HomeIdentity & Lifeनेशनल पार्क से आदिवासियों को बाहर करना ग़ैर-क़ानूनी और अमानवीय काम

नेशनल पार्क से आदिवासियों को बाहर करना ग़ैर-क़ानूनी और अमानवीय काम

इस मामले में सबसे दुखद बात ये है कि जिन आदिवासियों को जंगल से बाहर करने के लिए योजना बनाई गई है, उन आदिवासियों से बात तक नहीं की गई है. यह आरोप लगा है कि वन विभाग ने वन अधिकार क़ानून का पूरी तरह से उल्लंघन किया है.

अनुसूचित जनजाति विकास विभाग (Scheduled tribes development department) ने पुनर्निर्माण केरल कार्यक्रम के तहत वन और वन्यजीव विभाग की एक ‘स्वैच्छिक जनजातीय पुनर्वास योजना’ (Voluntary tribal rehabilitation scheme) पर कड़ी आपत्ति जताई है. यह हवाला देते हुए कि यह अवैज्ञानिक रूप से और कमजोर आदिवासी समूहों से बातचीत किए बिना कल्पना की गई योजना है.

साथ ही यह भी कहा कि योजना ने अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रावधानों का उल्लंघन किया है.

आंकड़ों के मुताबिक, योजना के अन्तर्गत 479 आदिवासी परिवारों (230 परिवार पूरी तरह से, 249 आंशिक रूप से) का राज्य के 19 फॉरेस्ट डिवीजन और वन्य जीव अभ्यारण्यों में पुनर्वास किया जा रहा है.

फील्ड रिपोर्ट के आधार पर यह पता चला है कि एसटी विभाग ने वन और वन्यजीव विभाग को अपने मौजूदा स्वरूप में कार्यक्रम के साथ आगे नहीं बढ़ने के लिए कहा है क्योंकि यह कानूनी अधिकारों पर विचार किए बिना अव्यवस्थित भूमि खरीद और आवंटन योजना के रूप में आदिवासी समुदायों, जिन्हें जंगल से बाहर निकाला जा रहा है पर लागू किया जा रहा है.

एक शीर्ष सरकारी सूत्र ने कहा, “इन कमजोर जनजातीय समूहों जैसे कट्टूनायकर और कुरुमा के प्रति यह घोर अन्याय है. क्योंकि उनका जीवन जंगल से बेहद निकटता से जुड़ा है बावजूद इसके इस पर विचार किए बिना उन्हें उनके प्राकृतिक आवास से बाहर स्थानांतरित कर दिया जाए. इस तरह के पुनर्वास कार्यक्रम को लागू करते समय ऊरुकुट्टम यानि आदिवासी पंचायतों से भी सलाह नहीं ली गई है.”

वहीं वन और वन्यजीव विभाग को अस्थायी उपाय के रूप में दिए गए 7.4 करोड़ रुपये के जनजातीय कल्याण कोष का इस्तेमाल कार्यक्रम के लिए भूमि खरीदने के लिए किया गया था और यह धनराशि अभी तक वापस नहीं की गई है. क्षेत्र के अधिकारियों ने बताया है कि पुनर्वास कार्यक्रम ने केंद्र द्वारा पारित वन अधिकार अधिनियम, 2006 की धारा 4 (2) का उल्लंघन किया है.

सेक्शन 4 (2) के मुताबिक, “राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के महत्वपूर्ण वन्यजीव आवासों में इस अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त वन अधिकारों को बाद में संशोधित या पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है, बशर्ते कि वन्यजीव संरक्षण के लिए कोई भी वन अधिकार धारकों को पुनर्स्थापित नहीं किया जाएगा या उनके अधिकारों को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं किया जाएगा.”

शर्तों का कहना है कि पुनर्वास तब तक शुरू नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि उन क्षेत्रों में इन आदिवासी समूहों की उपस्थिति से वन्यजीवों के अस्तित्व को खतरा न हो, सह-अस्तित्व का कोई अन्य विकल्प उपलब्ध न हो, एक पुनर्वास या वैकल्पिक पैकेज तैयार किया गया हो जो प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों के लिए सुरक्षित आजीविका प्रदान करता है. साथ ही प्रभावित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं की सहमति लिखित रूप में प्राप्त की जाती है और जब तक वादा किए गए पैकेज के अनुसार पुनर्वास स्थान पर सुविधाएं और भूमि आवंटन पूरा नहीं हो जाता.

दरअसल, ‘स्वैच्छिक’ योजना के तहत जबरन बेदखली और पुनर्वास के मामले सामने आए हैं. पता चला है कि वन और वन्यजीव विभाग ने निजी व्यक्तियों और भूमि विक्रेताओं को वास्तविक पंजीकरण और पुनर्वास के लिए संपत्ति के हस्तांतरण के बिना 52.88 लाख रुपये हस्तांतरित किए हैं जो की गलत है.

साथ ही अनुसूचित जनजाति विभाग के फंड के ऑडिट में टिप्पणी की गई थी कि आदिवासी कल्याण फंड ऐसी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए नहीं हैं.

इस योजना का हाल ही में नवकिरणम परियोजना के रूप में नामकरण किया गया है, जो अलग-अलग इलाकों में गहरे जंगलों में रहने वाले जनजातीय समुदायों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए है.

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