कोरोना महामारी के शिक्षा क्षेत्र पर प्रभाव के बारे में किए गए एक सर्वे का दावा है कि इसमें आदिवासी छात्र सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. इस सर्वे के अनुसार कोरोना महामारी की वजह से स्कूल बंद हो गए और ऑनलाइन क्लासेज़ में आदिवासी छात्र पीछे रह गए हैं. केरल के 14 ज़िलों में किए गए सर्वे में बताया गया है कि आदिवासी छात्रों ने प्रतिदिन एक घंटे से भी कम ऑनलाइन क्लास की हैं.
एक ग़ैर सरकारी संस्था कनाल इनोवेशन ने यह सर्वे किया है. यह सर्वे पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा के छात्रों के बीच में किया गया है. जिन ज़िलों में यह सर्वे किया गया, उनमें केरल के पालक्काड, मलप्पुरम, वायनाड, तिरुवनंतपुरम और कोल्लम शामिल हैं. इस सर्वे में शामिल हुए छात्रों से पता चला कि मोबाइल फ़ोन का नेटवर्क ना होना, इन छात्रों की पढ़ाई में सबसे बड़ी बाधा बना है. जिस ग़ैर सरकारी संस्था ने यह सर्वे किया है उसका कहना है कि इस दौर में छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने में अध्यापकों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है. ख़ासतौर पर आदिवासी छात्रों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगर ये आदिवासी छात्र अब पीछे छूट गए तो उनके लिए फिर स्कूल लौटना मुश्किल हो जाएगा.
हांलाकि केरल सरकार ने ऑनलाइन पढ़ाई में बाधाओं को देखते हुए टीवी चैनल के माध्यम से छात्रों के लिए कक्षाओं का इंतज़ाम भी किया है. इस सर्वे में यह भी सामने आया कि प्राइवेट स्कूल एक दिन में 7-7 घंटे क्लास कराते हैं. आदिवासी छात्रों के लिए इतने लंबे समय के लिए ऑनलाइन क्लास करना संभव नहीं होता है क्योंकि उनके पास जो फ़ोन हैं उनकी बैटरी इतने लंबे समय नहीं चलती हैं. इसके अलावा मोबाइल नेटवर्क भी धोखा देता रहता है.
इस सर्वे में बताया गया है कि ज़्यादातर प्राइवेट स्कूल सरकार की गाइडलाइन्स का पालन नहीं करते हैं. सरकार के नियम के अनुसार एक दिन में सिर्फ़ 3 घंटे ही ऑनलाइन क्लास होनी चाहिए. इस सर्वे में यह भी पता चला है कि जो छात्र टाइपिंग नहीं जानते हैं उन्हें ऑनलाइन क्लास में ज़्यादा मुश्किल होती है.
यह सर्वे भले ही केरल में किया गया हो, लेकिन यह सच है कि देशभर में आदिवासी छात्रों को ऑनलाइन क्लासेज़ करने में परेशानी हुई है. देश के ज़्यादातर आदिवासी समुदाय पहाड़ी और जंगल के इलाक़ों में रहते हैं, और इन इलाक़ों में मोबाइल नेटवर्क या इंटरनेट की सुविधाएं नहीं हैं.