कर्नाटक के मैसूरू ज़िले के आदिवासी इलाक़ों में COVID-19 से बचने के लिए टीकाकरण में एक अजीब परेशानी आ रही है.
दरअसल टीकाकरण के बाद कुछ दिन तक शराब नहीं पीनी है, इस धारणा की वजह से आदिवासी टीका लगवाने में झिझक रहे हैं.
यह तथ्य स्थानीय एनजीओ ने नोटिस किया है. ये एनजीओ आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य से जुड़ा के काम कर रहे हैं.
इन एनजीओ के अनुसार मैसूरू की हुनसुर और एचडी कोटे आदिवासी बस्तियों में टीकाकरण कवरेज को गति नहीं मिली है. इन बस्तियों में ज़्यादातर आदिवासी आबादी है.
यह धारणा टीकाकरण के लिए आदिवासियों के बीच जागरूकता पैदा करने के अभियान में एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है.
COVID-19 वैक्सीन और शराब के बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का कहना है कि ऐसा कोई प्रमाण अभी तक नहीं मिला है कि शराब से वैक्सीन का प्रभाव कम होता है.
यहाँ पर काम कर रहे ग़ैर सरकारी संगठनों का कहना है कि आमतौर पर 18 साल से ज़्यादा की उम्र के सभी आदिवासी पुरूष शराब पीते हैं.
इसलिए यहाँ वैक्सीन अभियान एक चुनौती बन गया है. आदिवासियों में यह भ्रम फैल गया है कि अगर वैक्सीन लेंगे तो उसके बाद उन्हें कुछ दिन शराब छोड़नी ही पड़ेगी.
यहाँ पर काम करने वाले एनजीओ कहते हैं कि स्थानीय प्रशासन को इस चुनौती को स्वीकार करना होगा.
आदिवासियों में फैले इस भ्रम को दूर करने के लिए प्रशासन को विशेष अभियान चलाना होगा. इस अभियान में आदिवासी समुदाय के जागरूक और पढ़े लिखे लोगों को शामिल करना ज़रूरी है.
मैसूरू ज़िले में कम से कम 45000 आदिवासी आबादी है. यहाँ के कुछ आदिवासियों ने बढ़ चढ़ कर वैक्सीन अभियान में हिस्सा लिया था.
लेकिन दूर दराज़ के इलाक़ों में आदिवासियों में वैक्सीन के प्रति एक झिझक देखी जा रही है.
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि कुल आदिवासी आबादी में से कम से कम 60 प्रतिशत लोग वर्तमान नियमों के तहत वैक्सीन के लिए पात्र हैं. जबकि अभी इन इलाक़ों में मुश्किल से 5 प्रतिशत लोगों को ही वैक्सीन मिली है.
उधर चामराजनगर में जिला प्रशासन ने आदिवासी बस्तियों को कवर करने के लिए एक आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया है.
इसके लिए हॉस्टल वाले स्कूलों में टीकाकरण केंद्र स्थापित किए हैं. यहाँ अभी तक लगभग 5,000 आदिवासियों का टीकाकरण किया जा चुका है और कवरेज बढ़ाने के प्रयास जारी हैं.