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PVTG की जनसंख्या नहीं पता तो ‘15000’ करोड़ का बजट कैसे तय हुआ – संसदीय समिति

सरकार के पास विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों यानि PVTG की जनसंख्या के बारे में कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं. फिर सरकार ने यह कैसे तय किया कि इनके विकास के लिए 15 हज़ार करोड़ रूपये की ज़रूरत होगी. संसदीय स्थाई समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सवाल सरकार से पूछा है.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने वर्ष 2023-24 के बजट के जरिए समृद्ध और समावेशी भारत में “विकास के सुफल अन्य वर्गों सहित अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) तक” पहुंचने का दावा किया है.

इस बजट में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups) के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु प्रधानमंत्री पीवीटीजी (PM-PVTG) विकास मिशन शुरू करने की घोषणा की गई है.

इस मिशन के तहत वित्तमंत्री ने आगामी तीन सालों में 15 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराने की घोषणा की है.

इस घोषणा के हफ्तों बाद 14 मार्च को सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर स्थायी समिति ने निराशा व्यक्त की कि इतने बड़े बजटीय आवंटन की योजना तब बनाई गई थी जब जनजातीय मामलों के मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs ) के पास कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पीवीटीजी आबादी पर डेटा नहीं था.

जनजातीय मामलों के मंत्रालय की अनुदान मांगों पर अपनी रिपोर्ट में बीजेपी सांसद रमा देवी की अध्यक्षता वाले हाउस पैनल ने कहा, “समिति पीवीटीजी के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि और जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा इसके उपयोग को लेकर संदेह में है. क्योंकि कई राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) की जनसंख्या का डेटा अभी भी उनके पास उपलब्ध नहीं है.”

पैनल ने कहा कि मंत्रालय के अधिकारियों ने सदस्यों को सूचित किया कि पीवीटीजी के लिए 5 हजार करोड़ के वार्षिक खर्च की योजना बनाई गई है, जिसे अगले तीन वर्षों में खर्च किया जाना है. अधिकारियों ने समिति को यह भी बताया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आधारभूत सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया है और यह अभी सत्यापन प्रक्रिया के तहत है.

पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “समिति का मानना है कि यह पहले किया जाना चाहिए था क्योंकि उनका मानना है कि पीवीटीजी की जनसंख्या के सही विवरण के अभाव में योजना के लिए वित्तीय आवंटन सही परिणाम नहीं दे सकता है.”

हाउस पैनल ने यह भी कहा कि एक मूल्यांकन अध्ययन से पता चला है कि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पीवीटीजी डेटा है ही नहीं, जिसमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं. जबकि पैनल के सदस्यों ने यहां हाल ही में दौरा किया था तो पता चला सात में से छह अनुसूचित जनजाति समूह पीवीटीजी वर्गीकरण के अंतर्गत आते हैं.

पैनल ने कहा, “समिति आशा करती है कि अब विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पीवीटीजी की जनसंख्या का विवरण गंभीरता से इकट्ठा किया जाएगा और जल्द से जल्द सत्यापित किया जाएगा ताकि उनके लिए बजटीय आवंटन का सही उपयोग किया जा सके और पीवीटीजी का सामाजिक-आर्थिक विकास व्यापक रूप से किया जा सके.”

पैनल ने यह भी बताया कि सरकार 2022-23 में पीवीटीजी के विकास के लिए 252  करोड़ के शुरुआती आवंटन में से सिर्फ 6.48 करोड़ खर्च कर पाई थी.

भारत में 75 आदिवासी समुदायों को PVTG सूचि में रखा गया है

पैनल ने कहा कि समिति उम्मीद करती है कि मंत्रालय एक सुविचारित कार्य योजना के तहत पीवीटीजी के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करेगा. साथ ही कहा कि मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने का तरीका खोजना चाहिए कि उपयोगिता प्रमाणपत्रों के लंबित होने का समाधान किया जाए और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को बकाया अनुदान जारी किया जाए.

पैनल ने उम्मीद के साथ कहा कि पीएम-पीवीटीजी विकास मिशन में एक ढहती हुई योजना को फिर से जीवंत करने की क्षमता है अगर इसे अपेक्षित बल के साथ सही तरीके से लागू किया जाता है.

पैनल ने कहा कि उम्मीद की जा रही है कि मंत्रालय तौर-तरीकों, दिशानिर्देशों और एसओपी को तेजी से तैयार करेगा और जनजातीय मामलों के मंत्रालय से नियमित अपडेट भी मांगेगा.

इस मसले को समझने के लिए यह वीडियो भी देख सकते हैं

2023-24 आवंटन

इस वर्ष के बजट अनुमानों में जनजातीय मामलों के लिए 12 हजार करोड़ से अधिक के आवंटन पर समिति ने कहा कि वह इस वृद्धि की सराहना करती है. हालांकि, साथ ही कहा कि पिछले तीन वित्तीय वर्षों में जनजातीय मामलों के मंत्रालय का आवंटन लगातार बीई चरण से आरई चरण तक कम हो गया है और चेतावनी दी है कि इस वर्ष इसे दोहराया न जाए.

पैनल ने कहा, “मंत्रालय द्वारा दिए गए सभी कारणों के समग्र विश्लेषण के बाद समिति ने पाया है कि एडवांस प्लैनिंग का अभाव, प्रक्रियाओं में बदलाव और अपेक्षित उत्साह और प्रक्रियात्मक अनुशासन के साथ योजनाओं को लागू करने के लिए राज्यों/संघ शासित प्रदेशों की विफलता प्रमुख कारण हैं. जिस पर इन वर्षों के दौरान वास्तविक व्यय बजटीय अनुमानों की तुलना में कम था.”

