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बजट में आदिवासी भारत के लिए बड़ी घोषणाएं- लेकिन ज़रूरी आँकड़े तक मौजूद नहीं हैं

बजट 2023 (Budget 2023) में केंद्र सरकार ने आदिवासियों (Tribals) का खासा ख्याल रखा है. इसमें भी विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों (PVTG) के लिए 15000 करोड़ के राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की गई है. साथ ही EMRS पर भी फोकस रखा गया है. EMRS के लिए 38 हजार से ज्यादा टीचर्स और स्टाफ की भर्ती की जाएगी.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने आज संसद में साल 2023-24 के लिए बजट (Budget 2023) पेश किया. अपने बजट भाषण की शुरूआत में निर्मला सीतारमण ने कहा कि ये अमृतकाल का पहला बजट है इसका उद्देश्य देश के सभी तबकों को फायदा पहुंचाने का है. उन्होंने कहा, “हम एक समृद्ध और समावेशी भारत की कल्पना करते हैं. जिसमें विकास का फायद सभी क्षेत्रों तक पहुंचे ..विशेष रूप से हमारे युवा, महिलाएं, किसान, ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों तक.”

साल 2023-24 के इस बजट में वित्त मंत्री ने आदिवासी समुदायों के लिए भी बड़ी घोषणाएं की. वित्त मंत्री ने बताया कि PVTG यानी (विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों ) के लिए प्रधानमंत्री PVTG डेवेलपमेंट मिशन की शुरूआत की जाएगी.

वहीं आदिवासी छात्रों के लिए भी सरकार ने बड़ी घोषणा की है. छात्रों की पढ़ाई के लिए बनाए गए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में 38,800 शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों की भर्ती की जाएगी. ये भर्ती 740 विधालयों में साल 2025 तक पूरी की जाएगी. इससे देश के 3.5 लाख आदिवासी छात्रों को फायदा होगा.

हेल्थ सेक्टर में सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए मिशन शुरू किया जाएगा. सरकार ने साल 2047 तक इसे खत्म करने का लक्ष्य रखा है. इसमें भी खासा ध्यान इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित अनुसूचित जनजाती क्षेत्रों में दिया जाएगा. इसके तहत इन क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा. साथ ही 0-40 आयु वर्ग में 7 करोड़ लोगों की जांच की जाएगी.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट 2023 के साथ

इस साल के बजट में जनजातीय कार्यों के मंत्रालय के लिए 12 हज़ार 461.88 करोड़ का बजट अनुमान रखा गया है. वहीं अनुसूचित जनजाति विभाग की कई योजनाओं के लिए 4200 करोड़ का बजट अनुमान रखा गया है. वहीं EMRS यानी एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के लिए साल 2023-34 के लिए 5 हज़ार 943 करोड़ का बजट अनुमान रखा गया है.

PVTG के लिए महत्वपूर्ण योजना

इस बजट में आदिवासी समुदायों से जुड़ी जो बेहद महत्वपूर्ण घोषणा हुई है वो है विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों (PVTG) के लिए राष्ट्रीय मिशन की घोषणा. वित्त मंत्री इस मिशन के तहत 15000 करोड़ रूपये का प्रावधान बजट में रखा है. विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों के लिए इस मिशन के तहत साफ़ पीने का पानी, स्वास्थ्य सुविधाएँ, स्वच्छता की सुविधाएँ और रोज़गार के साधन उपलब्ध कराने पर यह पैसा ख़र्च किया जाएगा.

देश के 18 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले 75 आदिवासी समुदायों को विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) के तौर पर पहचाना गया है.

पीवीटीजी यानि विशेष रूप से पिछड़े आदिवासी समुदाय उन्हें कहा जाता है जो अभी भी मुख्यधारा से बहुत दूर हैं. यानि ये आदिवासी अभी भी लगभग पूरी तरह से जंगल के भरोसे ही जीते हैं और खेती किसानी में माहिर नहीं हैं.

इसके अलावा शिक्षा , स्वास्थ्य और विकास के दूसरे मापदंडों पर ये समूह पिछड़े हुए हैं. इनमें से कई ऐसे आदिवासी समुदाय हैं जिनका जनसंख्या में नकारात्मक वृद्धि दर दर्ज हो रही है.

ऐसे समुदायों के बारे में यह आशंका जताई जाती है कि ये समुदाय जल्दी ही विलुप्त हो सकते हैं. इसलिए इनके वजूद को बजाए रखने के लिए सरकार को ख़ास उपाय करने चाहिएँ.

इस तरह के समुदायों में अक्सर अंडमान के ग्रेट अंडमानी, जारवा, ओंग या सेंटिनली आदिवासी समुदायों का नाम लिया जाता है. इन समुदायों के लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे हज़ारों साल से अंडमान द्वीप समूहों के अलग अलग द्वीपों पर रहते आए हैं.

बोंडा जनजाति की महिलाएं

इन समुदायों का बाहरी दुनिया से ना के बराबर संपर्क रहा है. ये आदिवासी समुदाय किसी बाहरी व्यक्ति को अपने इलाक़े में नहीं घुसने देते हैं. इसलिए उनके अस्तित्व को बचाने का काम बेहद मुश्किल है. हालाँकि अब इन आदिवासियों में से भी कोई समुदाय ऐसा नहीं है जिसके साथ प्रशासन का संपर्क नहीं है.

