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भारत-म्यांमार की सीमा पर बाड़ लगाने की घोषणा, आदिवासियों पर इसका क्या होगा असर

फ्री मूवमेंट रेजिम, अपने वर्तमान स्वरूप में वीजा और पासपोर्ट के बिना प्रवेश को सक्षम बनाती है. सीमा के दोनों ओर पारिवारिक, सामाजिक और जातीय संबंधों को साझा करने वाली जनजातियों को अपने लोगों के साथ संपर्क में रहने की अनुमति देने के लिए एक प्रणाली के रूप में शुरू हुई थी.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने घोषणा की है कि भारत में फ्री मूवमेंट रेजिम (Free Movement Regime) को प्रतिबंधित करने के लिए भारत-म्यांमार से लगी सीमा पर बाड़ लगाएगा. दोनों देश के लोगों को यात्रा दस्तावेजों के बिना 16 किलोमीटर तक दोनों तरफ जाने की अनुमति देने वाली व्यवस्था को खत्म कर दिया जाएगा.

अमित शाह ने गुवाहाटी में पांच नवगठित असम पुलिस कमांडो बटालियन के पहले बैच की पासिंग आउट परेड को संबोधित करते हुए कहा, “म्यांमार के साथ हमारी सीमा खुली हुई है लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने सीमा की सुरक्षा के लिए बाड़ लगाने का फैसला किया है, जैसा कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर किया गया था. भारत सरकार फ्री मूवमेंट रेजिमेंट समझौते पर भी पुनर्विचार कर रही है, जो हमने म्यांमार के साथ किया है और अब केंद्र इस मुक्त आवाजाही व्यवस्था को बंद करने जा रहा है.”

शाह की यह घोषणा संघर्ष प्रभावित मणिपुर में म्यांमार के साथ सीमा पर बाड़ लगाने की बढ़ती मांग के अलावा मिजोरम और नागालैंड की ओर से इस पर आपत्तियों के बीच आई है.

मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा भड़कने के बाद सीएम एन. बीरेन सिंह ने सितंबर में केंद्र से सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को रद्द करने का आग्रह करते हुए कहा था कि विद्रोही और ड्रग तस्कर भारत विरोधी गतिविधियों को जारी रखने के लिए इस प्रणाली का दुरुपयोग कर रहे हैं.

भारत की 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार से लगती है. इसमें से मिज़ोरम में 510 किमी और मणिपुर में 398 किमी, नागालैंड 215 किमी और अरुणाचल प्रदेश 520 किमी लगती हैं.

हालांकि, मिज़ोरम और नागालैंड सरकार ने हाल ही में सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को समाप्त करने के केंद्र के कदम पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इससे जातीय संबंध साझा करने वाले समुदायों को परेशानी होगी.

मिजोरम के सीएम लालदुहोमा ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर से कहा था कि सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को खत्म करने का कोई भी कदम अस्वीकार्य है.

दरअसल, कुकी-ज़ो ने मणिपुर में संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक “अलग प्रशासन” के निर्माण के लिए भारत और म्यांमार में रहने वाले ज़ोफ़ेट (कुकी-ज़ो-चिन) के “एकीकरण” की अपनी मांग तेज़ कर दी है.

इसी तरह नागालैंड के डिप्टी सीएम वाई पैटन ने 9 जनवरी को कहा कि मिज़ो की तरह, एक महत्वपूर्ण नागा आबादी प्राचीन काल से म्यांमार के भीतर रहती है.

वाई पैटन, जो नागालैंड में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता भी हैं. उन्होंने कहा, “इस साझा क्रॉस-बॉर्डर जनसांख्यिकी को देखते हुए, भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के संबंध में कोई भी प्रस्ताव नागाओं के लिए अस्वीकार्य होगा.”

नागालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी सरकार में बीजेपी गठबंधन सहयोगी है. जबकि मिज़ोरम में लालदुहोमा के नेतृत्व वाला ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट सत्ता में है.

क्या है फ्री मूवमेंट रेजिम?

फ्री मूवमेंट रेजिम की शुरुआत 1970 के दशक में की गई थी क्योंकि म्यांमार और भारत में रहने वाली जातीय जनजातियां (Ethnic tribes) जातीयता और पारिवारिक संबंध साझा करती हैं और वे आसान आवाजाही के लिए एक प्रणाली चाहते थे.

एफएमआर दोनों देशों के बीच एक पारस्परिक रूप से सहमत व्यवस्था है जो दोनों तरफ सीमा पर रहने वाली जनजातियों को बिना वीजा के दूसरे देश के अंदर 16 किमी तक यात्रा करने की अनुमति देती है. इसे 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार की एक्ट ईस्ट नीति के हिस्से के रूप में लागू किया गया था.

इसके तहत सीमा के दोनों ओर रहने वाली जनजातियों को सीमा पार करने के लिए केवल सीमा सुरक्षा बल द्वारा जारी यात्रा पास की जरूरत होती है. इसके जरिए दूसरे देश के अंदर 16 किमी तक यात्रा करने की अनुमति है.

लेकिन अगर एफएमआर रद्द कर दिया जाता है तो ग्रामीणों को किसी भी अन्य विदेशियों की तरह वीजा की जरूरत होगी.

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