इसमें कहा गया है कि मंत्रालय को सभी हितधारकों को प्रक्रियाओं और कार्यान्वयन आवश्यकताओं के बारे में सूचित रखने और अन्य उपायों के साथ लाभार्थियों पर उचित डेटा इकट्ठा करने के लिए विस्तृत अभ्यास करना चाहिए ताकि पूरे बजट का उपयोग किया जा सके.

क्या है पीएम-पीवीटीजी विकास मिशन

PM-PVTG मिशन के लिए आवंटित 15 हज़ार करोड़ राशि से पीवीटीजी परिवारों और उनके पर्यावास (हैबिटैट) को सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, सड़क और दूरसंचार संपर्कता और संधारणीय आजीविका के अवसरों जैसी बुनियादी सुविधाएं पूरी तरह उपलब्ध कराई जाएंगी.

वित्तमंत्री ने अपनी घोषणा से खुद इस ओर इशारा किया है कि गहरे जंगलों में रहने वाले पीवीटीजी आदिवासी परिवार आवास, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और अन्य सरकारी सेवाओं के अभाव से पीड़ित हैं. ऐसे में बजट से उनकी उम्मीदें इन्हीं आवश्यकताओं से जुड़ी हैं. तो क्या वर्ष 2023-24 का बजट आदिवासियों की इन जरूरतों को पूरा करता है?

हालांकि, वित्तमंत्री ने जिस प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन की घोषणा की है जिसका स्वागत होना चाहिए. लेकिन यह कोई नया प्रयास नहीं है. वर्ष 2009-10 में केंद्र सरकार ने इस में 155 करोड़ खर्च किया जो वर्ष 2015-16 में 213.54 करोड़ रुपये हो गया. वर्ष 2021-22 सरकार ने 160 करोड़ रुपये का वास्तविक व्यय बजट दस्तावेजों में दिखाया है.

बजट 2023-24 और आदिवासी

बजट 2023-24 का कुल बजट 4503097 करोड़ रुपये का है, जोकि पिछले साल के बजट अनुमानों से 558118 करोड़ रुपये (14.14 प्रतिशत) अधिक है. वहीं वर्ष 2023-24 का आदिवासी बजट पिछले साल के बजट अनुमान के मुकाबले 33 प्रतिशत से अधिक है.

दो हिस्सों में बंटे केंद्रीय आदिवासी बजट में एक हिस्सा जनजाति मंत्रालय जोकि देश में अनुसूचित जनजातियों संबंधित नीतियों, कार्यक्रमों और उनके क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार है, की मांग संख्या 100 के तहत होता है.

दूसरा हिस्सा देश के अन्य मंत्रालयों और विभागों से संबंधित बजट मांगों में आदिवासियों की हिस्सेदारी से संबंधित होता है, जो “सारणी 10 ख” में दिया जाता है.

जनजाति मंत्रालय की मांग संख्या 100 के तहत इस बार कुल 12461.88 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. यह देश के कुल बजट का मात्र 0.28 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के बजट का मात्र 10.36 प्रतिशत है.

जनजाति मंत्रालय में आदिवासियों के बजट आवंटन को 21 मदों में आवंटित किया गया है. इनमें से ग्यारह मदों में बजट राशि में पिछले साल के मुकाबले वृद्धि की गई है. आदिवासी बजट की 8 मदों में बजट आवंटन को पिछले साल के मुकाबले कम कर दिया गया है. दो मदों का आवंटन पिछले साल के बजट के बराबर ही रखा गया है.

अनुसूचित जनजातियों के बजट में पिछले साल के मुकाबले प्रमुख बजट वृद्धियों में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बजट में 9.63 करोड़, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त विकास निगम में 15 करोड़, अनुसूचित जनजाति कल्याण में कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाओं हेतु 30 करोड़ रुपये, पोस्ट-मेट्रिक छात्रवृति में 5.77 करोड़.

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों के विकास के लिए 4.14 करोड़, जनजातीय महोत्सव, अनुसन्धान, सूचना और जनशिक्षा की मद में 10 करोड़, निगरानी और मूल्यांकन में 8 करोड़, प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना में 1485 करोड़, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को प्रशासनिक व्यय की मद में 53.22 करोड़ और संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत अनुदान 122.10 करोड़ रुपये की वृद्धि शामिल है.

अनुसूचित जनजातियों के बजट में पिछले साल के मुकाबले बजट कटौतियों में उत्तर-पूर्व क्षेत्र के जनजातीय उत्पादों के प्रोत्साहन, मार्केटिंग और लोजीस्टिक विकास की मद में 87.53 करोड़, अनुसूचित जनजातियों हेतु वैंचर कैपिटल फ़ंड में 20 करोड़, प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन में 110.51 करोड़, अनुसूचित जनजाति हेतु प्री-मेट्रिक छात्रवृति में 7.37 करोड़, अनुसूचित जनजाति उपघटकों को विशेष केंद्रीय सहायता में 1354.38 करोड़, और जनजाति अनुसंधान संस्थान में 2.36 करोड़ रुपये की कटौती शामिल है.

इस साल संसद में पेश बजट ही नहीं बल्कि संसद की स्थायी समितियों ने पहले के बजट पर भी सरकार की चालाकी को उजागर किया है. संसदीय समिति ने बार बार यह तथ्य बताया है कि सरकार बजट में घोषणा करके वाह वाही लूट तो लेती है, लेकिन बाद में (Revised Estimates) आदिवासी योजनाओं का पैसा काट दिया जाता है.

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