लेकिन इन आदिवासी समुदायों के अलावा भी कई राज्यों में ऐसे आदिवासी समुदाय हैं जिनकी संख्या 1000 से भी कम बची है. इनमें बिहार में बिरजिया और असुर, ओड़िशा में मांकडिया, झारखंड में बिरहोर, सबर, सौरिय पहाड़िया का नाम लिया जा सकता है.

सरकार ने देश के अलग अलग राज्यों में 75 आदिवासी समूहों की पहचान विशेष रूप से पिछड़े समुदायों के तौर पर इसलिए की थी कि इनके विकास पर ख़ास ध्यान दिया जा सके. सरकार इनके विकास के लिए अलग से योजनाएँ बनाती है.

सरकार ने विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों के लिए अलग से राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की है और इसके लिए फंड का इंतज़ाम भी किया गया है, यह बेशक एक स्वागत योग्य कदम है.

जनसंख्या का सही आँकड़ा नहीं पता है

सरकार ने यह फ़ैसला किया है कि PVTG जिन्हें आदिम जनजाति या विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति कहा जाता है, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने के पानी और रोज़गार का इंतज़ाम किया जाएगा. इसके लिए एक निश्चित रक़म भी खर्च की जाएगी.

लेकिन इस काम में एक बड़ा मसला है…..और मसला ये है की देश में PVTG कहे जाने वाले 75 आदिवासी समुदायों की जनसंख्या के बारे में सरकार के पास कोई आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं.

किसी भी क्षेत्र या समुदाय के विकास के लिए विकास की योजना बनाने के लिए कुछ आँकड़ों की ज़रूरत होती है. मसलन अगर PVTG बस्तियों में पानी पहुँचाना है तो यह तो पता होना ही चाहिए ना कि आख़िर जन बस्तियों में PVTG रहते हैं, उनकी संख्या कितनी है. इसी तरह से क्या यह पता होना ज़रूरी नहीं है कि PVTG के कुल कितने परिवार अलग अलग राज्यों में रहते हैं.

भारत सरकार के आदिवासी मंत्रालय ने 9 फ़रवरी 2022 को संसद को बताया कि उनके पास PVTG की जनसंख्या के कोई आँकड़े मौजूद नहीं हैं. आदिवासी मामलों के मंत्रालय का कहना है कि हर दस साल में होने वाली जनगणना में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या के आँकड़े जमा किये जाते हैं. लेकिन विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों की अलग से जनगणना नहीं होती है. सरकार ने बताया कि 1951 की जनगणना के बाद किसी भी दशक में यह आँकड़े नहीं जुटाए गए हैं.

महाराष्ट्र की कातकारी जनजाति की महिलाएं

दरअसल पीवीटीजी यानि जो आदिवासी समुदाय विशेष रूप से पिछड़े समुदायों की तरह पहचाने गए हैं, उनकी आबादी में गिरावट से जुड़ा एक सवाल संसद में पूछा गया था. सरकार से पूछा गया था कि 3 सालों में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों की जनसंख्या का क्या रुझान है. संसद में सरकार से पीवीटीजी समुदायों की जनसंख्या के ताज़ा आँकड़े भी माँगे थे.

कई राज्यों में सरकारें इन आदिवासियों के विकास के लिए माइक्रो प्रोजेक्ट चलाती हैं जिनके लिए अलग से पैसे का प्रावधान किया जाता है. लेकिन यह अजीबोग़रीब बात है कि इन आदिवासियों की सही सही संख्या जाने बिना ही इनके लिए विशेष योजनाएँ बनती हैं.

संसद में पूछा गया यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि कई पीवीटीजी समुदायों में जनसंख्या में या तो ठहराव है या फिर गिरावट है. सरकार ने इनकी जनसंख्या में गिरावट या ठहराव को रोकने के लिए कई उपाय करने के दावे किए हैं.

इस सवाल के जवाब में जो आँकड़े दिए गए हैं उनसे पता चलता है कि राज्य सरकारें भी इन विशेष रूप से कमज़ोर कहे जाने वाले आदिवासी समूहों को लेकर बहुत मुस्तैद नहीं हैं. तमिलनाडु और केरल को छोड़ दें तो शायद ही किसी राज्य के पास अपने पीवीटीजी समुदायों की जनसंख्या के सही आँकड़े मौजूद हैं.

आज सरकार ने केंद्रीय बजट में एक सकारात्मक कदम उठाया है कि उसने आदिवासियों और ख़ासतौर से पिछड़ी या आदिम जनजातियों के लिए अलग से धन का आवंटन किया है. इसलिए यह मान लेते हैं कि सरकार इस पैसे को कहां और कैसे ख़र्च करना है यह भी पता कर ही लेगी.

साल 2014 प्रोफेसर वर्जिनियस खाखा कमेटी ने देश के आदिवासियों पर एक व्यापक स्टडी करने के बाद रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में आदिवासियों से जुड़े 5 ज़रूरी मुद्दे बताए गए थे – 1. जीविका और रोज़गार, 2. शिक्षा, 3. स्वास्थ्य, 4. जबरन विस्थापन और 5. संविधान में दिए गए अधिकार और सुरक्षा

2014 में प्रोफ़ेसर खाखा कमेटी की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर इस विस्तृत रिपोर्ट में PVTG के लिए इन सभी मुद्दों के अलावा ज़ोर देकर कहा गया है कि साल 2006 के वन अधिकार क़ानून के तहत इन समुदायों को ज़मीन का अधिकार दिया जाना चाहिए.

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