बीजद (BJD) सांसद डॉ सस्मित पात्रा ने कल राज्यसभा में एक स्पेशल मेंशन नोटिस के माध्यम से ओडिशा की तीन भाषाओं को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है. ये भाषाएं हैं हो, मुंडारी और भुमजी.
उड़िया में बोलते हुए उन्होंने यह मांग उठाई, जो ओडिशा के उन लाखों आदिवासी भाइयों और बहनों के दिलों के करीब है जो ये भाषाएं बोलते हैं. संथाली भाषा पहले से ही आठवीं अनुसूची का हिस्सा है.
डॉ पात्रा ने कहा कि 22.85 फीसदी से अधिक अनुसूचित जनजाति की आबादी के साथ, ओडिशा 62 आदिवासी समुदायों का घर है, जिनमें 13 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) शामिल हैं. उन्होंने कहा कि हो, मुंडारी और भूमिज भाषाओं को शामिल करने से ओडिशा में इन तीन भाषाओं को बोलने वाले आदिवासी समुदायों की लंबे समय से चली आ रही मांगों और आकांक्षाओं को पूरा करने में काफी मदद मिलेगी.
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने पिछले साल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को इस संबंध में लिखा था और आठवीं अनुसूची में इन तीनों भाषाओं को शामिल करने का अनुरोध किया था.
साथ ही उन्होंने कहा कि ओडिशा और झारखंड में रहने वाले लगभग 10 लाख आदिवासी लोगों द्वारा ‘हो’ भाषा बोली जाती है. संथाली जिसे पहले ही संविधान की आठवीं अनुसूची शामिल किया जा चुका है, के बाद ‘हो’ ओडिशा में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली जनजातीय भाषा है.
उन्होंने कहा कि मुंडारी ओडिशा के मुंडा और मुंडारी जनजातियों के छह लाख से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है और भूमिज लगभग तीन लाख लोगों द्वारा बोली जाती है.
दरअसल संसद का मानसून सत्र शुरू होने से पहले, ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक ने 16 जुलाई, 2022 को अपनी पार्टी के लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों को दोनों सदनों में राज्य के लंबित मुद्दों को उठाने की सलाह दी थी.
ओडिशा के सीएम ने अपनी पार्टी के सांसदों से राज्य में लंबित रेलवे परियोजनाओं में तेज़ी लाने, हमारे किसानों के हित में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने, विधानसभा और संसद दोनों में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण, ओडिशा विधान परिषद का गठन और विशेष श्रेणी की स्थिति और संविधान की 8वीं अनुसूची में ‘हो’ भाषा को शामिल करने की मांग को उठाने को कहा था.
दरअसल ब्रिटिश शासन ख़त्म होने के बाद से ही ओडिशा में भाषाओं को लेकर लड़ाई जारी है. बीजद के अलावा दूसरे राजनीतिक दलों ने भी संविधान की आठवीं अनुसूची में आदिवासी भाषाओं को शामिल करने के लिए केंद्र सरकार से अपील की है. लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से इसके लिए अभी तक कोई पहल नहीं हुई है.
संविधान की आठवीं अनुसूची भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध करती है. जिस समय संविधान लागू किया गया था, उस समय इस सूची में शामिल किए जाने का मतलब था कि वो भाषा राजभाषा आयोग में प्रतिनिधित्व की हकदार थी.
लेकिन अब इसका महत्व और भी बढ़ गया है. अब इस सूची में शामिल भाषाओं के विकास के लिए भारत सरकार उपाय करती है, ताकि ये भाषाएं तेज़ी से समृद्ध हों, और इनका ज्ञान के संचार में इनका उपयोग बढ़े. इसके अलावा, किसी सार्वजनिक सेवा के लिए होने वाली परीक्षा लिखने के लिए उम्मीदवार इनमें से किसी भी भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं.
फिलहाल आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं, जिनमें असमिया, बांगला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़ा, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैती (मणिपुरी), मराठी, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु, और उर्दू शामिल हैं.