HomeIdentity & Lifeनारिकुरवन समुदाय (Narikurvan) के नाम पर आपत्ति कितनी सही ?

नारिकुरवन समुदाय (Narikurvan) के नाम पर आपत्ति कितनी सही ?

नारिकुरवन समुदाय को लंबे संघर्ष के बाद जनजाति का दर्जा मिलने की उम्मीद बंधी है. केंद्र सरकार ने उनके प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है. उम्मीद है कि संसद में भी बिल पास हो जाएगा. लेकिन अब उन्हें दूसरे मोर्चे पर संघर्ष करना पड़ सकता है.

केन्द्र सरकार ने तमिलनाडु में एक अर्ध-घुमंतू जनजाति नारिकुरवन समुदाय (Narikuravan Community) को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) का दर्जा  देने का फैसला कर लिया.  14 सितंबर, 2022 को इस फैसले के साथ ही इस समुदाय का पांच दशकों से अधिक समय का इंतजार ख़त्म हो गया. 

लेकिन कुरवन या कोरवर (Kuravan or Koravar)  समुदाय की माँग है कि अधिकारी ‘नारीकुरवन’ या ‘नारिकोरवर’ नाम का इस्तेमाल बंद कर दें. उनका कहना है कि आधिकारिक अधिसूचनाओं और राजपत्रों में इस शब्द का इस्तेमाल भ्रम पैदा कर रहा है. 

तमिलनाडु में, कुरवन, सिद्धनार के साथ, अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) की श्रेणी में रखे गए हैं. जबकि मलकुरवन अनुसूचित जनजाति के तहत सूचीबद्ध हैं. इसके अलावा इंजी कोरावर, सलेम उप्पू कोरावर, थोगमलाई कोरावर या केपमारिस, अत्तूर किलनाड, अत्तूर मेलनाड, चांग्यमपुडी, डोब्बा, डाबी, गंधर्वकोट्टई कोरावार सहित लगभग 24 कोरावर समुदायों को अधिकांश पिछड़ा वर्ग (Most Backward Class) के तहत डीनोटिफाइड कम्युनिटीज (Denotified Communities) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.

उन्हें एक बार “आपराधिक जनजाति” (Criminal Tribes) के रूप में ब्रांडेड किया गया था और औपनिवेशिक काल के दौरान उन्हें परेशान किया गया था. 1952 में “आपराधिक जनजातियों” का नाम बदलकर डीनोटिफाइड ट्राइब्स (Denotified Tribes) कर दिया गया.

नारिकुरवन कौन है

नारिकुरवन को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के दावे की पड़ताल के लिए नीलगिरी में स्थित ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट ऊटी (Tribal Research Institute, Ooty) को शोध की ज़िम्मेदारी दी गई थी. उस समय इस संस्थान के डायरेक्टर सी आर सत्यानारयणंन C R Satyanaryanan थे. 

MBB से बातचीत में उन्होंने बताया, “ जून 2011 में मैने अपनी रिपोर्ट भेजी थी. इस रिपोर्ट में हमने यह बताया था कि ये लोग गुजरात के पारधी या फिर महाराष्ट्र के वाघड़ी लोग हैं. ये दरअसल जंगल में शिकार और कंदमूल की तलाश में घूमते रहृते थे और इसी सफ़र में वो इस इलाक़े में पहुँच गए.”

वो आगे कहते हैं, “इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का फ़ैसला देर से लिया गया सही फ़ैसला है. क्योंकि शोध में यह पाया गया था कि जब उनके लिए जंगल से भोजन जुटाना संभव नहीं रहा तो उन्होंने जड़ी बूटी बेचने का काम शुरू किया. “

डॉ सत्यानारयणंन के अनुसार इस आदिवासी समुदाय को अभी तक अति पिछड़े वर्ग में रखा गया था. इसलिए सरकारी योजनाओं और आरक्षण का लाभ लेने के लिए उनका मुक़ाबला उन जातियों से था जो उनसे बहुत ज़्यादा शक्तिशाली और साधन संपन्न हैं. 

नारिकुरवन नाम के इस्तेमाल पर उनका कहना था कि इस नाम पर यह समुदाय कोई दावा नहीं करता है. बल्कि यह नाम तो इस घुमंतू समुदाय को स्थानीय लोगों का दिया हुआ है. 

कुरवन या कोरवर समुदाय और जनजाति की माँग

कुरवन या कोरवर समुदाय के बारे में भी शोध करने की ज़िम्मेदारी डॉ सत्यानारयणंन को ही दी गई थी. क्योंकि इस समुदाय को अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र देने में काफ़ी भ्रम की स्थिति बन रही थी. प्रशासन कई साल से कुरवन समुदाय के लोगों को अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) प्रमाणपत्र जारी कर रहा था.

