सिगुर एलिफ़ेंट कॉरिडोर पश्चिमी और पूर्वी घाट को जोड़ता है. इस कॉरिडोर से केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक से लगभग 6,300 एशियाई हाथियों की आवाजाही आसानी से हो सकती है. इसीलिए यह गलियारा हाथियों की आबादी को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है.
लंबे समय से यह कॉरिडोर विवादों में घिरा था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद इसको लागू करने का रास्ता साफ़ हो गया है.
लेकिन, सिगुर एलिफ़ेंट कॉरिडोर से 12,000 से ज़्यादा लोग विस्थापित हो जाएंगे. राइट्स एक्टिविस्ट इस क़रिडोर का इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि वो मानते हैं कि इसे लागू करने में को-हैबिटेशन और कम्युनिटी-आधारित फ़ॉरेस्ट मैनेजमेंट के प्रावधान नहीं हैं.
इस कॉरिडोर से इरुला, कुरुम्बा, मुल्लू कुरुम्बा, तेन कुरुम्बा, आदि द्रविड़र आदिवासियों, और कर्नाटक से पलायन करने वाले कई लोग प्रभावित होंगे.
इस कॉरिडोर के खुलने के बाद, इस क्षेत्र में स्थित कई होमस्टे और रिसॉर्ट् भी बंद हो जाएंगे. इनको चलाने वाले लोगों का कहना है कि जिस ज़मीन पर यह होमस्टे और रिसॉर्ट बने हैं, उनका पट्टा इनके पास मौजूद है. ये लोग यह भी कहते हैं कि इन्होंने कभी भी अपने इस्तेमाल के लिए जंगल की भूमि का अधिग्रहण नहीं किया.
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस कॉरिडोर से नीलगिरी बायोस्फ़ीयर रिज़र्व में वन्यजीवों के संरक्षण को काफ़ी फ़ायदा होगा. लेकिन स्थानीय समुदाय कहते हैं कि इससे उनके अस्तित्व पर ही बड़ा सवाल उठ जाता है.
कॉरिडोर के बन जाने से 12,000 से अधिक लोग, और 25,000 पशुधन प्रभावित होंगे. इसमें किसानों के 200 परिवार, और दलित और आदिवासी समुदायों के 700 परिवारों की आजीविका को बड़ा झटका लगेगा.
14 अक्टूबर, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने सिगुर एलिफ़ेंट कॉरिडोर के क्षेत्र में आने वाले सभी मानवीय अतिक्रमणों को हटाने के मद्रास हाई कोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराया था. इस आदेश के पालन के लिए 39 रिसॉर्ट्स को इस इलाक़े से हटाया जाएगा, जिसका सीधा असर आदिवासियों पर पड़ेगा, जो इन रिसॉर्ट्स में काम करते हैं.
आदिवासियों के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि स्थानीय समुदाय इस क्षेत्र को खाली नहीं करेंगे, क्योंकि वह कई पीढ़ियों से वन्यजीवों के साथ पूरे सामंजस्य में रहते आए हैं.
इस कॉरिडोर के लिए 7000 एकड़ भूमि की ज़रूरत है. इसमें 4225 एकड़ निजी भूमि, और लगभग 3000 एकड़ पट्टे वाली सरकारी भूमि है. इस सरकारी भूमि पर रहने वालों में ज़्यादातर आदिवासी या दलित हैं.
यह लोग कहते हैं कि उनकी हाथियों से कोई दुश्मनी नहीं है, लेकिन पीढ़ियों से यहां रह रहे लोगों का विस्थापन अवास्तविक है, और फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट के ख़िलाफ़ भी.