मध्य प्रदेश के जबलपुर में जल जंगल ज़मीन के लिए सैंकड़ों आदिवासियों ने 75 किलोमीटर का रास्ता तय किया. 30 जनवरी को नारायणगंज मंडला से चले ये आदिवासी शुक्रवार को जबलपुर पहुंचे और कमिश्नर कार्यालय के सामने धरना दिया. इस धरने में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल थे.
अपने इलाके में मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते ये आदिवासी इतनी लंबी पैदल यात्रा कर प्रशासन के सामने गुहार लगाने पहुंचे थे. ये लोग कमिश्नर को ज्ञापन देने पहुंचे थे. शुक्रवार को ये आदिवासी दिन भर धरने पर बैठे रहे, इसके बावजूद कमिश्नर उनसे मिलने नहीं पहुंचे और कार से मंडला रवाना हो गए.कांग्रेस विधायक अशोक मर्सकोले के नेतृत्व में बैठे आदिवासियों का कहना था कि उनको उनका हक चाहिए. वो संभागायुक्त बी. चंद्रशेखर से मिलने के लिए अड़े रहे, लेकिन संभागायुक्त प्रदर्शनकारियों के पहुंचने से पहले ही दफ्तर से निकल गए.
संभागायुक्त के उपेक्षापूर्ण रवैए से नाराज आदिवासी कमिश्नर आफिस की सड़क ब्लाक करके बैठ गए. दोपहर करीब दो बजे से सड़क जाम कर बैठे आदिवासी जब रात 10 बजे तक नहीं हटे तो कमिश्नर ने उनसे मलाकात के लिए हामी भर दी. दोनों पक्षों की यह मुलाकात रात साढ़े दस बजे से कमिश्नर कार्यालय के सभागार में शुरू हुई जो रात करीब 12 बजे तक चली.
धरना दे रहे मंडला जिले के आदिवासियों ने कहा कि बरगी बांध के निर्माण में उनके घर-जमीन पानी में समा गए. उनको सरकारी मदद के नाम पर कुछ नहीं मिला. आदिवासियों के मुताबिक, बांध बनने से पहले उनको सपना दिखाया गया था कि बांध बनने के बाद उनको भरपूर पानी मिलेगा, उनके खेत लहलहाने लगेंगे.उनको पीने के पानी के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.

हालांकि बांध को बने साढ़े तीन दशक से ज्यादा का वकत गुजर चुका है, लेकिन उनको बांध से एक बूंद पानी की मदद भी नहीं मिल पाई है.
आदिवासियों के समूह का नेतृत्व करते हुए कांग्रेस विधायक डा. अशोक मर्सकोले ने कहा कि वो 30 जनवरी से पैदल चल रहे थे, उनकी संभागायुक्त से मोबाइल पर लगातार चर्चा हो रही थी. बी.चंद्रशेखर ने ही उनको दोपहर तीन से चार बजे के बीच का समय मुलाकात के लिए दिया था. लेकिन उन लोगों के कमिश्नर आफिस पहुंचने से पहले ही संभागायुक्त कहीं चले गए.
कांग्रेस विधायक ने कहा, “मंडला ज़िले के आदिवासी पहले बरगी बांध, कान्हा नेशनल पार्क और फिर मनेरी औधोगिक क्षेत्र के चलते कई बार विस्थापन झेल चु्के है. इसके बावजूद प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार इन्हें बिजली, पानी और रोज़गार जैसी मूलभूत सुविधाएं देने में भी नाकाम साबित हुई है.”
खबरों के मुताबिक, आदिवासियों की इस यात्रा को कांग्रेस पार्टी और जयस का समर्थन भी मिला और पार्टी के कई नेता इसमें शामिल हुए. मौके पर विधायक लखन घनघोरिया, विनय सक्सेना, संजय यादव और महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू पहुंचे. इस यात्रा में बरगी बांध विस्थापन समिति और बसनिया ओढ़ारी बांध विरोधी संघर्ष समिति के सदस्य भी शामिल रहे.
प्रदर्शनकारी आदिवासियों ने विभिन्न परियोजनाओं में विस्थापित परिवारों की स्थिति का आकलन कर आर्थिक पुनर्वास, सामुदायिक वन अधिकार दिलाने और पलायन रोकने के लिए 10 वर्षीय दीर्घकालीन योजना शुरू करने सहित अन्य मांगों को उठाया.
बता दें, मध्य प्रदेश के जबलपुर संभाग का मंडला और डिंडोरी जिला एक आदिवासी इलाका माना जाता है, जो पांचवी अनुसूची में आता है. मंडला और डिंडोरी के पास ही करीब 40 साल पहले नर्मदा नदी पर जल आपूर्ति के लिए बरगी बांध (नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 प्रमुख बांधों की श्रृंखला में से एक) बनाया गया था,जिसमें हजारों लोग विस्थापित किए गए थे.
वहीं सूचना के अधिकार 2005 से प्राप्त जानकारी के अनुसार, अब मंडला में फिर से तीन बांध- बसनिया, रोसरा और राघवपुर प्रस्तावित किए गए हैं. लेकिन इन बांधों में आदिवासी समुदाय की जमीन, प्राकृतिक संसाधन और निजी संपत्ति डूब जाएगी इसलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं.
बांध और विस्थापन के आंकड़े बताते हैं कि 1947 के बाद अकेले भारत में 4,300 बड़े बांधों ने 42 मिलियन से अधिक लोगों को विस्थापित किया. आदिवासी भारत की आबादी का लगभग 8 प्रतिशत है, लेकिन देश के विस्थापितों में वे 40 प्रतिशत से अधिक है.
मध्य प्रदेश सरकार के मुताबिक बरगी बांध नर्मदा नदी पर बना वृहद बांध है. यह एक बहुउद्देशीय बांध है. सरकार के मुताबिक यह बांध जबलपुर और आसपास के क्षेत्रों में जल आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत है. बरगी डाइवर्शन प्रोजेक्ट और रानी अवंतीबाई लोधी सागर प्रोजेक्ट इस डेम पर विकसित की गई दो महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है. समय के साथ-साथ बरगी डेम जबलपुर के एक महत्वपूर्ण पर्यटन केन्द्र के रूप में भी विकसित किया गया है.