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आदिवासी गांवों तक इंटरनेट पहुंचाने के लिए इसरो के साथ समझौता, कितना लागू होगा?

आदिवासी मामलों के मंत्रालय के साथ हुए समझौते में कहा गया है कि आदिवासी इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने के लिए 80 गाँवों में यह परियोजना लागू होगी. लेकिन मंत्रालय को अभी यह नहीं पता है कि ये गांव कौन से होंगे.

जनजातीय कार्य मंत्रालय और इसरो के बीच झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र के 80 आदिवासी गांवों में इंटरनेट की पहुंच (Internet Services) बढ़ाने का समझौता हुआ है. इस समझौते के तहत इन गांवो में प्रयोग के तौर पर वी-सेट (V-SAT, Very Small Aperture Terminal) लगाए जाएंगे. 

गुरूवार को नई दिल्ली में जनजातीय कार्य मंत्रालय की एक बैठक हुई थी. इस बैठक की अध्यक्षता जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने की थी. इस बैठक में यह चर्चा की गई कि आदिवासी इलाकों में विकास के लिए क्या क्या नई पहल हो सकती हैं.

इस बैठक के दौरान हुई चर्चा में आदिवासी इलाकों में इंटरनेट सेवाओं, स्वास्थ्य सुविधाओं और कई अन्य परियोजनाओं शामिल की गईं. इस बैठक में देश के कई प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ समझौते हुए हैं.

इन संस्थानों में इसरो के अलावा एम्स (AIIMS), आईआईटी (IIT), आईआईएम (IIM) और आईआएससी (IISc) शामिल हैं. इसरो के साथ हुए क़रार के मुताबिक देश के चार राज्यों के उन 80 गांवों को चुना जाएगा जो दूर-दराज के दुर्गम इलाकों में मौजूद हैं.

इन आदिवासी गांवों को अभी तक इंटरनेट सेवाओं से नहीं जोड़ा जा सका है. आदिवासी मंत्रालय के अधिकारियों ने यह कहा है कि इसरो के साथ हुए इस समझौते के तहत चलने वाले प्रोजेक्ट की निगरानी की जाएगी. क्योंकि मंत्रालय चाहता है कि अन्य आदिवासी गांवों में भी इस परियोजना को लागू किया जा सके. 

MBB ने पाया है कि कई राज्यों के आदिवासी इलाकों में लोग नेटवर्क की तलाश में भटकते रहते हैं

मंत्रालय का कहना है कि इस पहल का मकसद आदिवासी गांवों में भी ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देना है. आदिवासी मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों ने यह बताया है कि जल्दी ही इन चार राज्यों यानि झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और मध्य प्रदेश  के उन 80 गांवों की पहचान की प्रक्रिया शुरु की जाएगी जिनमें यह परियोजना लागू होगी. 

इसरो के अलावा जिन ज़रूरी मुद्दों पर इस बैठक में बातचीत हुई उसमें स्वास्थ्य सेवाएं भी शामिल थी. इस सिलसिले में दिल्ली स्थित आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के साथ आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर रिसर्च करने के लिए कहा गया है.

इस रिसर्च में सिकल सेल पर ज़्यादा जो़र देने की बात हुई है. इसके अलावा आदिवासी इलाकों में मेडिकल कैंप, डॉक्टर्स और पैरामेडिकल ट्रेनिंग पर भी समझौता हुआ है. इसके अलावा यह प्रस्ताव भी इस बैठक में दिया गया कि एम्स में रक्त विज्ञान में भगवान बिरसा मुंडा चेयर (Birsa Munda Chair of Tribal Health and Haematology) की स्थापना की जाए. 

आईआईएम (IIM Kolkkata) और आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) के साथ भी आदिवासी इलाकों में तकनीक और व्यवसाय को बढ़ाने के प्रस्ताव दिये गए हैं. 

आईआईएससी (IISc) के साथ भी एक समझौते का प्रस्ताव इस बैठक में रखा गया था. इस बैठक में आदिवासी इलाकों के छात्र-छात्राओं के लिए सेमीकंडक्टर की ट्रेनिंग के लिए समझौते का प्रस्ताव रखा गया.

इस बैठक में जो इसरो के साथ समझौता हुआ है वह बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि आज के युग में देश के आदिवासी इलाकों में नागरिकों को इंटरनेट से वंचित रखना उनके अधिकारों का उल्लंघन है. 

सुप्रीम कोर्ट नागरिकों को इंटरनेट से वंचित करने के मामले को आर्टिकल 19 (1A) यानि नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. संयुक्तराष्ट्र संघ की भी यह सिफ़ारिश है कि सभी देशों के लिए यह ज़रूरी है कि वे अपने सभी नागरिकों तक इंटरनेट पहुंचाएं.

अफ़सोस की बात ये है कि चाहे वह राशन हो या फिर राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी स्कीम के तहत मिलने वाली मज़दूरी सभी के लिए इंटरनेट की ज़रूरत पड़ती है. लेकिन देश के कई आदिवासी इलाके ऐसे हैं जहां अभी तक इंटरनेट उपलब्ध नहीं है.

लॉक डाउन के दौरान यह देखा गया था कि जब पूरी दुनिया इंटरनेट के भरोसे थी तब भी आदिवासी इलाकों में इंटरनेट उपलब्ध नहीं था. इसलिए पहले से ही अलग-थलग रह रहे आदिवासी और भी दूर हो गए और पीछे भी छूट गए.

इस लिहाज से आदिवासी मामलो के मंत्रालय और इसरो के बीच हुआ यह समझौता महत्वपूर्ण है. लेकिन इस मामले में दिलचस्प बात ये है कि मंत्रालय ने चार राज्यों के नाम घोषित किये हैं और गांवों की संख्या भी बता दी है जहां यह प्रोजेक्ट काम करेगा, लेकिन उन गांवों को अभी तक चुना नहीं गया है.

इस सरकार के फैसलों के बारे में यह बार-बार देखा जा रहा है कि बिना पर्याप्त ग्राउंड वर्क किये, घोषणा कर दी जाती है. हम उम्मीद करेंगे कि इस बार इसरो के साथ यह समझौता सिर्फ घोषणा ही साबित ना हो. क्योंकि इसमें सरकार ही नहीं इसरो की भी साख दांव पर है. 

लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले सरकार को इस समझौते से अख़बारों में कुछ सुर्ख़ियाँ ज़रूर मिल गई हैं.

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