
हालांकि खदान से फ़िलहाल कोयला खनन शुरू नहीं हुआ है, लेकिन खदान के ऊपर जो पत्थर की खानें हैं, उनकी वजह से प्रदूषण का स्तर काफ़ी बढ़ गया है. इससे इलाक़े के छोटे किसानों की फ़सल को नुकसान पहुंच रहा है.
2019 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि प्रस्तावित देचा पाचामी कोयला ब्लॉक पर काम तभी शुरू होगा जब वहां रह रहे 4,000 आदिवासियों का पुनर्वास हो जाएगा. हालांकि, 4000 लोग मतलब इलाक़े की सिर्फ़ 40 प्रतिशत आबादी.
इलाक़े के आदिवासी, और सामाजिक कार्यकर्ता राज्य की टीएमसी सरकार के दावा पर भी सवाल उठा रहे हैं कि अकेले देवचा-पाचामी कोयला ब्लॉक में कम से कम एक लाख लोगों के लिए रोज़गार तैयार होगा.
टीएमसी ने इससे पहले भले ही भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों की लहर पर सवारी की हो, लेकिन अब यह देखना होगा कि सरकार में रहते हुए पार्टी का इन आंदोलनों के बारे में क्या रवैया रहता है.