महाराष्ट्र सरकार हर साल 10 आदिवासी छात्रों को विदेश में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप देने में विफल रही है. साल 2005 में राज्य सरकार ने एक योजना शुरू की थी जिसके अंतर्गत हर साल कम से कम 10 आदिवासी छात्रों को विदेश में पढ़ाई करने के लिए सरकारी मदद का वादा था. लेकिन पिछले 6 साल में राज्य सरकार से सिर्फ़ 20 आदिवासी छात्रों को ही स्कॉलशिप दी गई है. इसका मतलब यह हुआ कि राज्य सरकार ने अपने वादे को आधा भी लागू नहीं किया है.
आदिवासी संगठनों का कहना है कि राज्य सरकार आदिवासी छात्रों को इस स्कीम के बारे में जानकारी ही नहीं देती है. कई जानकार कहते हैं कि सरकार के फ़ैसलों में आदिवासी प्रतिनिधियों की आवाज़ कमज़ोर होने की वजह से भी आदिवासियों के लिए बनी योजनाएं लागू नहीं होती हैं.
आदिवासी छात्रों के लिए इस योजना के तहत विदेश में मेडिकल, एमबीए, साइंस, आर्किटेक्चर या फिर इंजिनीयरिंग की पढ़ाई के लिए सरकार से मदद दी जाती है. इस योजना के तहत विदेश में पढ़ने के लिए आदिवासी छात्रों को रहने और खाने के ख़र्चे के अलावा उनकी फ़ीस का पैसा भी दिया जाता है. इसके अलावा विदेश में पढ़ने जाने वाले छात्रों की वीज़ा फ़ीस, आने जाने का ख़र्च और विदेश में रोज़ के आने जाने के ख़र्च के लिए भी पैसा देने का प्रावधान है.
2011 की जनगणना के अनुसार महाराष्ट्र में आदिवासी आबादी 1 करोड़ से ज़्यादा है. राज्य की कुल आबादी का 9 प्रतिशत आदिवासी हैं. राज्य के बड़े आदिवासी समूहों में भील, गोंड, महादेव कोली, पावरा, ठाकुर और वार्ली हैं. राज्य के पश्चिम के पहाड़ी ज़िलों धुले, नंदुरबार, नासिक, जलगांव, और पालघर में, और पूर्व में चंद्रपुर, गढ़चिरौली, भंडारा, गोंडिया, नागपुर, अमरावती और यवतमाल ज़िलों में आदिवासी आबादी रहती है.
2018 में महाराष्ट्र सरकार ने कुछ डिनोटिफ़ाइड जनजातियों को भी इस सूचि में शामिल किया था. इस स्कीम के लिए सालाना 20 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. इस योजना के तहत हर साल 10 आदिवासी छात्र दुनिया के किसी भी देश के विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. इस योजना में कुल छात्रों में हर साल कम से कम 3 लड़की छात्रों को मदद देने का प्रावधान भी है.