HomeIdentity & Lifeआदिवासियों पर तमिल सीखने की शर्त क्यों रखी जाए?

आदिवासियों पर तमिल सीखने की शर्त क्यों रखी जाए?

तमिलनाडु सरकार ने जंगल में एंटी पोचर्स का काम करने वाले 78 आदिवासियों की नौकरी पक्की की है. लेकिन इस नौकरी को पक्की करने की एक शर्त यह भी है कि इन आदिवासियों को तमिल आती हो. क्या यह शर्त व्यवहारिक है?

तमिलनाडु सरकार ने 78 आदिवासियों की नौकरी पक्की करने का एक आदेश जारी किया है. ये आदिवासी पिछले 10 साल से जंगल में अवैध शिकार रोकने के लिए काम कर रहे थे. 

तमिलनाडु फ़ॉरेस्ट यूनिफॉर्म्ड सर्विस रिक्युरटमेन्ट कमेटी (The Tamil Nadu Forest Uniformed Service Recruitment Committee) ने 167 आदिवासियों के नाम पर विचार करने के बाद इन 78 आदिवासियों की नौकरी को रेगुलर करने का फैसला किया है.

आदिवासियों की नौकरी को पक्की करने वाली कमेटी ने कहा है कि जिन 67 आदिवासियों की नौकरी पक्की नहीं की गई वे कई ज़रूरी शर्तों को पूरा नहीं करते थे. मसलन उनमें से कुछ की शारीरिक बनावट और छाती का साइज़ ठीक नहीं था. 

यह भी बताया गया कि कुछ आदिवासी तमिल लिखना या पढ़ना नहीं जानते थे. जबकि कुछ आदिवासियों के पास कोई प्रमाण पत्र या रिकॉर्ड ही नहीं था. 

प्रशासन की तरफ़ से बताया गया है कि जंगल में इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष को कम करने में ये लोग (anti poachers) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसलिए सरकार ने अवैध शिकार रोकने वाले लोगों की नौकरी को पक्का करने का फैसला किया है.

अतिरिक्त मुख्य सचिव सुप्रिया साहू की तरफ़ से जारी एक आदेश में कहा गया है कि सरकार 78 आदिवासियों की नौकरी पक्की कर रही है जिनकी 10 साल की सर्विस हो चुकी है. 

लेकिन इस आदेश से पता चलता है कि इन 78 आदिवासियों में से सिर्फ़ 38 आदिवासी ही नौकरी की सभी शर्तें पूरी करते हैं. इनमें से 23 आदिवासी ऐसे हैं जो तमिल लिख या पढ़ नहीं सकते हैं. 

इन आदिवासियों को अगले एक साल में तमिल लिखना और पढ़ना सीखना होगा. इनमें से 10 ऐसे थे जो शारीरिक मापदंड पूरा नहीं करते थे. सात लोग के बारे में बताया गया है कि ना तो वो तमिल लिखना-बोलना जानते हैं और ना ही वे शारीरिक मापदंडों पर खरे उतरते हैं.

लेकिन सरकार यह मानती है कि आदिवासी जंगल में अवैध शिकार रोकने के अलावा इंसान और जानवरों के टकराव को रोकने में भी अहम भूमिका निभाते हैं. इसलिए इन सभी आदिवासियों को विशेष छूट देते हुए इनकी नौकरी पक्की कर दी गई है.

लेकिन 27 आदिवासियों के नाम पर विचार नहीं किया गया क्योंकि वो अपना जाति प्रमाणपत्र या जन्म तिथि का प्रमाणपत्र नहीं दे पाए. 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि 10 साल से जंगल में अवैध शिकार रोकने के लिए काम करने वाले आदिवासियों की नौकरी को सरकार ने पक्का कर दिया है. लेकिन इस आदेश में बताया गया है कि जो आदिवासी तमिल पढ़ या लिख नहीं सकते हैं, उन्हें अगले एक साल में तमिल लिखना सीखना होगा.

सवाल ये है कि तमिल इन आदिवासियों को क्यों सीखनी चाहिए? क्या तमिल नहीं जानने वाले आदिवासियों के काम में पिछले 10 साल में कोई बड़ी कमी नज़र आई? ये सवाल हैं जिन पर सरकार को विचार ज़रूर करना चाहिए.

इसके अलावा जो आदिवासी पिछले 10 साल से जंगल में विभाग के साथ काम कर रहे हैं, उनमें से कई को इसलिए पक्की नौकरी के काबिल नहीं समझा गया क्योंकि वो प्रमाणपत्र नहीं दे पाए.

आदिवासी इलाक़ों में ज़्यादातर परिवारों में इस तरह के लोग मिल जाएँगे, जिन्हें अपनी उम्र का अंदाज़ा नहीं होता है. इसके अलावा कई परिवार ऐसे मिलते हैं जिनके पास कोई भी प्रमाणपत्र मौजूद नहीं होता है.

इसलिए तमिलनाडु सरकार से यह उम्मीद की जाएगी कि उन्होंने एक अच्छा काम किया है, लेकिन आदिवासियों को एंटी पोचर्स के तौर पर भर्ती करने की शर्तों की समीक्षा ज़रूर करनी चाहिए. 

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