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कोरबा में आदिवासियों ने किया कोयला खादान का विरोध, ग्राम सभा से नहीं ली गई ज़रूरी अनुमति

संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अनुसार ग्राम सभाओं की सलाह और सहमति के बिना कोई भी खनन गतिविधियां अनुसूचित क्षेत्रों में नहीं की जा सकती. पेसा क़ानून भी स्पष्ट करता है कि विकास परियोजनाओं के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा या उपयुक्त स्तर पर पंचायतों से परामर्श किया जाना आवश्यक है.

छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले की दस ग्राम सभाओं ने मदनपुर दक्षिण कोयला ब्लॉक में खनन पर आपत्ति जताई है. इन ग्राम सभाओं में मुख्य रूप से गोंड जनजाति के लोग शामिल हैं. दरअसल, केंद्र सरकार ने 712.072 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण करने की मंज़ूरी दी है. कोयला खनन के लिए अधिग्रहित की जाने वाली इस भूमि का एक बड़ा हिस्सा जैव विविधता संपन्न हसदेव अरंड क्षेत्र में आता है.

आदिवासियों का कहना है कि ग्राम सभाओं से खनन की अनुमति नहीं ली गई है

24 दिसंबर, 2020 को प्रकाशित कोयला मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, अधिग्रहण के लिए पहचाने गए 712.072 हेक्टेयर में से 489.274 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि है, और 159.327 हेक्टेयर में राजस्व और अन्य वन भूमि शामिल हैं. दस ग्राम सभाओं के सरपंचों और सदस्यों ने 16 जनवरी को कोल कंट्रोलर ऑर्गनाइज़ेशन को एक पत्र लिखकर कहा कि खनन परियोजना से पहले ग्राम सभाओं से परामर्श नहीं किया गया, और न ही उनकी सहमति ली गई थी. इन ग्राम सभा के सदस्यों ने 10 जनवरी को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी आपत्ति जताते हुए पत्र लिखा था.

संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अनुसार ग्राम सभाओं की सलाह और सहमति के बिना कोई भी खनन गतिविधियां अनुसूचित क्षेत्रों में नहीं की जा सकती. पेसा क़ानून भी स्पष्ट करता है कि विकास परियोजनाओं के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा या उपयुक्त स्तर पर पंचायतों से परामर्श किया जाना आवश्यक है.

आदिवासियों का कहना है कि जंगल से ही उनकी जीविका और जीवन चलता है

पर्यावरण मंत्रालय की परिवेश वेबसाइट के अनुसार 648.61 हेक्टेयर भूमि के इस्तेमाल के लिए आवेदन अभी भी राज्य के वन विभाग के पास लंबित है. वेबसाइट में यह भी साफ़ है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने 21 दिसंबर, 2020 को इसपर सवाल भी उठाया था.

मदनपुर के सरपंच, देवसे धुर्वे कहते हैं कि आदिवासी इस खनन परियोजना का विरोध करेंगे क्योंकि यह घने जंगल इनकी आजीविका का एक बड़ा साधन हैं. इलाक़े के आदिवासी इन जंगलों से महुआ, तेंदू, चिरौंजी और कई अन्य फलों और जड़ी-बूटियों जैसे वनोपज को इकट्ठा करते हैं. इन जंगलों में जैव विविधता है, और हसदेव नदी से ही इनके खेतों की सिंचाई भी होती है.

ग्राम सभाओं द्वारा उठाई गई चिंताओं पर कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि परियोजना के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है, जिसका पालन किया जाएगा. पर्यावरण कार्यकर्ताओं और कानूनी शोधकर्ताओं ने भी जैव विविधता भरे हसदेव अरंड क्षेत्र में खनन पर चिंता जताई है. दरअसल, 170,000 हेक्टेयर में फैला यह क्षेत्र मध्य भारत के सबसे बड़े घने जंगलों में से एक है, जिसके नीचे 22 कोयला ब्लॉक हैं. 

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