लेकिन प्रशासन को लगातार यह मुश्किल आ रही थी कि कुरवन अनुसूचित जाति है या फिर डिनोटिफ़ाइड ट्राइब है. इस सिलसिले में उन्होंने 2010 के सितंबर महीने में अपनी शोध रिपोर्ट सरकार को भेजी. इस शोध में उन्होंने  बताया कि तमिलनाडु के करूर ज़िले में कुरूवन समुदाय को बाक़ी जातियाँ अनुसूचित जाति ही मानती हैं.

उन्होंने निष्कर्ष में कहा है कि कोरवन और कुरवन में कोई फ़र्क़ नहीं है. यह सिर्फ़ तमिल भाषा के उच्चारण का फ़र्क़ है. इस सिलसिले में शोध संस्थान की रिपोर्ट में सिफ़ारिश की गई कि कुरवन और कोरवर समुदाय में कोई फ़र्क़ नहीं है. इसलिए उन्हें अति पिछड़ों की सूचि से निकाल कर अनुसूचित जाति की सूचि में डाल दिया जाना चाहिए. 

अपने शोध में उन्होंने यह भी बताया कि दरअसल यह सवाल का जवाब तो 1985 में ही दे दिया गया था. उस समय अंबाशंकर कमीशन की रिपोर्ट में यह भ्रम दूर कर दिया गया था. कुरवन या कोरवर समुदाय को जनजाति की सूचि में शामिल करने की माँग के सिलसिले में उनका कहना था कि क्योंकि यह समुदाय पहले से ही अनुसूचित जाति की सूचि में शामिल है, शायद इसलिए उनकी इस माँग पर कोई गंभीरता नहीं दिखाता है. 

MBB से बात करते हुए सत्यानारायणंन ने कहा, “हमने अपने शोध में कहा कि कुरवन और कुरवर या कोरवर में कोई फ़र्क़ नहीं है. इसलिए इन सभी को एक ही समुदाय के उपसमूह मान कर एसी लिस्ट में शामिल करना चाहिए. लेकिन अभी तक इस मसले पर तमिलनाडु सरकार ने फ़ैसला नहीं किया है.”

हमने उनसे पूछा कि जो जाति पहले से ही अनुसूचित जाति की सूचि में शामिल है उनकी अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की माँग कितनी जायज़ है. उनका कहना था, “दरअसल अनुसूचित जाति की सूचि में उनका मुक़ाबला कई ऐसी जातियों से होता है जो संख्या और प्रभाव में बहुत बड़े हैं. इसलिए वो चाहते हैं कि उन्हें ST लिस्ट में डल दिया जाए.”

वो कहते हैं कि अपने दावे के संबंध में वो आंध्र प्रदेश के येरुकुला जनजाति का उदाहरण देते हैं. आंध्र प्रदेश के येरुकुला और तमिलनाडु के कुरवन दरअसल एक ही समुदाय के लोग है. इनकी जीवन शैली और व्यवसाय भी एक जैसा ही है.

उनके शोध में बताया गया है कि इन्हें एंथ्रोपोलोजिस्ट व्यवसायिक समूह यानि उनके काम के आधार पर पहचाने जाने वाले समूह के तौर पर वर्गीकृत करते हैं.

इनके व्यवसाय के बारे में वो बताते हैं कि पहले ये लोग फेरी लगा कर नमक और हल्दी जैसी चीजें बेचते थे. लेकिन वक़्त के साथ उनका व्यवसाय बदला है. ये लोग अब बांस की टोकरी और चटाई बुनने का काम करते हैं.

इसके अलावा इस समुदाय के लोग हाथ देखने और तोते के ज़रिए भविष्य बताने का काम भी करते हैं. डॉक्टर सत्यानारायणंन मानते हैं कि आंध्र प्रदेश और तमिल नाडु के इन दोनों ही समुदायों को एक ही माना जा सकता है.

अनुसूचित जनजाति तय करना पेचीदा मसला

डॉ सत्यानारायणंन कहते हैं कि केन्द्र सरकार ने जिन समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया है, उन पर बहुत लंबे समय से बात होती रही है. वो उदाहरण देते हुए कहते हैं, “तमिलनाडु का नारिकुरवन समुदाय हो या फिर हिमाचल प्रदेश का हाटी समुदाय, यह मामला तो पिछले 50 साल से चल रहा है. अब सरकार ने इनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया है. “

वो कहते हैं कि नारिकुरवन को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने का फ़ैसला तो बहुत पहले हो गया था. वो मानते हैं कि किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देना बेहद पेचीदा और मुश्किल काम है.

उन्होंने हाटी समुदाय का उदाहरण देते हुए कहा कि यह समुदाय हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था का सख़्ती से पालन करता है. फिर इसे आदिवासी समुदाय कैसे माना जा सकता है. क्योंकि वो एक मुश्किल भौगोलिक स्थिति में रहते हैं इसलिए शायद उनको केंद्र सरकार ने विशेष केस के तौर पर यह दर्जा दिया है. 

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