महाराष्ट्र सरकार ने पिछले साल अगस्त में राज्य के आदिवासी परिवारों को 4,000 रुपये की मदद देने का ऐलान किया था. इसके लिए 462 करोड़ रुपये के बजट को मंज़ूरी दी गई, और 11.55 लाख परिवारों की एक सूचि बनाई गई.
इस योजना को कोरोनोवायरस लॉकडाउन की वजह से संघर्ष कर रहे आदिवासी परिवारों को कुछ राहत देने के लिए बनाया गया था. इसके तहत 2,000 रुपये सीधे इन परिवारों के बैंक कातों में जाने थे, और 2,000 रुपये का राशन उन्हें दिया जाना था.
यह सरकारी प्रस्ताव 9 सितंबर को घोषित हुआ था. अब, क़रीब सात महीने बाद भी यह आदिवासी परिवार इस मदद का इंतज़ार कर रहे हैं. इस काम के लिए कई आदिवासी परिवारों से उनके आधार कार्ड और बैंक स्टेटमेंट की कॉपी भी ली जा चुकी हैं.
कोविड लॉकडाउन ने देश के कई आदिवासी और दूसरे ग़रीब परिवारों की कमर तोड़ दी. काम के लिए यात्रा करना मुश्किल हो गया, और कई आदिवासी जो खेत मज़दूर की तरह काम करते थे, उनका रोज़गार छिन गया.
ऐसे में इस योजना से इन परिवारों को काफ़ी मदद मिलती, लेकिन अब लॉकडाउन शुरु हुए एक होने को है, और रहात का इंतज़ार अभी भी है.
महाराष्ट्र के आदिवासी विकास मंत्री के सी पाडवी ने विधानसभा में माना कि 11.55 लाख आदिवासी परिवारों में से किसी को भी अब तक इस योजना का लाभ नहीं मिला है. उन्होंने सभा को बताया कि सरकार फ़िलहाल इन परिवारों के आधार कार्ड जारी करने और खाते खोलने की प्रक्रिया में है.
इसके अलावा राशन के लिए टेंडर भी निकाला गया है. हालांकि इस टेंडर के लिए अभी तक एक ही आवेदन आया है.
एक स्टीयरिंग कमेटी (Steering Committee) ने 1 दिसंबर 2020 को इस टेंडर प्रक्रिया को रद्द करने की सिफ़ारिश की थी, और कहा था कि पैसा सीधे लाभार्थियों के खातों में डाला जाए, और राशन भी सीधा वितरित किया जाए.
महाराष्ट्र में आदिवासी राज्य की कुल आबादी का 9.4 प्रतिशत हिस्सा हैं. पिछले कुछ समय में कई रिपोर्ट्स सामने आई हैं, जिनमें यह साफ़ है कि लॉकडाउन की बड़ी मार देश के आदिवासियों ने ही झेली है.
मसलन, महाराष्ट्र के ही पालघर ज़िले में लॉकडाउन के बाद कुपोषण बढ़ा है. पालघर में 37 प्रतिशत आबादी आदिवासी है. माहाराष्ट्र के अलावा भी दसूरे राज्यों के आदिवासी जो लॉकडाउन की वजह से घर लौटने को मजबूर हुए थे, उनमें कुपोषण और बीमारियां ज़्यादा देखी गईं.