गोदावरी के कैचमेंट एरिया में भारी बारिश के चलते, पूर्वी गोदावरी एजेंसी इलाक़े के 230 आदिवासी गांवों में पोलावरम डैम के बैकवॉटर से बाढ़ का ख़तरा बढ़ गया है.
चिंटूरु एजेंसी इलाक़े के कई मंडलों में रेत के टीले पहले से ही बैकवॉटर के पानी में काफ़ी हद तक डूबे हुए हैं. अगर रेत के टीले पूरी तरह से पानी में डूब जाते हैं, तो इस पानी के गांवों में घुसने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा.
लोगों ने अपने घर का सामान पास के पहाड़ी इलाक़ों में शिफ़्ट करना शुरू कर दिया है, क्योंकि उन्हें पिछले साल की बाढ़ और भारी बारिश में काफ़ी नुकसान झेलना पड़ा था. अगर बाढ़ का पानी 60 फीट तक पहुंच जाता है तो पूर्वी एजेंसी के कुनावरम और वीआर पुरम मंडल के क़रीब 45 गांव जलमग्न हो सकते हैं.
चिंटूरू, आईटीडीए के परियोजना अधिकारी ए वेंकट रमणा ने मीडिया को बताया कि उन्होंने लोगों को सलाह दी कि जब भारी बारिश या बाढ़ आए, तो वो गांव खाली कर दें. पिछले साल के अनुभव के मद्देनज़र ITDA लोगों को गांव खाली करने के लिए परिवहन और दूसरी सुविधाएं प्रदान करेगा.
इस साल बारिश के मौसम में बाढ़ की संभावना है. पिछले साल 22 लाख क्यूसेक पानी इलाक़े में घुस गया था. इसीलिए बाढ़ से कोई दुर्घटना हो, इससे पहले एहतियाती क़दम उठाए जा रहे हैं. सरकारी पुनर्वास केंद्र खोलने का भी प्लान है, जहां पर्याप्त मात्रा में भोजन, दवाइयां, ऑक्सीजन टैंक जैसी चीज़ें उपलब्ध होंगी.
आईटीडीए परियोजना अधिकारी ने यह भी कहा कि पुनर्वास के लिए जगह बनाई जा रही है. कोविड मानदंडों के अनुसार लोगों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी क़दम भी उठाए जा रहे हैं.
इस बीच आदिवासी किसानों को खरीफ़ सीज़न के लिए कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इन्हें आने वाली बारिश और बाढ़ को देखते हुए ज़मीन की जुताई न करने की सलाह दी गई है.
पोलावरम कॉफ़रडैम का काम जिस इलाक़े में चल रहा है, पहले वहां के आदिवासी गांव जल स्तर 45 फीट पहुंचने पर ही जलमग्न होते थे. लेकिन पिछले दो सालों से पानी का स्तर 35 फीट पहुंचने पर भी यह गांव डूब जाते हैं.
राज्य सरकार ने अभी तक चिंटूरु डिविज़न में पुनर्वास का काम शुरू नहीं किया है. और तो और पुनर्वास पैकेज आज तक जारी भी नहीं किया गया है. इन हालात में लोग डर के साये में जी रहे हैं और उन्होंने सरकार से तत्काल राहत मुहैया कराने और जान बचाने की गुहार लगाई है.
अधिकारियों ने तो इन आदिवासियों को गांव खाली करने को कह दिया, लेकिन यह लोग पूछते हैं कि अगर वो बिना खेती के जगह खाली कर देंगे तो अपनी आजीविका कैसे चलाएंगे. वैसे ही यह लोग कोविड के साथ-साथ बेरोजगारी के संकट से जूझ रहे हैं.
उनकी मांग है कि सरकार चिंटूरु डिविज़न में पुनर्वास के मुद्दों को निपटाए, और इलाक़े के लोगों को बचाए.
हालांकि राज्य सरकार का दावा है कि पूर्वी एजेंसी में विस्थापितों के परिवारों को वित्तीय पैकेज का 75 प्रतिशत भुगतान किया जा चुका है.